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सुंदर कार्य, सुंदर चरित्र और सुंदर प्रयोजन... रामचरित मानस में हनुमानजी के वर्णन वाला प्रसंग सुंदर कांड क्यों कहलाता है?

सुंदर कांड के सुंदर नाम पड़ने के अनेक कारण हैं. पहला तो यह कि इसका पूरा प्रसंग मनभावन है. जैसे 'जामवंत के वचन सुहाए. सुनी हनुमंत हृदय अति भाए.' इसकी शुरुआत ही मनभावन तरीके से हो रही है और मनभावन से ही उपसंहार है. ‘यथा निज भवन गवनेउ सिंधु श्री रघुपतिहि यह मन भायउ’ इससे सुंदर नाम पड़ा.

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सुंदर कांड श्रीरामचरित मानस का सबसे अधिक मनोहारी प्रसंग है
सुंदर कांड श्रीरामचरित मानस का सबसे अधिक मनोहारी प्रसंग है

ज्येष्ठ मास के सभी मंगलवार बहुत पवित्र माने गए हैं और इस दौरान हनुमानजी की आराधना का खास महत्व है. जगह-जगह भंडारों के आयोजन होते हैं और साथ ही कई श्रद्धालु हनुमान चालीसा का पाठ भी करते हैं. हनुमान जी की आराधना के लिए खासतौर पर सुंदर कांड के पाठ का भी महत्व बताया जाता है. रामायण और रामचरित मानस में शामिल सुंदरकांड का महत्व इसलिए भी अधिक है, क्योंकि एक तो इसमें हनुमान जी के चरित्र का बहुत सुंदर वर्णन है और दूसरा यह की देवी सीता का पहली बार ही पता चलता है. 

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सवाल यह उठता है कि सुंदर कांड को सुंदर क्यों कहा गया और किस आधार पर इसका नाम पड़ा? अध्यात्म रामायण के अंतिम श्लोक के प्रथम चरण में रामायणं जन मनोहर मादिकाव्यम अर्थात रामायण को जन मनोहर(लोगों के मनों को हरने वाली, बहुत प्रिय ) आदि काव्य कहा गया है. समस्त रामायण ही मनोहर है. उसके अंदर सुंदरकांड अत्यंत मनोहर है. जिस प्रकार महाभारत का विराट पर्व सर्वश्रेष्ठ अंश है, उसी प्रकार रामायण में सुंदरकांड सर्वश्रेष्ठ अंश है. इसके श्रेष्ठ होने का कारण बतलाते हुए कहा गया है- 

"सुन्दरे सुंदरो राम: सुन्दरे सुन्दरी कथा.
सुन्दरे सुन्दरी सीता सुन्दरे किन्न सुन्दरम्."

अर्थात सुंदरकांड में राम सुन्दर हैं, कथाएं सुंदर हैं और सीता सुंदर हैं इसलिए सुंदर कांड बहुत सुंदर है.

इस विषय पर और प्रकाश डालते हुए प्रयागराज स्थित विशालाक्षी शक्तिपीठ के अध्यक्ष, अखंडानंद जी महाराज बताते हैं कि सुंदरकांड में प्रधान दो चरित्र हैं, सीताजी और हनुमानजी. हनुमान जी तो भक्त हैं, पर प्रश्न उठता है कि सीता जी क्या हैं? असल में श्रीराम और सीताजी एक-दूसरे से अलग नहीं हैं. ‘गिरा अरथ जल बीचि सम कहियत भिन्न न भिन्न’. देवी सीता शक्ति हैं और श्रीराम शक्तिमान. एक होने पर भी शक्ति शक्तिमान की भक्त है. ऐसे में राम ही सीता बनकर सुंदर हो रहे हैं. श्रीराम  तापनीयोपनिषद में कहा गया है 
‘यो ह वै श्रीरामचंद्र: स भगवान या जानकी भूर्भुव: स्वस्तस्यै वै नमो नमः’. यानी कि श्री रामचंद्रजी साक्षात भगवान हैं और जानकी जी भूर्भुवः स्वरूप हैं , इसलिए उन्हें नमस्कार है.

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इसी तरह पंडित विजयानन्द त्रिपाठी जी कहते हैं, 
मनभावन कांची पुरी हनुमत चरित्र ललाम.
सुंदर सानुकथा तथा ताते सुंदर नाम...

