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ऑपरेशन सिंदूर हर भारतीय के शौर्य का प्रतीक, क्या मिटेगा भारत के सॉफ्ट नेशन होने का ठप्पा?

उरी और पुलुवामा के बाद पहलगाम का बदला ऑपरेशन सिंदूर इस बात का प्रमाण है कि भारत अब केवल कूटनीतिक बयानों तक सीमित नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा और हितों के लिए निर्णायक कदम उठाने में सक्षम है.

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पहलगाम हमले के लिए पाकिस्तान से बदले के साथ ऑपरेशन सिंदूर ने सबकी बोलती बंद कर दी है.
पहलगाम हमले के लिए पाकिस्तान से बदले के साथ ऑपरेशन सिंदूर ने सबकी बोलती बंद कर दी है.

1994 में आई नाना पाटकर की एक फिल्म आपने भी देखी होगी, नाम था क्रांतिवीर. नाना पाटेकर फिल्म के क्लाइमेक्स में एक डॉयलॉग बोलते हैं 'हमारा पड़ोसी..साला! अपने देश में एक सुई भी नहीं बना सकता और हमारे देश को तोड़ने के सपने देखता है... वो ये सपने देख सकता है क्योंकि ये (अपना देश) मुर्दों का देश है...आए दिन हमारे देश में आता है और हमले करके चला जाता है...'

उस दौर में होश संभालने वाले लोगों ने लगातार अपने देश को कमजोर होते ही देखा. संसद पर हमला, मुंबई पर हमला, मुंबई के लोकल ट्रेंस में सीरियल विस्फोट, अक्षरधाम मंदिर पर हमला आदि अनेक घटनाएं होती रहीं और देश हाथ पर हाथ रखकर बैठा रहा. आज सुबह जब आम लोगों ने अपनी आंखें खोलीं तो उन्हें पता चला कि भारतीय सेना ने ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम देकर अपने शौर्य का डंका बजा दिया है. आज हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा जरूर हुआ होगा.

हालांकि पाकिस्तान को 1965 और 1971 में दो बार भारतीय सेना सबक सिखाने का काम कर चुकी है. पर इधर चार दशकों से जिस तरह पाकिस्तान ने भारत की नाक में दम किए हुए था उससे सब्र की सीमा समाप्त हो गई है.  2014 के बाद भारत ने जवाब देना भी सीख लिया है. उरी , पुलवामा के बाद भारत ने एयर और सर्जिकल स्ट्राइक जरूर की थी पर जिस तरह ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया गया वो अलग ही है. सेना प्राउड के साथ यह बता भी रही है कि हमने आतंकवाद के खिलाफ एक्शन लिया है. जाहिर है कि पहलगाम हमले का यह बदला सदियों से बनी भारत की सॉफ्ट इमेज को खत्म करने में कारगर होने वाला है. सेना का यह एक्शन आम भारतीयों में उनके पुरुषार्थ को जगाने का काम किया है.

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इन कारणों से बनी देश की सॉफ्ट नेशन की छवि

सॉफ्ट नेशन की धारणा का मतलब है कि एक देश अपनी विदेश नीति में पर्याप्त रूप से आक्रामक या दृढ़ नहीं है. विशेष रूप से आतंकवाद और पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान के साथ संबंधों में भारत बिल्कुल भी दृढ़ नहीं रहा है. 2013 में, पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार सतीश चंद्र ने कहा था, भारत की समस्या यह है कि हमने कभी भी किसी राष्ट्र पर हमारे खिलाफ की गई कार्रवाई के लिए कीमत नहीं चुकाई. हम चुप रहते हैं और जो कुछ भी आता है, उसे स्वीकार करते हैं.  

 - भारत की स्वतंत्रता गांधीवादी अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित थी, जिसने विश्व में भारत को शांतिप्रिय राष्ट्र के रूप में स्थापित किया.

- गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) में भारत की भूमिका और वैश्विक संघर्षों में तटस्थता ने इसे सैन्य आक्रामकता से दूर एक ‘नरम’ देश के रूप में प्रस्तुत किया.

- 1990 और 2000 के दशक में, भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद (जैसे 1993 मुंबई बम विस्फोट, 2001 संसद हमला, 2008 मुंबई हमला) के बावजूद सीमित या कोई प्रत्यक्ष सैन्य जवाब नहीं दिया.

भारत को सॉफ्ट नेशन का दर्जा ऐतिहासिक शांतिवाद, संयमित कूटनीति, और सीमित सैन्य आक्रामकता के कारण मिला. हालांकि, 21वीं सदी में भारत की नीतियों, सैन्य कार्रवाइयों, और वैश्विक प्रभाव में बदलाव ने इस धारणा को काफी हद तक कमजोर किया है. ऑपरेशन सिंदूर जैसे कदम इस बात के प्रमाण हैं कि भारत अब केवल कूटनीतिक बयानों तक सीमित नहीं, बल्कि अपनी सुरक्षा और हितों के लिए निर्णायक कदम उठाने में सक्षम है. फिर भी, इस छवि को पूरी तरह मिटाने के लिए भारत को क्षेत्रीय चुनौतियों (चीन, पाकिस्तान) और आंतरिक समस्याओं पर निरंतर ध्यान देना होगा. 

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नया भारत बहुत कुछ कर रहा है

2016 की सर्जिकल स्ट्राइक, 2019 की बालाकोट हवाई हमले, और 2025 का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ आतंकवाद के खिलाफ भारत के आक्रामक रुख को दर्शाते हैं. इसके साथ ही भारत ने आधुनिक रक्षा उपकरणों जैसे राफेल विमान, S-400 मिसाइल सिस्टम, और स्वदेशी हथियारों (ब्रह्मोस, पिनाका) से अपनी सैन्य ताकत बढ़ाई है.क्वाड (QUAD) में सक्रियता, G20 की अध्यक्षता (2023), और वैश्विक मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ भारत की स्पष्ट आवाज ने दुनिया को दिखा दिया है कि वह अब फैसले लेना जानता है. पश्चिम के दबाव के बाद भी रूस से तेल और गैस खरीदकर दुनिया की टेढ़ी नजर से बचे रहना इसका सबूत है. भारत के उभार में उसकी आर्थिक प्रगति की भी बहुत बड़ी भूमिका है. भारत को 2025 में विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सौभाग्य इसी हफ्ते मिल चुका है.

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