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Guru Nanak Jayanti 2025: 4 या 5 नवबंर, कब है गुरु नानक जयंती? जान लें गुरुपर्व की सही डेट

Guru Nanak Jayanti 2025: गुरु नानक जयंती सिख धर्म का सबसे महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है. यह दिन सिख धर्म के प्रथम गुरु और संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस पर्व को “गुरुपरब”, “प्रकाश पर्व” या “गुरु नानक गुरुपरब” भी कहा जाता है.

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Guru Nanak Jayanti 2025
Guru Nanak Jayanti 2025

गुरु नानक जयंती सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी के जन्म दिवस के रूप में मनाई जाती है. यह सिखों का सबसे प्रमुख और पवित्र त्योहार है, जिसे ‘गुरुपरब’ या ‘प्रकाश पर्व’ भी कहा जाता है. यह सिख धर्म का सबसे प्रमुख पर्व है. यह पर्व हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार यह अत्यंत शुभ तिथि मानी जाती है. आइये जानते हैं इस बार यह पर्व कब मनाया जाएगा, और इस दिन का महत्व क्या है.

इस बार गुरु नानक जयंती 5 नवंबर को मनाई जाएगी. ये गुरु नानक देव जी की 556वीं जन्म वर्षगांठ होगी. गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 को चलवंडी गांव में हुआ था, जो अब ननकाना साहिब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित है. आज यह स्थान सिखों के लिए अत्यंत पवित्र तीर्थ है. यहीं से गुरु नानक देव जी ने अपने आध्यात्मिक और सामाजिक सुधार के संदेश की शुरुआत की थी .  

कैसे मनाई जाती है गुरु नानक जयंती

जयंती से दो दिन पहले गुरु ग्रंथ साहिब का निरंतर 48 घंटे का पाठ किया जाता है, जिसे “अखंड पाठ” कहते हैं. उत्सव से एक दिन पहले शोभायात्रा निकाली जाती है. इसमें “पंज प्यारे” (सिख धर्म के पांच प्रियजन) सबसे आगे चलते हैं, उनके पीछे श्रद्धालु कीर्तन करते हैं और निशान साहिब (सिख ध्वज) लहराते हैं. गुरु नानक जयंती के दिन सभी गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन दरबार और प्रवचन आयोजित होते हैं. इस दिन गुरु नानक देव जी के जीवन, विचारों और शिक्षाओं को याद किया जाता है. 

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लंगर 

लंगर मूल रूप से फारसी शब्द है. यह गुरु नानक जयंती का अहम हिस्सा है. लंगर का अर्थ है किसी भी जरूरतमंद को भोजन कराना , चाहे उसकी जाति, वर्ग, धर्म या लिंग कुछ भी हो, उसका स्वागत हमेशा गुरु के अतिथि के रूप में किया जाता है. 

कहा जाता है कि गुरु नानक जब छोटे थे, तब उनके पिता ने उन्हें कुछ पैसे दिए और बाजार जाकर 'सच्चा सौदा' (अच्छा सौदा) करने को कहा. उनके पिता अपने गांव के एक जाने-माने व्यापारी थे और चाहते थे कि नानक सिर्फ 12 साल की उम्र में ही व्यापार सीख लें. सांसारिक सौदेबाजी करने के बजाय, गुरु ने उन पैसों से भोजन खरीदा और कई दिनों से भूखे संतों के एक बड़े समूह को भोजन कराया. उन्होंने इसे ही "सच्चा व्यापार" कहा. इसलिए गुरु नानक जयंती पर, जुलूस और समारोहों के बाद गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन आज भी किया जाता है. 

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