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यूपी में योगी को मिल गया फ्री हैंड? घटनाएं, जो ऐसा इशारा कर रही हैं

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और केशव प्रसाद मौर्य के बीच चल रही जंग निर्णायक मोड़ पर है. बुधवार की घटनाओं का विश्लेषण करें तो ऐसा लगता है कि पार्टी ने योगी के नेतृत्व पर मुहर लगा दी है. आइये देखते हैं ऐसा क्यूं है ?

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बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ
बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ

उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी संकट में है. लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त के बाद से पार्टी वैसे ही बैकफुट पर थी, अब प्रदेश के 2 ताकतवर नेताओं के बीच वर्चस्व की जंग के चलते मिट्टी पलीद होने की नौबत आ गई है. पार्टी की अंदरूनी कलह उस समय चरम पर पहुंच गई जब 14 जुलाई 2024 को लखनऊ में बीजेपी की बैठक चल रही थी. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में सीएम योगी आदित्यनाथ को उनके ही मंत्रिमंडल के कुछ लोगों ने टार्गेट पर लेने की कोशिश की. पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने जो बातें कहीं वो एक तरह से सीएम योगी को चैलेंज थीं.हालांकि योगी ने भी अपने ही अंदाज में जवाब दिया.योगी आदित्यनाथ ने अति आत्मविश्वास को यूपी में खराब प्रदर्शन का कारण बताया. दूसरी तरफ डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने सरकार के संगठन से बड़े होने की बात कही. पर केशव प्रसाद मौर्य कहना चाह रहे थे कि यूपी की योगी सरकार पार्टी से बड़ी हो गई है. इतना तो ठीक था पर कार्यकर्ताओं के लिए उनका आवास हमेशा खुला हुआ है कहकर उन्होंने योगी पर कार्यकर्ताओं से भी दूर होने की तोहमत मढ़ दी. जाहिर है कि मामला इतना बढ़ चुका था कि दिल्ली में बैठकें शुरू हो गईं. केशव प्रसाद मौर्य ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से दिल्ली में मुलाकात की तो प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने पीएम नरेंद्र मोदी से मुलाकात कर प्रदेश की हालत से अवगत कराया. बीजेपी के लिए मुश्किल यह हो गई है कि उत्तर प्रदेश में 10 सीटों पर उपचुनाव होने हैं. कुल सीटों में केवल 2 सीटें ही ऐसी हैं जहां बीजेपी अपने को मजबूत  पा रही है. इन सबके बीच जिस तरह योगी ने इन 10 सीटों को जीतने के लिए सुपर 30 टीम बनाकर तैयारी शुरू कर दी है उससे तो यही लगता है कि बीजेपी ने उनको फ्री हैंड दे दिया है. पर क्या यह सही है आइये देखते हैं.

केशव का ट्वीट क्या कहता है?

पार्टी केशव प्रसाद मौर्य को भी नजरअंदाज नहीं कर सकती है. केशव प्रसाद मौर्य बहुत पुराने भाजपाई हैं. बहुत गरीब परिवार से निकलने वाले मौर्य कहते रहे हैं कि उन्होंने गुजर बसर के लिए बचपन में चाय और अखबार भी बेचा है. उत्तर प्रदेश की जातीय गणित में समाजवादी पार्टी से गैर यादव पिछड़ों को बीजेपी के पक्ष में एकजुट करने में केशव प्रसाद मौर्या का बहुत बड़ा हाथ रहा है. केशव प्रसाद मौर्य की जाति पूरे उत्तर प्रदेश में है. इस जाति की पहचान अलग-अलग नामों से है. जैसे- मौर्य, मोराओ, कुशवाहा, शाक्य, कोइरी, काछी और सैनी. ये सभी मिलाकर उत्तर प्रदेश की कुल आबादी में 8.5 फ़ीसदी हैं.बीजेपी एक बार पिछड़ों के कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को नाराज करने का अंजाम भुगत चुकी है. ऐसे समय में जब पार्टी से पिछड़े वोट छिटक रहे हैं भारतीय जनता पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व कतई नहीं चाहेगा कि एक पिछड़े नेता को किनार लगा दिया या केशव प्रसाद की बातों को नजरअंदाज किया जाए. 

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पर जिस तरह की तस्वीर बन रही है उससे तो यही लगता है कि य़ोगी बनाम केशव की जंग में योगी बहुत आगे निकल चुके हैं. दरअसल सारी लड़ाई अब भाजपा में नंबर 2 की पोजिशन के लिए हो गई है. केशव प्रसाद मौर्य ने कल जेपी नड्डा की मीटिंग के बाद जिस तरह का ट्वीट किया है उससे तो कम से कम यही लगता है कि मौर्य ने समझौता कर लिया है. केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश यादव के ट्वीट पर जवाब देते हुए लिखा है कि-.

'सपा बहादुर श्री अखिलेश यादव जी,भाजपा की देश और प्रदेश दोनों जगह मज़बूत संगठन और सरकार है, सपा का PDA धोखा है. यूपी में सपा के गुंडाराज की वापसी असंभव है, भाजपा 2027 विधानसभा चुनाव में 2017 दोहरायेगी.'

ऊपर के ट्वीट से तो यही लगता है कि केशव प्रसाद मौर्य को यह समझा दिया गया है कि आप 2027 तक इंतजार करिए. क्योंकि केशव प्रसाद मौर्य के इस ट्वीट में 2022 गायब दिख रहा है. सीधे 2017 की बात हो रही है.दरअसल 2017 में बीजेपी को यूपी में सत्ता में लाने का श्रेय खुद केशव लेते रहे हैं. 2022 में चूंकि खुद चुनाव हार गए इसलिए शायद उसका जिक्र नहीं किया है. हो सकता है कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने उसके बाद शिवराज सिंह चौहान की तरह योगी को केंद्र में भेजने का प्रोग्राम बताया हो.

