Indian hockey great Charanjit Singh no more: भारत की 1964 टोक्यो ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता हॉकी टीम के कप्तान चरणजीत सिंह नहीं रहे. गुरुवार को उनका हिमाचल प्रदेश के ऊना में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह लंबे समय से उम्र से जुड़ी बीमारियों से भी जूझ रहे थे.
1964 के टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने गोल्ड मेडल जीता था. तब चरणजीत सिंह भारतीय टीम के कप्तान थे. खिताबी मुकाबले में भारतीय टीम ने पाकिस्तान को शिकस्त दी थी. इससे पहले 1960 में भारतीय टीम ने रोम ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीता था. तब भी वह टीम के सदस्य थे.
अगले महीने 91वां जन्मदिन मनाने वाले थे
चरणजीत अगले महीने अपना 91वां जन्मदिन मनाने वाले थे. उनके परिवार में दो बेटे और एक बेटी है. पांच साल पहले भी चरणजीत को स्ट्रोक हुआ था और तब से वह लकवाग्रस्त थे. उनके बेटे वीपी सिंह ने बताया, ‘5 साल पहले स्ट्रोक के बाद से वह लकवाग्रस्त थे. वह छड़ी से चलते थे, लेकिन पिछले दो महीने से उनकी हालत और खराब हो गई. उन्होंने गुरुवार सुबह अंतिम सांस ली. मेरी बहन के दिल्ली से आने के बाद उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.’
हॉकी इंडिया ने चरणजीत के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि भारत ने एक महान खिलाड़ी खो दिया. हॉकी इंडिया अध्यक्ष ज्ञानेंद्रो निगोंबम ने कहा. 'वह महान हाफबैक थे जिन्होंने खिलाड़ियों की पूरी एक पीढ़ी को प्रेरित किया. वह शांतचित्त कप्तान थे और मैदान पर उन्हें उनके कौशल तथा मैदान के बाहर सज्जनता के लिए हमेशा याद रखा जाएगा.’
On behalf of Hockey India, we mourn the loss of a great figure of Indian Hockey, Shri Charanjit Singh.
— Hockey India (@TheHockeyIndia) January 27, 2022
May his soul Rest in Peace🙏 pic.twitter.com/PTb38lHDS6
वह देहरादून के कर्नल ब्राउन कैम्ब्रिज स्कूल और पंजाब यूनिवर्सिटी से पढ़े. अंतरराष्ट्रीय हॉकी में सुनहरे करियर को अलविदा कहने के बाद वह शिमला में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में शारीरिक शिक्षा विभाग के निदेशक भी रहे.
ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता टीम की कप्तानी के साथ वह 1960 रोम ओलंपिक की रजत पदक विजेता टीम में भी थे. इसके अलावा वह 1962 एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता टीम के भी सदस्य थे. चरणजीत की पत्नी का 12 वर्ष पहले निधन हो गया था. उनका बड़ा बेटा कनाडा में डॉक्टर है और छोटा बेटा उनके साथ था. उनकी बेटी विवाह के बाद से दिल्ली में रहती है.
वह 1960 ओलंपिक में भारत के शानदार प्रदर्शन के नायकों में से रहे, लेकिन चोट के कारण पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल नहीं खेल सके जो भारत एक गोल से हार गया था. इसके चार साल बाद उनकी कप्तानी में टीम ने बदला चुकता करके पीला तमगा जीता.
... जब पाकिस्तान से लिया बदला
1964 के टोक्यो ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम की साख दांव पर लगी थी. करोड़ों भारतीय प्रशंसकों की यही ख्वाहिश थी कि टीम इंडिया पाकिस्तान को मात देकर स्वर्ण पदक जीत कर आए. जिसे पूरा करने में भारतीय टीम पूरी तरह सफल भी रही. टोक्यो में भारतीय टीम की कमान करिश्माई हाफ बैक चरणजीत सिंह के हाथों में थी.
भारत को ग्रुप 'बी' में स्पेन, नीदरलैंड्स, यूनाइटेड टीम ऑफ जर्मनी, मलेशिया, बेल्जियम, कनाडा और हॉन्कॉन्ग के साथ रखा गया था. भारत ने अपने पहले पहला मैच में बेल्जियम को 2-0 से मात देकर बेहतरीन आगाज किया. इस जीत के बाद भारत ने यूनाइटेड टीम ऑफ जर्मनी और स्पेन से 1-1 के ड्रॉ खेले. इसके बाद भारत ने लीग चरण के बाकी चार मैचों जीत हासिल कर सेमीफाइनल में कदम रखा. भारतीय टीम ने इस दौरान हॉन्कॉन्ग को 6-0, मलेशिया को 3-1, कनाडा को 3-0, जबकि नीदरलैंड्स को 2-1 से शिकस्त दी थी.
इसके बाद भारतीय टीम ने सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को 3-1 से हराकर फाइनल में जगह बनाई. सेमीफाइनल में भारत के लिए पृथीपाल ने दो और मोहिंदर ने एक गोल दागे. उधर पाकिस्तान ने भी स्पेन को 3-0 से मात देकर फाइनल का टिकट कटा लिया.
फाइनल में पाकिस्तान को धूल चटाई
फाइनल मुकाबले में भारतीय टीम का लक्ष्य रोम ओलंपिक की हार का बदला चुकता करना था. पहले हाफ में दोनों टीमों की तमाम कोशिशों के बाद भी कोई गोल नहीं हो सका. दूसरे हाफ में भारत को पेनल्टी कॉर्नर मिला, जिसे पृथीपाल सिंह ने लिया. लेकिन उनका शॉट पाकिस्तानी गोलकीपर के पैड से टकराकर मुनीर अहमद डार के पैर पर जा लगा, जिसके चलते भारत को पेनल्टी स्ट्रोक मिला. जिसके बाद मोहिंदर लाल ने इस बेहतरीन मौके को गोल में तब्दील कर भारत को बढ़त दिला दी.
पाकिस्तानी टीम ने इसके बाद गोल करने के भरसक प्रयास किए, लेकिन वह भारतीय गोलकीपर शंकर लक्ष्मण की दीवार को भेद नहीं सकी. अंततः भारत ने इस मुकाबले को 1-0 से जीतकर रोम ओलंपिक के फाइनल में मिली हार का बदला ले लिया. पाकिस्तान को मात देकर भारतीय टीम के 7वीं बार स्वर्ण पदक जीतने पर पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई.