राजस्थान के टोंक के सुरेली गांव में तेजादशमी मेले के दौरान ऐसा नजारा देखने को मिला, जिसे देखकर लोग हैरान रह गए. यहां तेजाजी के मेले में शामिल घोड़ला (जिसे गोटिया भी कहा जाता है) ने अपनी ज़ुबान पर जिंदा कोबरा से डसवाया. दंश लगते ही वह अचानक अचेत होकर गिर पड़ा. कुछ देर बाद लोकगीतों और भजनों के बीच बिना किसी इलाज के दोबारा होश में आ गया. यह नज़ारा देखने वाले श्रद्धालु दंग रह गए.
टोंक जिले के सुरेली गांव में तेजादशमी के दिन वार्षिक मेला लगा था. यहां कोबरा सांप को बिल के बाहर पूजा अर्चना व अनुष्ठान कर चार दिन पहले बाकायदा न्योता दिया जाता है. फिर काले नाग (कोबरा) को फूलों से सजी टोकरी यानी पालकी में बैठाकर तेजाजी के उस चबूतरे पर लाया जाता है. यहां दिनभर चलने वाले आयोजन के दौरान तेजाजी के घोड़ले, जिन्हें गोटिया भी कहा जाता है, उनके द्वारा अपनी ज़ुबान पर डसवाया जाता है.

कोबरा के दंश से अचेत होने के बाद गोटिया तेजाजी के लोकगीतों के बीच बिना किसी उपचार के वापस होश में भी आ जाता है. गोटिया के इस करतब को देखने के लिए आसपास के इलाके के हजारों श्रद्धालु वहां पहुंचते हैं. चिकित्सा विज्ञान को चुनौती देने वाले इस दृश्य के सामने शीश नवाते हैं.
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इस दौरान गोटिया द्वारा कोबरा सांप को अतिथियों या फिर श्रद्धालुओं के गले में भी डाल दिया जाता है. मान्यता है कि जब यह सब कुछ चलता है, उस समय साक्षात तेजाजी गोटिया के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं. उनको मिले वरदान के चलते ही गोटिया को कोबरा सांप का दंश होने के बाद भी शरीर में फैलने वाला विष बेअसर हो जाता है.
चिकित्सा विज्ञान की मानें तो सांपों में तीन तरह के विष पाए जाते हैं. उनमें से एक न्यूरोटॉक्सिक विष होता है, जो कोबरा सांप में पाया जाता है. अगर चिकित्सकों की मानें तो कोबरा सांप का दंश होने पर व्यक्ति अचेत होने लगता है, उसकी सांसें फूलने लग जाती हैं. ऐसे में 45 मिनिट से 1 घंटे के भीतर अगर पीड़ित को एंटी वेनम नहीं लगाई जाती है तो उसकी मौत होना लगभग तय है. चिकित्सक बताते हैं कि सुपरफिशियल बाइट में पीड़ित के शरीर में विष कम मात्रा में जाता है, ऐसे में उसके जीवित रहने के अवसर ज्यादा बने रहते हैं.