scorecardresearch
 

...उस रूसी कैप्सूल की कहानी जिससे राकेश शर्मा धरती पर वापस आए थे

11 अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा सोयुज T-10 के गोलाकार डिसेंट कैप्सूल (2.2 मीटर व्यास, 2950 किलो) में कजाकिस्तान में सुरक्षित उतरे. 1650°C गर्मी, 7.5G दबाव सहते हुए पैराशूट और रेट्रो रॉकेट से लैंडिंग हुई. यही कैप्सूल भारत की अंतरिक्ष यात्रा का पहला कदम था. आज वह रूस में संरक्षित है. दिल्ली के नेहरू प्लेनेटेरियम इसकी 1:1 अनुपात का रेप्लिका रखा है.

Advertisement
X
बाएं भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और T-10 कैप्सूल जिससे वो अंतरिक्ष से धरती पर आए थे. (Photo: Ashwin Satyadev/ITG)
बाएं भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा और T-10 कैप्सूल जिससे वो अंतरिक्ष से धरती पर आए थे. (Photo: Ashwin Satyadev/ITG)

जब भी भारत की अंतरिक्ष यात्रा की बात होती है, तो सबसे पहला नाम आता है विंग कमांडर राकेश शर्मा का. 3 अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा पहले भारतीय बन गए थे जो अंतरिक्ष में गए. और यह सपना पूरा करने में सबसे बड़ा हाथ रूस (तब सोवियत संघ) का था. आज भी भारत का गगनयान मिशन रूस की तकनीक और दोस्ती पर टिका है. आइए जानते हैं उस ऐतिहासिक मिशन और उस कैप्सूल की पूरी कहानी. 

सोयुज T-11: वो अंतरिक्ष यान जिसने भारतीय को अंतरिक्ष पहुंचाया

Rakesh Sharma Descent Capsule

राकेश शर्मा सोवियत संघ के सोयुज T-11 अंतरिक्ष यान से 2 अप्रैल 1984 को बायकानूर कोस्मोड्रोम (कजाकिस्तान) से रवाना हुए थे. उनके साथ सोवियत अंतरिक्ष यात्री यूरी मालिशेव (कमांडर) और गेनादी स्त्रेकालोव (इंजीनियर) थे. यह मिशन इंटरकॉस्मॉस प्रोग्राम का हिस्सा था, जिसमें सोवियत संघ अपने दोस्त देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को मौका देता था. भारत को यह सम्मान मिला था.

यह भी पढ़ें: रूस भारत को दे सकता है RD-191M सेमी-क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन, बढ़ जाएगी इसरो की ताकत

सैल्यूट-7: अंतरिक्ष में भारतीय का घर

सोयुज T-11 ने सैल्यूट-7 अंतरिक्ष स्टेशन से डॉकिंग की. राकेश शर्मा ने वहां पूरे 7 दिन, 21 घंटे और 40 मिनट बिताए. उन्होंने योग किया. पृथ्वी की तस्वीरें लीं और कई वैज्ञानिक प्रयोग किए. जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि ऊपर से भारत कैसा लगता है?, तो राकेश शर्मा का जवाब था – सारे जहां से अच्छा. 

Advertisement

सोयुज T-10: वो कैप्सूल जिसने राकेश शर्मा को सुरक्षित धरती पर लौटाया

अंतरिक्ष से वापसी के लिए अलग कैप्सूल इस्तेमाल होता है. राकेश शर्मा सोयुज T-10 के डिसेंट मॉड्यूल (वापसी कैप्सूल) में 11 अप्रैल 1984 को धरती पर उतरे. यह कैप्सूल कजाकिस्तान के अरकलिक शहर के पास जमीन पर लैंड किया.

Rakesh Sharma Descent Capsule
ये है T-10 डिसेंट कैप्सूल की रेप्लिका जो दिल्ली के नेहरू प्लेनेटेरियम में रखा है. (Photo: Ashwin Satyadev)

इस कैप्सूल की खास बातें...

  • नाम: सोयुज 7K-ST नंबर 16L (डिसेंट मॉड्यूल)
  • आकार: गोलाकार, व्यास करीब 2.2 मीटर
  • वजन: लगभग 2,950 किलो
  • हीट शील्ड: अंतरिक्ष से आते वक्त 1600 डिग्री तापमान सहने की क्षमता.
  • पैराशूट: तीन बड़े पैराशूट और अंत में रेट्रो रॉकेट जो लैंडिंग से ठीक पहले फायर होते हैं ताकि झटका कम हो.
  • सीटें: तीन अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खास शॉक-एब्जॉर्बिंग सीटें.

यह कैप्सूल आज भी रूस में संरक्षित है. कई संग्रहालयों में सोयुज कैप्सूल की रेप्लिका दिखाई जाती हैं.

Rakesh Sharma Descent Capsule

भारत-रूस अंतरिक्ष दोस्ती आज भी जारी

  • 1984 के बाद भारत ने अपना अंतरिक्ष कार्यक्रम तेज किया.
  • चंद्रयान, मंगलयान और गगनयान में भी रूस की मदद मिली.
  • गगनयान के लिए चारों भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग रूस में ही हुई
  • रूस भारत को क्रायोजेनिक इंजन तकनीक दे चुका है.

राकेश शर्मा कहते हैं कि रूस ने न सिर्फ मुझे अंतरिक्ष भेजा, बल्कि भारत को आत्मविश्वास दिया कि हम भी यह कर सकते हैं. आज जब भारत अपना गगनयान 2026 में लॉन्च करने जा रहा है, तो उसकी नींव 41 साल पहले रूस ने रखी थी. वो सोयुज कैप्सूल सिर्फ एक लौह यान नहीं था, बल्कि भारत के अंतरिक्ष सपने का पहला कदम था.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement