एक तरफ परिवारवाद की सियासत और दूसरी तरफ मोदी का परिवार वाला सियासी नारा है. अपने फायदे के लिए दिया गया बयान कब दूसरे के लाभ की जमीन तैयार कर दे, सियासत में इसका ध्यान रखना होता है. लेकिन तब क्या लालू प्रसाद यादव से वही चूक हो गई है, जो 2014 में मणिशंकर अय्यर और 2019 में राहुल गांधी से हुई ?