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Aja Ekadashi 2025: अजा एकादशी के व्रत पर आज पढ़ें ये खास कथा, श्रीहरि की बनी रहेगी कृपा

Aja Ekadashi 2025: भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली अजा एकादशी का व्रत अत्यंत शुभ और फलदायी माना जाता है. धर्मशास्त्रों में वर्णन है कि इस व्रत का विधिपूर्वक पालन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है और जीवन के समस्त पापों का नाश होता है.

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अजा एकादशी 2025
अजा एकादशी 2025

Aja Ekadashi 2025: 19 अगस्त 2025 यानी आज अजा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है. हर वर्ष भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के मौके पर अजा एकादशी का व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन का व्रत रखने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की उपासना करनी चाहिए. साथ ही, अजा एकादशी के दिन कथा सुनना भी बहुत ही फलदायी माना जाता है. 

अजा एकादशी व्रत कथा (Aja Ekadashi 2025 Katha)

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में चक्रवर्ती सम्राट हरिश्चंद्र राज करते थे.  उनके राज्य में किसी भी प्रकार के वैभव या सुख-सुविधा की कमी नहीं थी.  किंतु समय के साथ ऐसा दौर आया जब उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया, राज्य, परिवार और सुख-संपत्ति सभी उनसे छिन गए. परिस्थितियां इतनी कठिन हो गईं कि उन्हें एक चांडाल के यहाँ दास बनकर जीवन व्यतीत करना पड़ा.

इसी दौरान एक दिन गौतम ऋषि गांव में पधारे.  राजा हरिश्चंद्र ने उनके चरणों में प्रणाम किया और अपनी व्यथा सुनाई. ऋषि ने करुणा भाव से उनकी समस्या सुनी और उन्हें भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी. उन्होंने कहा कि इस व्रत के प्रभाव से सभी पाप नष्ट होते हैं और खोया हुआ जीवन-सुख पुनः प्राप्त होता है.

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ऋषि की बात मानकर हरिश्चंद्र ने श्रद्धापूर्वक अजा एकादशी का व्रत किया और भगवान विष्णु की आराधना में लीन हो गए. इस व्रत के प्रभाव से उनके समस्त पाप मिट गए और उन्हें पुनः राजपाट तथा परिवार प्राप्त हुआ. अंततः भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें मृत्यु के बाद वैकुण्ठधाम की प्राप्ति भी हुई.

अजा एकादशी व्रत विधि (Ajja Ekadashi Vrat Vidhi)

इस दिन प्रातःकाल स्नान करके व्रत का संकल्प लें. फिर, तत्पश्चात गंगाजल का छिड़काव कर घर को शुद्ध करें. उसरके बाद, पूजा स्थल पर भगवान श्री विष्णु की प्रतिमा अथवा चित्र विराजमान करें. उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं और पीले पुष्प अर्पित करें.  गंगाजल से अभिषेक करने के बाद दीपक और धूप प्रज्वलित करें. दिनभर "ऊं नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जप करते रहें. संध्याकाल में विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या श्रीहरि की आरती करें. अगले दिन द्वादशी पर व्रत का पारण करें और ब्राह्मणों को अन्न और वस्त्र दान दें.

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