हिंदू धर्म में देवी काली (Maa Kali) को आद्याशक्ति और अजेय शक्ति का रूप माना जाता है. वे मां दुर्गा का उग्र स्वरूप हैं, जो अधर्म का नाश कर धर्म और सत्य की रक्षा करती हैं. काली माता को समय (काल) की अधिष्ठात्री भी कहा जाता है, इसीलिए उनका नाम काली पड़ा. वे केवल विनाश की प्रतीक नहीं, बल्कि सृष्टि और मोक्ष की भी दात्री हैं.
मां काली का रूप भयानक अवश्य दिखता है, लेकिन उसका गहन आध्यात्मिक अर्थ है. उन्हें प्रायः काले वर्ण, खुले बिखरे केश, रक्तरंजित जिह्वा, और गले में असुरों की मुंडमाला के साथ चित्रित किया जाता है. उनके चार हाथों में तलवार, खप्पर, वरमुद्रा और अभयमुद्रा होती है.
पुराणों के अनुसार काला रूप अज्ञान का नाश और ब्रह्म की अनंत शक्ति का प्रतीक है. मुंडमाला जन्म और मृत्यु के चक्र पर विजय को दर्शाती है. खप्पर और खड्ग अन्याय और अहंकार के संहार का संकेत देते हैं. अभयमुद्रा भक्तों को निर्भय होने का आशीर्वाद देती है.
भारत में मां काली की पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और बिहार में बड़े धूमधाम से होती है. काली पूजा अमावस्या की रात को दीपावली के साथ मनाई जाती है. इस दिन भक्तजन रात्रि जागरण, हवन और मां की आराधना करते हैं. मान्यता है कि मां काली की भक्ति से भय, बाधा और नकारात्मक शक्तियां दूर हो जाती हैं.
मां काली का संदेश यह है कि सृष्टि में सब कुछ नश्वर है. समय (काल) सबको निगल जाता है, इसलिए मानव को अहंकार छोड़कर भक्ति और करुणा के मार्ग पर चलना चाहिए. वे हमें यह भी सिखाती हैं कि हर विनाश के पीछे एक नई सृष्टि का बीज छिपा होता है.
दीपावली की रात पूर्वी भारत में मां लक्ष्मी की बजाय मां काली की पूजा की जाती है, जिसे महानिशा पूजा कहा जाता है, यह पूजा निशीथ काल में होती है और तांत्रिक परंपरा से जुड़ी है, जो भय और अंधकार के विनाश तथा आत्ममुक्ति का प्रतीक है.
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