इस कांड के सुंदर नाम पड़ने के अनेक कारण हैं. पहला तो यह कि इसका पूरा प्रसंग मनभावन है. जैसे 'जामवंत के वचन सुहाए. सुनी हनुमंत हृदय अति भाए.' इसकी शुरुआत ही मनभावन तरीके से हो रही है और मनभावन से ही उपसंहार है. ‘यथा निज भवन गवनेउ सिंधु श्री रघुपतिहि यह मन भायउ’ इससे सुंदर नाम पड़ा. दूसरा यह कि पांचवा सोपान पांचवी मोक्ष पुरी कांची  है, जिस तरह कांचीपुरी के दो भाग हैं शिव कांची और विष्णु कांची, इसी तरह इस काल में दो चरित्र है पूर्वार्ध में हनुमत चरित्र उतरार्द्ध में रामचरित्र . इसलिए हरि हरात्मक होने से भी इसका नाम सुंदर पड़ा.

तीसरे इसमें रामायण के श्रीरत्न हनुमान जी का चरित्र है इसलिए भी सुंदर नाम पड़ा. चौथा त्रिकुटाचल के तीन शिखर हैं नील, सुंदर और सुबेल. वहीं इस कांड में सुंदर शिखर संबंधी कथा है, जिस पर अशोक वाटिका भी थी, इसलिए भी रामायण के इस भाग का नाम सुंदर कांड पड़ा. इस कांड में सभी कुछ सुंदर है. इस पार 'सिंधु तीर एक भूधर सुंदर' उस पार 'कनक कोटि विचित्र मनिकृत सुन्दरायतन घना'.

जिस मुद्रिका को लेकर हनुमान चले वह सुंदर. तुलसी बाबा लिखते हैं, 'तब देखि मुद्रिका मनोहर राम नाम अंकित अति सुंदर.' और 'सुनहु तात मोहि अतिशय भूखा, लागि देख सुंदर फल रुखा.' यानी इस कथा में हर जगह सुंदर शब्द का प्रयोग किया है.

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पांचवां कारण यह है कि यह कथा अति सुंदर है. 'सावधान मन करि पुनि संकर. लागे कहन कथा अति सुंदर ...' अतः सुंदर नाम यहां से भी आया है. इस कांड में एक भी प्रसंग ऐसा नहीं है जिससे आदर न उत्पन्न होता हो. मन प्रसन्न न होता हो, बहुत प्रसंग ऐसे हैं जिससे हृदय खुशी से भी द्रवित हो उठता है और दुख से भी. जब हनुमान जी पहली बार सीता जी को अशोक वाटिका में देखते हैं, तो पाठक भी उनकी आंखों से देवी सीता का दर्शन कर लेता है. यह क्षण खुशी का भी है कि आखिरकार सीताजी का पता मिल गया. वहीं इसी क्षण में दुख होता है कि सीता जी का अपहरण कर उन्हें यहां रखा गया है, जो अपने स्वामी श्रीराम से अलग होकर कितनी दुखी हैं. अन्य कांडों में यह बात नहीं है.

सुंदरकांड इसलिए भी सुंदर है, क्योंकि इस कांड में हनुमान जी को भगवती पराशक्ति माता सीता के दर्शन हुए. हनुमान जी ने 6 काम किया. एक-एक कार्य के बदले एक-एक आशीर्वाद माता ने दिया. 6 काम ये हैं  
1.मुद्रिका दी 
2.श्री रामचंद्र जी के गुणों का वर्णन किया 
3.कथा कही
4.विश्वास उत्पन्न किया 
5.संदेश कहा 
6.धीरज दिया .

इसके बदले में सीताजी ने आशीर्वाद भी छह दिए. बल, शील, अजर , अमर, गुण निधि और रघुनायक जाप.

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सुंदरकांड का सबसे खास बात यह है कि जब भी किसी अभीष्ट कामना के लिए इसका अनुष्ठान किया जाता है तो अनुष्ठान करने वाले की अभीष्ट सिद्धि होती है. दूसरी बात सुंदरकांड की कथा पात्रों के स्वभाव और आचरण आदि में आध्यात्मिकता और रसों का ऐसा खूबसूरत संयोग दिखाई देता है कि उसके महत्व से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसलिए सुंदर कांड सबसे सुंदर है.

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