इस लड़की की कहानी इतनी डरावनी थी कि इस पर हॉलीवुड फिल्म भी बनाई गई. उसका नाम एनेलिस मिशेल था. उसकी छोटी सी जिंदगी इतनी खौफनाक रही, कि किसी के भी रोंगटे खड़े कर दे. एनेलिस को लगता था कि उस पर भूत-प्रेत का साया है. ऐसा कहा जाता है कि 16 साल की उम्र में उसकी जिंदगी में मुश्किलें आना शुरू हुईं. आंखों के सामने अंधेरा छा जाता और शरीर लकवाग्रस्त हो जाता. उसे डरावने चेहरे नजर आते. ऐसा उसके साथ तब तक होता रहा, जब तक 23 साल की उम्र में उसकी मौत नहीं हो गई.
डेली स्टार की रिपोर्ट के अनुसार, एनेलिस की स्थिति डॉक्टरों को भी समझ नहीं आ रही थी. वो मदद के लिए चर्च जाने लगी. यहां 18 महीने में उसकी 67 बार झाड़-फूंक की गई. एक सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश के बावजूद एनेलिस दूसरी भाषा में बात करने लगती, परिवार के लोगों पर पूरी ताकत से हमले करती, अपना पेशाब पी जाती, मकड़ी और कोयला खाती और कुत्तों की तरह भौंकने लगती थी. उसकी जिंदगी की कहानी से प्रेरणा लेकर तीन फिल्में बनाई गईं, जिनमें से एक 'द एक्सोर्सिस्म ऑफ एमिली रोज' है.
साल 1952 में पश्चिमी जर्मनी के बवेरिया में एक कैथोलिक परिवार में जन्मी एनेलिस की परवरिश बहुत ही साधारण तरीके से हुई. वो हर हफ्ते चर्च में होने वाले कार्यक्रम में शामिल होती थी. उसकी मां उसे शांत, खुश और बुद्धिमान लड़की बताती थी. लेकिन जैसे ही वो 16 साल की हुई, तब सबकुछ बदलने लगा. एनेलिस को दौरा पड़ा. वो थोड़े समय के लिए लकवाग्रस्त हो गई लेकिन दोबारा सामान्य भी हुई. समय के साथ वो इस घटना को भूल रही थी. करीब एक साल बाद अगस्त, 1969 में वो एक बार फिर लकवाग्रस्त हुई और उसके सामने अंधेरा छा गया.
इसके बाद एनेलिस के माता-पिता उसे दूसरे डॉक्टर के पास ले गए. डॉक्टर ने कहा कि वो टेम्पोरल लोब एपिलेप्सी से पीड़ित है. उसका इलाज शुरू हुआ. मगर दवा लेने से भी कोई फायदा नहीं मिला. एनेलिस को आवाजें सुनाई दे रही थीं. उसे अपने घर की दीवारों पर डरावने चेहरे दिखने लगे. वो परिवार को बताती कि उसे जलते कूड़े की बदबू आ रही है. 1973 में एनेलिस का यूनिवर्सिटी में दाखिला हुआ और यहां पीटर नाम का लड़का उसका बॉयफ्रेंड भी बना. वो उस कफ्त काफी बीमार थी. तब भी उसे अचानक आवाजें सुनाई देने लगती थीं और चेहरे नजर आते थे. मगर वो एक सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश करती रही.
रिपोर्ट के अनुसार, उसे लगता कि कोई उसके कानों में कुछ बोल रहा है. बस इन्हीं सब घटनाओं के बाद एनेलिस को लगने लगा कि वो किसी शैतानी ताकत के वश में है. वो स्थानीय कैथोलिक चर्च जाती और यहां पादरी भी उसकी बात पर भरोसा करते थे. उन्होंने उसकी मदद करने की कोशिश की. इन्हीं पादरियों में से एक फादर एरनोल्ड रेन्ज झाड़-फूंक करने में माहिर थे. उन्होंने एक टेस्ट किया और जो उन्हें दिखा उससे वो हैरान थे. वो अब भी अपने कपड़े फाड़ रही थी. परिवार के सदस्यों पर हमले कर रही थी, वो भी इतनी ताकत के साथ जितनी उसके जैसे इंसान में नहीं होती.
बेशक उसकी झाड़-फूंक का काम जारी था लेकिन वो जो कुछ भी करती थी, उसे लिखा जा रहा था. ऑडियो कैसेट टेप में सब रिकॉर्ड हो रहा था. एनेलिस खुद भी कहती थी कि इन टेप को सार्वजनिक किया जाए, ताकि ये सबूत रहे कि वो वाकई में किसी शैतानी ताकत के वश में है. पहली बार की झाड़-फूंक के बाद उसने कई नाम लिए. उसकी कुल 67 बार झाड़-फूंक हुई. इनमें से 42 को टेप में रिकॉर्ड किया गया. हालांकि इसके बाद भी एनेलिस की हालत में कोई सुधार नहीं आया.
एनेलिस के अनुरोध के बाद उसके माता-पिता ने डॉक्टरों से संपर्क करना बंद कर दिया था. उसकी भूख के कारण 23 साल की उम्र में मौत हो गई. मौत के वक्त उसका वजन महज 29 किलोग्राम रह गया था. चर्च का मानना था कि वो शैतानी ताकतों के कब्जे और असफल झाड़-फूंक के कारण मरी है. तो वहीं अदालत ने इस केस में शामिल दोनों पादरियों और एनेलिस के माता-पिता पर लापरवाही के कारण हत्या का आरोप लगाया. चारों को दोषी पाया गया. इन्हें 6 महीने की निलंबित जेल की सजा काटने का आदेश दिया गया था.