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वैसे भी उपचुनावों तक यूपी में सत्ता बदलने का खेल नहीं हो सकता है. यह हो सकता है कि केशव प्रसाद मौर्य को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बना दिया जाए या उनके विभागों में कुछ परिवर्तन किया जाए. पर इससे ज्यादा कुछ मिलने की उम्मीद नहीं की जा सकती है.

योगी ने उपचुनावों की तैयारी शुरू की पर दोनों डिप्टी सीएम के बिना 

योगी के सामने उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में जीत हासिल कर लोकसभा में हुए नुकसान की भरपाई करने की चुनौती है. इसके लिए सीएम योगी ने स्पेशल 30 की एक टीम भी तैयार की है. हालांकि इसमें दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक को जगह नहीं मिली है. सवाल यह है कि उपचुनावों की तैयार करने का आदेश बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की ओर से आया है? क्या योगी को फ्री हैंड मिल गया है? पर योगी के फ्रीहैंड मिलने पर शक इसलिए हो सकता है क्योंकि उनकी टीम में दोनों उपमुख्यमंत्री नहीं हैं. केंद्रीय नेतृत्व योगी को फ्री हैंड देने के बावजूद दोनों उपमुख्यमंत्रियों को इस तरह किनारे करने का अधिकार शायद ही दे.तो क्या योगी आदित्यनाथ खुद तैयारी शुरू कर दी है?

दरअसल, सीएम योगी ने उपचुनाव के लिए 30 मंत्रियों की अपनी टीम बनाई है. सीएम योगी के स्पेशल 30 में दोनों डिप्टी सीएम शामिल नहीं हैं. इस टीम में उत्तर प्रदेश के दोनों डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक नहीं हैं. करहल सीट की जिम्मेदारी जयवीर सिंह, योगेंद्र उपाध्याय और अजीत पाल सिंह को दी गई है. मिल्कीपुर सीट की जिम्मेदारी सूर्य प्रताप शाही व मयंकेश्वर शरण सिंह, गिरीश यादव और सतीश शर्मा को दी गई है. कटेहरी सीट की जिम्मेदारी स्वतंत्र देव सिंह व आशीष पटेल और दयाशंकर मिश्र को दी गई है. सीसामऊ सीट की जिम्मेदारी सुरेश खन्ना व नितिन अग्रवाल को दी गई है. 

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इनके अलावा फूलपुर सीट की जिम्मेदारी दयाशंकर सिंह व राकेश सचान को दी गई है. मझवां सीट की जिम्मेदारी अनिल राजभर, आशीष पटेल, रविंद्र जायसवाल और रामकेश निषाद को दी गई है. गाजियाबाद सदर सीट की जिम्मेदारी सुनील शर्मा, बृजेश सिंह और कपिल देव अग्रवाल को दी गई है. मीरापुर सीट की जिम्मेदारी अनिल कुमार व सोमेन्द्र तोमर और केपीएस मलिक को दी गई है. खैर सीट की जिम्मेदारी लक्ष्मी नारायण चौधरी और संदीप सिंह को दी गई है. कुंदरकी सीट की जिम्मेदारी धर्मपाल सिंह, जेपीएस राठौर जसवंत सैनी और गुलाब देवी को दी गई है. इसके साथ ही संगठन की ओर से वरिष्ठ पदाधिकारियों को भी जिम्मेदारी दी गई है.

योगी के बिना मुश्किल है यूपी की विजय 

उत्तर प्रदेश में योगी के नेतृत्व में लोकसभा चुनाव जरूर हुए पर उन्हें टिकट बांटने का अधिकार नहीं था. टिकट वितरण पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने किया. योगी समर्थक ये दावा करते रहे हैं कि जिन सीटों पर हार मिली है वहां टिकट वितरण ही गलत हुआ. इसमें कोई 2 राय नहीं हो सकती कि बहुत सी सीटों पर एंटी इन्कंबेंसी थी. तीन-तीन बार जीत चुके लोगों को टिकट दिया गया था. जिसे बदलना चाहिए था. वैसे भी योगी आदित्यनाथ ने पूरे चुनाव प्रचार के दौरान पूरे देश में करीब 206 सभाएं और रैलियां कीं. जो पीएम मोदी से कुछ ही कम था.योगी अपने प्रदेश के अलावा पूरे देश में सभाएं कर रहे थे. भारतीय जनता पार्टी में पीएम मोदी के बाद सबसे ज्यादा डिमांड योगी आदित्यनाथ की ही थी. जिस तरह पीएम मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते पूरे देश में गुजरात मॉडल की चर्चा होती थी कुछ उसी तरह योगी मॉडल की चर्चा दूसरे राज्यों में होती है.उत्तर प्रदेश में योगी को उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था को सुधारने वाला मान लिया गया है. योगी को माफिया राज को खत्म करने का श्रेय भी दिया जाता है. योगी के आने के बाद उत्तर प्रदेश में औद्योगिक निवेश भी तेजी से हुआ है. इस तरह उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की बीजेपी से अलग एक फैन फॉलोइंग हो चुकी है. इसलिए इसमें कोई 2 राय नहीं हो सकती कि केंद्रीय नेतृत्व उनकी अवहेलना करे. 
 

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