"साब!"
"पान सिंह, विश्राम. बोलो."
"साब, सभई मोर्चा पर जा रहे हैं, हम क्यों नहीं?"
"फौज का कानून है. खिलाड़ियों को मोर्चे पे नहीं भेजते."
"साब हमें एक पॉइंट बोलना है साब. साब, वहां गांव में, घर में का मुंह रह जायेगा दिखाने के लिये साब. साब एक पॉइंट बोलते हैं. जे आर्मी हमाए सारे मेडल लेले, हम स्पोर्ट्स छोड़ देते हैं, साब. साब जे एक मौका मिला है, साब. जे हम जाने नहीं देंगे. साब, एक बार हमको मोर्चा पर भेज दो, साब."
65 की लड़ाई के लिये सभी को मोर्चे पर भेजा जा रहा था. सूबेदार पान सिंह तोमर को इजाज़त नहीं मिली थी. वो मेजर मसंद से जंग पर जाने की परमीशन मांग रहा था लेकिन उसे नहीं भेजा गया. पान सिंह को बड़ा डर इस बात का था कि वो मोर्चे पर नहीं गया तो उसकी बदनामी होगी. वो आता भी उस जगह से था जहां उसने बचपन में ही बन्दूक चलाने का मन्त्र सीख लिया था - "कंधे पे लगा बट्टा, एक आंख मीच. निसाना लगा, खींच दे उंगली. चल पड़ी गोली." उसके मामा के पास चार-चार मार्क-थ्री थीं. मामा जी बाग़ी थे जिन्हें पुलिस पकड़ न पायी थी. इस बात के चलते उनकी बहुत इज़्ज़त थी. ऐसी ज़मीन से आने वाला पान सिंह अगर जंग पर नहीं जायेगा तो उसकी थू-थू तय थी. और ऐसा हुआ भी. ज़मीन के झगड़े में जब कलेक्टर साहब आये तो उनके सामने भंवर सिंह ने पान सिंह के बेटे हनुमंता को खरी-खोटी सुनाते हुए कहा- "बाप ने न मारी मेंढकी और बेटा तीरंदाज!"
कहने को तो ये कहानी फ़िल्म से उठायी गयी है लेकिन सच्चाई के बेहद क़रीब है. और इसमें घुला टॉक्सिकपना अभी क्रिकेट में दिखायी दे रहा है. क्रिकेट के खेल की शुरुआत 16वीं शताब्दी की बतायी जाती है और इसकी शासकीय ईकाई 1909 में बनी. समय-समय पर इस खेल की गवर्निंग बॉडीज़ इसके नियमों में सुधार सम्बन्धी फेरबदल करती रहती हैं. बीते कुछ वक़्त से एक नियम को लेकर बहस छिड़ी हुई है. क्रिकेट की किताबों में वैध क़रार दिये आउट करने के एक तरीक़े को बहस का केंद्र बना दिया गया है. रनिंग एंड पर खड़े बैटर को गेंद फेंके जाने से पहले क्रीज़ छोड़ देने पर रन-आउट करने को वैसी ही तुच्छता के साथ ट्रीट किया जा रहा है जैसे पान सिंह जंग पर न गया हो.
क्रिकेट की पिच के दोनों छोर पर कुछ लकीरें खींची जाती हैं. गेंदबाज़ी और बल्लेबाज़ी करने के दौरान इन लकीरों को खासी अहमियत दी जाती है. बल्लेबाज़ और गेंदबाज़, दोनों को इनके दायरे में रहकर ही सारे क्रियाकलाप करने होते हैं. गेंदबाज़ी वाले छोर पर रनिंग कर रहे बैटर को भी गेंद छोड़े जाने तक क्रीज़ में ही रहना होता है. यदि वो गेंद छोड़े जाने से पहले ही भाग रहा है, तो वो रन चुराने के क्रम में एडवांटेज लेने की कोशिश कर रहा होता है. ऐसे में, उसे रन-आउट होकर इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है. इसकी इजाज़त क्रिकेट के नियम देते हैं. एमसीसी के नियम संख्या 38.3.1 के मुताबिक़, यदि नॉन-स्ट्राइकर गेंद के प्ले में आने से लेकर गेंद फेंके जाने की स्थिति में आने से ठीक पहले अपनी क्रीज़ से बाहर होता/होती है, तो उसे रन-आउट किया जा सकता है. ऐसे में, यदि गेंदबाज़ विकेट पर गेंद फेंककर या जिस हाथ में गेंद है, उसके विकेट पर लग जाने पर, नॉन-स्ट्राइकर को रन-आउट माना जायेगा, चाहे अंत में गेंद फेंकी गयी हो या न फेंकी गयी हो.
