
हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष होली का पर्व चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है. इस वर्ष 17 मार्च गुरुवार को होलिका दहन किया जाएगा. वहीं, 18 मार्च शुक्रवार को रंगवाली होली खेली जाएगी.
ज्योतिषाचार्य डॉ विनोद बताते हैं कि इस त्योहार को बसंत ऋतु के आगमन का स्वागत करने के लिए मनाते हैं. बसंत ऋतु में प्रकृति में फैली रंगों की छटा को ही रंगों से खेलकर वसंत उत्सव होली के रूप में दर्शाया जाता है. रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है. फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है.
राशि के अनुसार खेलें होली
रंगों का हमारे जीवन में विशेष स्थान होता है. ये जितना सकारात्मक प्रभाव डालते हैं, उतना ही नकारात्मक भी. इसलिए ज्योतिषशास्त्र हो या वास्तुशास्त्र हर जगह रंगों का चयन बहुत ही सोच-समझकर करने के लिए बताया गया है. अगर अपनी राशि अनुसार रंगों का प्रयोग किया जाए तो ग्रह दोष अपने आप ही खत्म होने लगते हैं.
मेष और वृश्चिक इन दोनों ही राशियों का स्वामी मंगल है और मंगल का रंग लाल है. इसलिए इन दोनों ही राशि वालों को होली के दिन लाल रंग के गुलाल से होली खेलनी चाहिए. आप चाहें तो गुलाबी रंग से भी होली खेल सकते हैं.
वृष और तुला इन दोनों ही राशियों के स्वामी शुक्र है जिन्हें भोर का तारा या चमकता तारा भी कहा जाता है. शुक्र का रंग सफेद और गुलाबी बताया गया है. होली पर सफेद रंग से होली खेलना संभव नहीं है. इसलिए आप सिल्वर रंग का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसके अलावा गुलाबी रंग से भी होली खेल सकते हैं.
मिथुन और कन्या राशि के स्वामी ग्रहों के राजकुमार कहे जाने वाले बुध ग्रह हैं. बुध का रंग हरा माना गया है. ऐसे में शुभ फलों की प्राप्ति के लिए और जीवन में सुख-शांति बनी रहे, इसके लिए इन दोनों राशि वालों को हरे रंग से होली खेलनी चाहिए.
कर्क राशि वालों के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं. चंद्रमा का रंग सफेद है. इसलिए कर्क राशि के लोग सिल्वर कलर से होली खेल सकते हैं. लेकिन चूंकि इस रंग में बहुत अधिक केमिकल मिला होता है. इसलिए आप चाहें तो किसी भी रंग को दही में मिलाकर होली खेल सकते हैं.
सिंह राशि वालों के ग्रह स्वामी सूर्य देव हैं. सूर्य का रंग नारंगी है. इसलिए होली पर सिंह राशि वालों को भी पीले या नारंगी रंग के गुलाल से होली खेलनी चाहिए.
धनु और मीन इन दोनों ही राशियों के स्वामी देव गुरु बृहस्पति हैं और ज्योतिष शास्त्र में गुरु का रंग पीला बताया गया है. इसलिए इन दोनों ही राशि के लोगों को होली पर पीले रंग से होली खेलनी चाहिए. इससे आपके जीवन में शुभता आएगी.
मकर और कुंभ इन दोनों राशि के लोगों के स्वामी ग्रह शनि देव हैं. शनि का रंग काला और नीला बताया गया है. ऐसे में होली पर आप शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए और हर तरह से ग्रह दोष से छुटकारा पाने के लिए नीले रंग से होली खेल सकते हैं.

होली की पौराणिक कथाएं
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक राक्षस राजा था. उसने अहंकार के मद में खुद के ईश्वर होने का दावा किया था. उसने राज्य में ईश्वर के नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था. लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी. बालक प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा. होलिका के पास यह वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती. भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप ख़ुद होलिका ही आग में जल गयी. अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुक़सान नहीं हुआ.
रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है. कथा के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं. माँ यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से उसका रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा. इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है.
यह भी कहा जाता है कि भगवान शिव के श्राप के कारण धुण्डी नामक राक्षसी को पृथु के लोगों ने इस दिन भगा दिया था, जिसकी याद में होली मनाते हैं. इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल कर भस्म कर दिया था और उनकी राख को अपने शरीर पर मलकर नृत्य किया था. इसके बाद कामदेव की पत्नी रति के दुख से द्रवित होकर भगवान शिव ने कामदेव को पुनर्जीवित कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर देवताओं ने रंगों की वर्षा की. इसी कारण होली की पूर्व संध्या पर दक्षिण भारत में अग्नि प्रज्जवलित कर उसमें गन्ना, आम की बौर और चंदन डाले जाते हैं. यहां गन्ना कामदेव के धनुष, आम की बौर कामदेव के बाण, प्रज्जवलित अग्नि शिव द्वारा कामदेव का दहन और चंदन की आहुति कामदेव को आग से हुई जलन को शांत करने का प्रतीक है.