केवल नाम के कांग्रेस नेता हो चुके केरल से सांसद शशि थरूर अपने व्यक्तित्व, शानदार इंग्लिश का ज्ञान, अपनी मशहूर किताबों और विदेश नीति की विशेषज्ञता के चलते भारतीय उच्च मध्यवर्ग के बीच बेहद लोकप्रिय हैं.जबसे उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कुछ मौके पर तारीफ कर दी वो अपनी पार्टी से दूर होते गए. आज वे केवल नाममात्र के कांग्रेसी हैं. उन्हें पार्टी के विशेष मौकों पर बुलाया नहीं जाता है. पार्टी के अंदर कुछ लोग ऐसे हैं जो अकसर उनके खिलाफ जहर उगलते रहते हैं. लेकिन मोदी समर्थकों के बीच उन्हें जबरदस्त लोकप्रियता मिली है. जगदीप धनखड़ के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफे के बाद अचानक सोशल मीडिया पर उनके उपराष्ट्रपति बनने की चर्चा चलने लगी. देश की राजनीति को बहुत नजदीक से जानने वाले चकित रह गए कि आखिर किस तरह शशि थरूर का नाम किस तरह सामने आ गया?
शशि थरूर का नाम कहां से उछला
अभी इसी साल थरूर को केंद्र सरकार ने ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत का पक्ष रखने के लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने के लिए चुना. कांग्रेस ने उनके नाम का सुझाव नहीं दिया इसके बावजूद केंद् सरकार ने उनकी विदेश नीति की विशेषज्ञता का लाभ अमेरिका में भारत का पक्ष रखने के लिए किया. थरूर इसके पहले भी मोदी की विदेश नीति की तारीफ कई मंचों पर कर चुके थे. कांग्रेस ने शायद मोदी सरकार के पक्ष में दिए गए उनके पूर्व के बयानों के आधार पर उनका नाम पार्टी की ओर से केंद्र सरकार को नहीं भेजा था. बीजेपी नेता अमित मालवीय, ने इसे कांग्रेस और राहुल गांधी की कमजोरी के रूप में प्रस्तुत किया. इस घटना के बाद से ही ऐसा लगने लगा है कि थरूर को बीजेपी और भी मौकों पर विपक्ष को घेरने में इस्तेमाल कर सकती है.
दरअसल थरूर ने 2024 में एक मलयालम पॉडकास्ट में कहा था कि अगर कांग्रेस उनकी सेवाओं का उपयोग नहीं करना चाहती, तो उनके पास अन्य विकल्प हैं. इस तरह के बयानों के बाद से लगातार यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वह बीजेपी के साथ जा सकते हैं या कोई संवैधानिक पद स्वीकार कर सकते हैं.
धनखड़ के इस्तीफा के बाद मोदी सरकार में पहुंच रखने वाले एक वरिष्ठ पत्रकार ने ट्वीट करके लिखा कि 2 केंद्रीय मंत्रियों और शशि थरूर में से कोई भी धनखड़ का स्थान ले सकता है. इसके बाद हजारों लोगों ने थरूर के पक्ष में लिखना शुरू किया. कई लोगों ने लिखा कि वे देश के लिए सर्वोत्तम उपराष्ट्रपति साबित हो सकते हैं.
क्या शशि थरूर इस पद को स्वीकार करेंगे?
हालांकि जब-जब शशि थरूर से ये पूछा जाता है कि क्या वे बीजेपी में जा रहे हैं तो उन्होंने बार-बार यही कहा है कि वह कांग्रेस के साथ बने रहेंगे और बीजेपी में शामिल होने की उनकी कोई मंशा नहीं है. 2024 में, जब उनसे पूछा गया कि क्या वह बीजेपी में शामिल होंगे, तो उन्होंने इसे साफ तौर पर खारिज किया और कहा कि उनकी प्राथमिकता राष्ट्रीय हित और कांग्रेस की विचारधारा है.
हालांकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद उन्होंने जिस तरह कांग्रेस की आलोचना करते हुए कई लेख लिखे हैं उससे तो यही लगता है कि अब उनके दिन कांग्रेस में पूरे हो चुके हैं. कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता उनके खिलाफ लगातार जहर उगल रहे हैं . इससे भी यही लगता है कि कांग्रेस में उनकी कहानी अब खत्म हो चुकी है.
इसलिए कई बार ऐसा लगता है कि यदि बीजेपी उन्हें उपराष्ट्रपति पद की पेशकश करती है तो थरूर जरूर इस पर विचार कर सकते हैं. पर थरूर को नजदीक से जानने वाले लोग जानते हैं कि उनकी इच्छा केरल में मुख्यमंत्री कैंडिडेट बनना है. पर इसमें दिक्कत यह है कि कांग्रेस में रहते हुए अब यह संभव नहीं है. दूसरी तरफ अगर बीजेपी उन्हें केरल में सीएम कैंडिडेट बनाती है तो भी उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है. क्योंकि अभी हाल फिलहाल में ऐसा नहीं लगता है कि केरल में बीजेपी इतनी मजबूत हो गई है कि वो अपना सीएम बना सकती है. इसलिए थरूर के लिए तार्किक तो यही रहेगा कि अगर उनका नाम अगर उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित किया जाता है तो वो उस पर अपनी हामी भर दें.पर सवाल उठता है कि क्या बीजेपी एक बार फिर किसी बाहरी को संवैधानिक पद देकर अपना भद पिटवाएगी?
क्या थरूर को मोदी सरकार अपना प्रत्याशी बनाएगी
भारतीय जनता पार्टी को उच्च वर्ग शहरी क्षेत्र का मध्यवर्ग बहुत पसंद करता है. जाहिर है कि थरूर की उम्मीदवारी से यह वर्ग बहुत खुश होगा. बीजेपी के पक्ष में पूरे देश में थरूर हवा बना सकते हैं. इसके साथ ही बीजेपी के मिशन साउथ को भी थरूर के नाम से पुश मिलेगा.पर थरूर की उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष, और वैश्विक दृष्टिकोण वाली विचारधारा बीजेपी की हिंदुत्व-केंद्रित विचारधारा से मेल नहीं खाती है. थरूर अपनी स्वतंत्र सोच और बयानबाजी के लिए जाने जाते हैं. उपराष्ट्रपति के रूप में, वह बीजेपी की अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं चल सकते हैं इसमें संदेह ही संदेह है. जाहिर है मोदी सरकार थरूर को इतना महत्वपूर्ण पद देकर रोज-रोज का रगड़ा नहीं मोल लेना चाहेगी. उनकी नियुक्ति बीजेपी के कट्टर समर्थकों, विशेष रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े लोगों, के बीच असंतोष पैदा कर सकती है. थरूर बीजेपी के हिंदू राष्ट्र के विचार और सांप्रदायिक एजेंडे की आलोचना कर चुके हैं.
उपराष्ट्रपति के रूप में, थरूर को राज्यसभा के सभापति के रूप में निष्पक्षता दिखानी होगी.पर मोदी सरकार कई मसलों पर चाहेगी कि वो खुलकर बीजेपी सरकार का सपोर्ट करें.जाहिर है कि कांग्रेस पृष्ठभूमि के चलते थरूर असमंजस में रहेंगे.जबकि देश की कोई भी सरकार राज्यसभा के सभापति के रूप किसी ऐसे शख्स को ही नियुक्त करना चाहेगी जो आंख मूंदकर समर्थन करे.जैसा कि हमने अभी देखा कि जगदीप धनखड़ की विदाई के पीछे भी कुछ ऐसा ही कारण रहा.जस्टिस यशवंत वर्मा के महाभियोग के मुद्दे पर वो सरकार की मंशा को समझने में असफल रहे.