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हाल ही में, ऐसे कई मौके सामने आये जहां गेंदबाज़ ने रनिंग एंड पर गेंद फेंके जाने से पहले दौड़ रहे नॉन-स्ट्राइकर को रन-आउट किया. क्रिकेट के नियमों के अनुसार उन्हें आउट क़रार दिया गया. हां, इक्का-दुक्का ऐसे भी मौके आये जहां फ़ील्डिंग टीम ने रन-आउट की अपील वापस ले ली. लेकिन जितनी भी बार नॉन-स्ट्राइकर आउट हुआ, ऐसे विकेट को 'सस्ते विकेट' की श्रेणी में डालना शुरू कर दिया गया. क्रिकेट बैजर नाम के एक क्रिकेट पॉडकास्ट के ट्विटर हैंडल ने कहा कि ये किसी की जेब से उसका बटुआ चुराने जैसा है. इनका कहना है कि उस शख्स को सावधान रहना चाहिये था, लेकिन फिर भी उसका बटुआ चुराना धोखेबाज़ी और कपट होगा और खेल में ऐसा कतई नहीं होना चाहिये. यानी, एक गेंदबाज़ पॉपिंग क्रीज़ से एक सेंटीमीटर पैर आगे रख दे, तो नो-बॉल देकर अगली गेंद पर बल्लेबाज़ को फ़्री-हिट दी जा सकती है लेकिन नॉन-स्ट्राइकर को क्रीज़ पहले छोड़ने पर आउट करना चोरी के समान डिक्लेयर कर दिया जायेगा.
बैड-टेक्स (Bad takes) के बेताज बादशाह और हर कुछ समय पर अपनी भद्द पिटवाने की आदत पाल चुके ब्रिटिश पत्रकार और लेखक पियर्स मॉर्गन ने यहां तक कह दिया कि वो ऐसे किसी भी शख्स के साथ क्रिकेट खेलना पसंद नहीं करेंगे जो इस तरह से किसी खिलाड़ी को रन-आउट करने में यकीन रखता है. इसके जवाब में पूर्व ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी मार्क-वॉ ने कहा कि 'इससे भी बुरी बात ये है कि अब खिलाड़ी इस तरह से आउट करने की प्लानिंग भी कर रहे हैं.'
The worst thing is it seems that teams are using it as a deliberate planned way to get a wicket.👎
— Mark Waugh (@juniorwaugh349) January 16, 2023
यहां से समझ में नहीं आता है कि अगर खिलाड़ियों को फ़ील्डिंग, कैचिंग आदि की प्रैक्टिस करवाई जाती है और टीम हर प्रकार की रणनीति बनाकर मैदान में उतरती है तो आख़िर वो एक वैध डिसमिसल के बारे में प्लानिंग क्यूं न करें? जो टीम ऐसा नहीं कर रही है, उसकी प्लानिंग को खामियों से भरा हुआ माना जाए. और, मैं ये जानना चाहता हूं कि मार्क वॉ की नज़रों में क्या ग़लत है? इस तरह से आउट करना या आउट करने की प्लानिंग करना? यदि इस तरह के डिसमिसल नियमों के अनुसार ही हैं तो क्या वो इसे तभी सही मानेंगे जब ऐसे आउट करने की प्लानिंग न की जाए? क्या वो चाहते हैं कि डिसमिसल इत्तेफ़ाक से हों? मार्क वॉ से अपने शब्दों में कुछ कहते नहीं बन रहा है इसलिये अनुभव बस्सी के शब्द उधार लेने पड़ रहे हैं - "कोई सेन्स है इस बात की?"
इसके बाद आते हैं वो लोग जो साफ़-साफ़ शब्दों में इस रन-आउट को खेल भावना के ख़िलाफ़ बताते हैं. उनका कहना है कि ऐसे रन-आउट में खिलाड़ी ने कोई मेहनत नहीं की है. ऐसे लोगों के बारे में एक फ़न-फ़ैक्ट ये है कि बल्लेबाज़ के हाथ, पांव, हेल्मेट आदि से लगने के बाद गेंद दूर चली जाए तो ये दौड़कर रन लेने को खेल भावना के विरुद्ध नहीं कहेंगे. और हाथ-पांव-हेल्मेट लगना तो दूर, ये बाई के रन टीम के खाते में जोड़ने से परहेज़ नहीं करेंगे. उसमें बल्लेबाज़ की क्या मेहनत थी? सनद रहे कि यहां बाई या लेग बाई इत्यादि को न ही खेल भावना के ख़िलाफ़ कहा जा रहा अहै, न ही उसे ख़राब रोशनी में रखा जा रहा है. यहां महज़ 'मेहनत' लगने या न लगने सम्बन्धी बात पर बात रखी जा रही है.
