विनोबा भावे (Vinoba Bhave) का पूरा नाम विनायक नरहरि भावे था. वे भारत के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक कार्यकर्ता और आध्यात्मिक विचारक थे. वे महात्मा गांधी के प्रमुख अनुयायियों में से एक थे. उन्होंने गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में पूरी तरह अपनाया था. विनोबा भावे को 1958 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया. उन्हें "आचार्य" की उपाधि दी गई.
विनोबा भावे ने 1951 में भूदान आंदोलन शुरू किया. इस आंदोलन का उद्देश्य भूमिहीन किसानों को भूमि दान दिलाना था. इस आंदोलन ने भारत में भूमि सुधार के प्रयासों को प्रोत्साहन दिया. विनोबा भावे अहिंसा के कट्टर समर्थक थे. वे अपने उपदेशों और कार्यों के माध्यम से सामाजिक समरसता और नैतिकता को बढ़ावा देते थे.
विनोबा भावे भगवद् गीता के महान ज्ञाता थे. उन्होंने बहुत कम उम्र में भगवद गीता पढ़ लिया था. वे "गीता प्रवचन" के रूप में सरल भाषा में समझाने के लिए प्रसिद्ध भी थे.
विनोबा भावे ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में स्वेच्छा से भोजन और दवाओं का त्याग कर दिया था. जैन धर्म में इसे "समाधि मरण" या "संथारा" कहते हैं. 15 नवंबर 1982 को उनकी मृत्यु हो गई. तब भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सोवियत नेता लियोनिद ब्रेजनेव के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए मास्को के दौरा पर थी, लेकिन भावे के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए अपनी यात्रा को छोटा कर वापस आ गई.