Basant Panchami 2024: माघ शुक्ल पंचमी तिथि पर बसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है. यह त्योहार सृष्टि के रचनाकार ब्रह्माजी की पुत्री और कला, बुद्धि और ज्ञान की अधिष्ठात्री मां सरस्वती को समर्पित है. मां सरस्वती की महिमा का बखान तीनों लोकों में होता है. ब्रह्मा ने सृष्टि में जान फूंकने के लिए ही मां सरस्वती की रचना की थी. देवी सरस्वती अपने हाथों में वीणा लेकर प्रकट हुई थीं, इसलिए उन्हें वीणावादिनी कहा जाता है. मां सरस्वती के वीणा से निकले मधुर संगीत से ही सृष्टि के जीव-जन्तुओं को वाणी मिली है. आइए आपको बसंत पंचमी की पौराणिक कथा बताते हैं.
मां सरस्वती की कथा
बसंत पंचमी का त्योहार कला और शिक्षा की देवी मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है. कहते हैं कि देवी सरस्वती इसी शुभ तिथि में अवतरित हुई थीं. एक पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने सृष्टि का प्रारंभ किया था. एक बार ब्रह्माजी सृष्टि का भ्रमण करने निकले तो उन्हें सारा संसार मूक नजर आया. हर जगह खामोशी छाई थी. ब्रह्माजी अपने सर्जन से संतुष्ट नहीं थे.
ब्रह्माजी को लगता था कि कुछ कमी रह गई है, जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है. तब ब्रह्माजी ने श्री हरि विष्णु से आज्ञा लेकरअपने कमण्डल से जल छिड़का. जैसे ही जल की छीटें पृथ्वी पर बिखरीं तो उसमें कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ. यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था, जिसके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर मुद्रा में था. अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी.
मां सरस्वती की वीणा ने फूंकी सृष्टि में जान
तब ब्रह्माजी ने देवी से वीणा बजाने का आग्रह किया. जैसे ही देवी ने वीणा बजाना शुरू किया, पूरे संसार में एक मधुर ध्वनि फैल गई. संसार के तमाम जीव-जन्तुओं को वाणी मिल गई. तब ब्रह्माजी ने उन्हें वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया. मां सरस्वती की उपासना से विद्या, कला और बुद्धि की प्राप्ति होती है. चूंकि देवी बसंत पंचमी के दिन अवतरित हुई थीं, इसलिए इसे मां सरस्वती का जन्मदिन समझकर मनाया जाता है.