बल्लेबाज़ी कर रहा बैटर अपनी क्रीज़ से बाहर निकलकर शॉट मार सकता है. लेकिन मिस करने पर उसे स्टम्प आउट भी किया जा सकता है. उसी तरह, यदि गेंद फेंके जाने से पहले ही वो पॉपिंग क्रीज़ से बाहर निकल चुका है तो उसे उसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. सारा मुद्दा ही बल्लेबाज़ों के एडवांटेज लेने जैसा है. एक गेंदबाज़ बैटर को बीट करता है, गेंद उसके बल्ले की जगह पैर पर लगती है, फिर भी सामने वाली टीम को रन मिलने का मौका मिलता है. बीते लम्बे समय से, जिस तरह से क्रिकेट के नियम बन रहे हैं, बदल रहे हैं, वो बैटिंग फ़्रेंडली होते जा रहे हैं. क्रिकेट ने जबसे पैसा कमाकर देना शुरू किया है, कोशिश यही रही है कि ज़्यादा से ज़्यादा रन बनें जिससे मैदान और मैदान से बाहर खेल को ज़्यादा से ज़्यादा आंखें मिल सकें. बल्ले ने गेंद के बनिस्बत एक लम्बी बढ़त बनायी हुई है.
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ये खेल अपने मूल में बल्लेबाज़ी को एक ऊपरी दर्जे की चीज़ मानकर विकसित हुआ और अब इसमें ये बात पूरी तरह से घुस चुकी है. इसकी शुरुआत गली क्रिकेट से ही हो जाती है जहां राजा वही होता है, जिसका बल्ला होता है. भारत के क्रिकेट को पालवंकर बालू के रूप में एक स्पिनर सिर्फ़ इसलिये मिला था क्यूंकि पूना क्लब में कैप्टन जेजी ग्रेग अपनी बल्लेबाज़ी की प्रैक्टिस करना चाहते थे और उनकी नज़र में बालू बढ़िया गेंद फेंकते थे. यहां ये बता दिया जाए कि बालू किसी भी टीम का हिस्सा नहीं थे. वो दलित थे और उन्हें पूना क्लब की पिच पर रोलर चलाने, उसपर मार्किंग करने और टेंट लगाने का काम मिला हुआ था जिसके बदले में उन्हें महीने के 4 रुपये मिलते थे.
रनिंग एंड पर बैटिंग साइड को एडवांटेज लेने से रोकने के काम में हाल ही में तेज़ी आयी है. और इस बात की अंग्रेज़ खिलाड़ियों ने (सभी ने नहीं, मगर ज़्यादातर ने) हाय-तौबा मचाई है. ये वही झुंड है जो अलग-अलग तरीकों से, अलग-अलग मौकों पर अनुचित एडवांटेज लेता आया है और ऐसा करना उसने हमेशा जस्टिफ़ाई किया है. स्टुअर्ट ब्रॉड सरीखे खिलाड़ी कान को पकड़ तो रहे हैं लेकिन हाथ पीछे से लाकर. उन्होंने कहा है कि नॉन-स्ट्राइकर को गेंद फेंके जाने से पहले भागने से रोकना तो होगा लेकिन इस तरह से नहीं. ये कॉलोनियल हैंगओवर में डूबे वो लोग हैं जिन्होंने मॉरल हाई ग्राउंड पकड़ा हुआ है उस कथित ऊंचाई पे बैठे-बैठे खुद को खुदा समझ बैठे हैं. इन्हें अपनी कही हर बात सही मालूम देती है और 'फलानी चीज़ अच्छी है, ढिमकी चीज़ तुच्छ है' सरीखा ज्ञान बांटा करते हैं.
क्रिकेट के नियमों को समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है और उसके अनुसार खेलना किसी भी हाल में तुच्छ नहीं है. पान सिंह तोमर 65 की लड़ाई में मोर्चे पर नहीं गया था लेकिन वो स्टिपल चेज़ का राजा था. और उसका ये काम उससे कोई छीन नहीं सकता.