कभी-कभी जिंदगी इतनी बेरहम हो जाती है कि उसकी हर सांस दर्द में बदल जाती है, लेकिन कुछ लोग उस दर्द को भी ताकत बना लेते हैं. जालोर की बेटी प्रियंका सिंह उर्फ पीहू ने भी वही किया. 27 साल की उम्र में जब कैंसर ने उनका पूरा शरीर तोड़ दिया था, तब भी उन्होंने अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखी. उन्होंने जिंदगी से हार मानने के बजाय मौत से दोस्ती कर ली.
ICU की वो शाम, जिसने सबको रुला दिया
25 अगस्त की शाम उदयपुर के अस्पताल का कमरा. चारों तरफ मशीनों की आवाज, सफेद कपड़ों में दौड़ते डॉक्टर और आंखों में बेचैनी लिए खड़े परिजन. अचानक प्रियंका ने धीमी आवाज में पिता का हाथ पकड़ा और बोलीं -पापा, एक केक लाओ… मैं अपने आखिरी पल हंसते हुए जीना चाहती हूं. यह सुनकर सबकी रूह कांप गई. वहां मौजूद हर शख्स की आंखें छलक पड़ीं. लेकिन प्रियंका का चेहरा… वो आज भी हंस रहा था. थोड़ी ही देर में ICU में छोटा-सा केक लाया गया. उस पर लिखा था – पीहू-लकी.
चेहरे पर फैली मासूम मुस्कान के साथ प्रियंका ने केक काटा. पहले टुकड़े पति लक्ष्यराज के मुंह में रखा, फिर सबको खिलाया. कहते-कहते उनकी आवाज थोड़ी कांप गई मैं रोते हुए नहीं, हंसते हुए विदा लेना चाहती हूं. उस एक वाक्य ने वहां मौजूद हर इंसान को भीतर तक हिला दिया. डॉक्टर और नर्सें चुपचाप आंसू पोंछ रही थीं. गैलरी में खड़े ससुराल पक्ष के लोग फफक कर रो पड़े. पर प्रियंका… वो सभी को हिम्मत देती रहीं.
लाडली बेटी, जिसने सबका दिल जीता
प्रियंका जालोर जिले के आहोर तहसील के पचानवा गांव की रहने वाली थीं. पिता नरपत सिंह पश्चिम बंगाल के हुबली में ज्वेलरी व्यवसायी हैं. चार भाई-बहनों में तीसरे नंबर पर रही प्रियंका परिवार की सबसे प्यारी संतान थीं. पढ़ाई में हमेशा अव्वल, उन्होंने BBA किया और CA इंटर तक पहुंचीं. फाइनल की तैयारी कर ही रही थीं कि जनवरी 2023 में उनकी शादी रानीवाड़ा के भाटवास गांव के बिल्डर लक्ष्यराज सिंह से हुई. नई-नवेली दुल्हन जब मायके से ससुराल पहुंची तो हर कोई कहता लक्ष्य को तो सच में लक्ष्मी मिल गई है. लेकिन शायद किस्मत को कुछ और ही मंजूर था.
जब जिंदगी ने करवट बदली
शादी के कुछ समय बाद प्रियंका के पैरों में दर्द शुरू हुआ. सबने इसे मामूली समझा, लेकिन धीरे-धीरे यह दर्द हड्डियों में गहराने लगा. फरवरी 2023 में मुंबई में कराई गई MRI ने सबकुछ बदल दिया. रिपोर्ट में लिखा था हड्डियों का कैंसर.फिर शुरू हुआ दर्द और इलाज का लंबा सफर. मार्च 2023 में पहली सर्जरी, जून 2024 में दूसरी और अगस्त 2024 में तीसरी सर्जरी उदयपुर में हुई. कीमोथैरपी की पीड़ा, बालों का झड़ना, दवाइयों का असर… सबकुछ झेला. लेकिन कभी शिकायत नहीं की. पिता नरपत सिंह बताते हैं कि वो खुद दर्द में होती थी, लेकिन हमें संभालती थी. कहती पापा, रोइए मत, सब ठीक हो जाएगा.
मौत सामने थी, पर मुस्कान कभी नहीं गई
प्रियंका जानती थीं कि वक्त सीमित है. डॉक्टरों ने साफ कह दिया था कि ज्यादा दिन नहीं बचे. लेकिन उन्होंने हार मानना मंजूर नहीं किया. ICU में जन्मदिन का छोटा-सा जश्न इसी जिद का नतीजा था. रिश्तेदार और ससुराल वाले सब वहां मौजूद थे. आंसू रोकना मुश्किल था, लेकिन प्रियंका सबको मुस्कुराने पर मजबूर कर रही थीं. देखना, मैं जल्दी ठीक होकर घर आऊंगी. – यह कहते हुए उनकी आंखों में एक अजीब चमक थी.
आखिरी संवाद, जिसने सबको तोड़ दिया
2 सितंबर की दोपहर उनकी हालत अचानक बिगड़ने लगी. छोटे भाई जयपाल पास बैठे थे. प्रियंका ने धीरे से कहा कि तूने खाना नहीं खाया है, जाकर खा ले… मैं कहीं नहीं जा रही. कुछ ही देर बाद प्रियंका ने मुस्कान के साथ आंखें मूंद लीं. परिवार के आंसुओं के बीच जैसे उनकी आत्मा कह रही हो – मैं हार कर नहीं, मुस्कुराकर जा रही हूं.
डॉक्टर भी हुए भावुक
इलाज में शामिल एक सीनियर डॉक्टर कहते हैं कि कैंसर के अनगिनत मरीज देखे हैं, लेकिन प्रियंका जैसी जिजीविषा कभी नहीं देखी. उसने दर्द छुपाकर जीना सिखाया. उसके चेहरे की मुस्कान आखिरी पल तक कायम रही.
परिवार की यादें और सीख
पिता आज भी रोते हुए कहते हैं कि जब भी आंखें बंद करता हूं, उसकी हंसी सुनाई देती है. लगता है जैसे वो यहीं कहीं आसपास है, बस दिखाई नहीं देती. हमारी लाड़ली ने हमें सिखाया कि चाहे हालात कितने भी मुश्किल हों, जीना मुस्कुराकर चाहिए. पति लक्ष्यराज के लिए प्रियंका सिर्फ पत्नी नहीं, बल्कि प्रेरणा बन गईं. वो कहते हैं कि उसने मुझे जिंदगी का सबसे बड़ा सबक दिया – वक्त छोटा हो या लंबा, जीना मुस्कुराकर चाहिए. अब जब भी मुश्किल आती है, मैं उसकी हंसी याद करता हूं. प्रियंका चली गईं, लेकिन उनकी हिम्मत और मुस्कान ने अमर कहानी लिख दी. अब जब भी कोई उनकी याद करेगा, उसके दिल में यही गूंजेगा मैं रोते हुए नहीं, हंसते हुए विदा लेना चाहती हूं.