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Dhumavati Jayanti 2025: धूमावती जयंती आज, जानें इनकी पूजन विधि और पौराणिक कथा

Dhumavati Jayanti 2025: मां धूमावती के एक हाथ में तलवार है. देवी के बाल बिखरे हुए हैं और इनका स्वरूप काफी रौद्र और भयानक है. मां धूमावती की पूजा से पापियों और शत्रुओं का नाश होता है. इनकी आराधना से व्यक्ति के जीवन से विपत्ति, रोग आदि के संकट दूर हो जाते हैं.

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मां धूमावती
मां धूमावती

Dhumavati Jayanti 2025: आज धूमावती जयंती है. यह जयंती हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. जो साधक तंत्र-साधना में दिलचस्पी रखते हैं, उनके लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है. धूमावती का अर्थ है 'धुएं के समान'. मां धूमावती शिव की पत्नी सती या पार्वती का ही एक उग्र रूप हैं. देवी धूमावती सांसारिक मोह-माया से परे हैं. इन्हें विपत्ति, त्याग, विवेक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक माना जाता है. आइए आपको मां धूमावती की पूजन विधि और पौराणिक कथा बताते हैं.

मां धूमावती का स्वरूप
मां धूमावती के एक हाथ में तलवार है. देवी के बाल बिखरे हुए हैं और इनका स्वरूप काफी रौद्र और भयानक है. मां धूमावती की पूजा से पापियों और शत्रुओं का नाश होता है. इनकी आराधना से व्यक्ति के जीवन से विपत्ति, रोग आदि के संकट दूर हो जाते हैं. लेकिन मां धूमावती की पूजा सुहागिन महिलाओं के लिए वर्जित है.

धूमावती जयंती की पूजन विधि
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ-सुथरे कपड़े पहनें. इसके बाद सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करें. फिर पूरे घर को गंगाजल से पवित्र करें. इसके बाद पूजा में मां को सफेद रंग के फूल, आक के फूल, और सफेद रंग के वस्त्र अर्पित करें. इसके बाद पूजा में गंगाजल, कुमकुम, अक्षत, धतूरा, काले तिल, नींबू, आक, सुपारी, दूर्वा, फल, शहद, कपूर, चंदन, नारियल, पंचमेवा, पूजा में अवश्य शामिल करें. इसके बाद देवी के समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित करें. इस दिन की पूजा में सफेद तिल अवश्य शामिल करें. आखिर में धूमावती अष्टोत्तर शतनाम, कवच और स्तोत्र का पाठ करें.

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धूमावती जयंती की पौराणिक कथा
मां धूमावती को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. इनमें सबसे प्रमुख भगवान शिव और माता पार्वती की कथा है. कहते हैं एक बार देवी पार्वती ने भोलेनाथ से अपने लिए भोजन की व्यवस्था करने को कहा. लेकिन जब तक महादेव देवी के लिए खाने का बंदोबस्त कर पाते, उनकी भूख का बांध टूट गया. देवी इस कदर व्याकुल हो गईं कि उन्होंने अपने पति महादेव को ही निगल लिया. लेकिन शिवजी के गले में विष होने के कारण मां पार्वती उन्हें गले से नीचे नहीं उतार सकीं. उनके शरीर से धुआं निकलने लगा. इसी जहर के प्रभाव से उनका रूप बेहद ही भयंकर दिखने लगा.

इसके बाद सभी देवी-देवताओं ने देवी पार्वती से भगवान शिव को मुक्त करने का अनुरोध किया. मुक्त होने के बाद शिवजी ने क्रोध में आकर देवी को वृद्ध विधवा होने का श्राप दिया था. शिवजी ने देवी सती से कहा कि तुम्हारे इस रूप को दुनिया धूमावती देवी के नाम से जानेगी. यही वजह है कि सुहागन महिलाओं के लिए मां धूमावती की पूजा वर्जित है. सुहागनों के लिए इनकी पूजा अशुभ मानी जाती है.

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