लोकसभा चुनाव 2024 के जनादेश को देखकर चौंकने का एक मुख्य कारण 400 पार वाली रणनीति और उसका प्रभाव रहा. जबकि वास्तव में परिणामों के शुरुआती विश्लेषण को अगर देखा जाए तो यह मालूम पड़ता है कि भाजपा द्वारा हारी गई और विपक्ष द्वारा जीती गई एससी/एसटी बहुल सीटों में वृद्धि हुई है. यह बदलाव अनुसूचित जातियों और जनजातियों की राजनीतिक निष्ठा हुए फेर-बदल से प्रेरित नजर आ रही है. असल में 400 पार के नैरेटिव का उद्देश्य सीटों की संख्या को बढ़ाना था लेकिन इसने चुनावी यात्रा के बीच में ही एक तरह की थकान पैदा कर दी. संविधान बदलने को लेकर कही गई बातें इंटरनेट और मोबाइल के माध्यम से जब दलितों और आदिवासियों के बीच पहुंची तो उनके अंदर आरक्षण के कम होने या खत्म होने के डर महसूस हुआ. विपक्ष ने इस फुसफुसाहट को खूब जोर-शोर से उठाया. जिसके बाद सबसे अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्यों, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल, में समाज के सबसे वंचित वर्गों ने सामूहिक रूप से मतदान किया. भाजपा ने दशकों तक इन तबकों का विश्वास हासिल करने के लिए संघर्ष किया. अब फिर से एक बार बीजेपी को उनका समर्थन वापस पाने के लिए संघर्ष करना पड़ेगा.
इससे पहले साल में दो बार होने वाले इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन सर्वे सहित अधिकांश जनमत सर्वेक्षणों (opinion polls) में दो अलग-अलग गति वाली K-आकार की अर्थव्यवस्था की बात स्पष्ट रूप से सामने आई थी. एनडीए खेमे को यह विश्वास था कि मुफ्त राशन और इनकम ट्रांसफर से लोगों का गुस्सा कम होगा. इसके अलावा शेयर मार्केट में हुई वृद्धि से मध्य वर्ग के वोट सुनिश्चित हो जाएंगे. लेकिन देश के ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में कम कमाने वाले मतदाताओं को विपक्ष के उस प्रत्याशी में उम्मीद दिखी जिसके जीतने की संभावना सबसे अधिक नजर आई. फैजाबाद में हार, 17 मंत्रियों की हार और जीत के अंतर में कमी से पता चलता है कि आस्था मायने तो रखती है, लेकिन निष्ठा बनाए रखने के लिए यह पर्याप्त नहीं है. बेहतर कल की चाहत रखने वाले नाराज और साइलेंट मतदाताओं ने गुस्से और आक्रोश दोनों का संकेत दिया है.
बड़े सौदे में 'शर्तें लागू' वाली बात शामिल होती हैं. इसी तरह ऐसा कहा जा सकता है कि यह उन बड़े विचारों के लिए भी सही है जिसे 'अबकी बार 400 पार' चुनावी अभियान के दौरान संभव माना गया था. जीएसटी में पेट्रोलियम को शामिल करने की चर्चा, एक राष्ट्र एक चुनाव की महत्वाकांक्षा, समान नागरिक संहिता लागू करने का इरादा, जनगणना के बाद नए जनसंख्या डेटा के साथ लोकसभा का परिसीमन और पुनर्गठन और इसी तरह के अन्य बड़े विचारों को गठबंधन के फिल्टर से होकर गुजरना होगा. साथ ही अब संसद में किसी भी विवादास्पद कानून और विधायी प्रक्रिया को प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा.
हाल के चुनावों तक यह लगभग तय था कि अधिकांश युवा भाजपा को वोट देते हैं. एग्जिट पोल के आंकड़ों से पता चलता है कि भाजपा शासित राज्यों में 18-35 आयु वर्ग के युवा मतदाता दूसरी पार्टियों की ओर रुख कर रहे हैं. रोजगार के अवसरों की कमी, अग्निवीर योजना की शुरूआत, खाली पड़ें सरकारी पद, इंजीनियरिंग और प्रबंधन कॉलेजों में छात्रों के लिए इंटर्नशिप और प्लेसमेंट में बीते जो वर्षों में आई मुश्किलें, ये सभी यंग वोटर्स मतदाताओं को सोचने पर मजबूर किया है जिसके कारण उनकी निष्ठा में बदलाव दिखा है.
इसमें कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि इस साल या फिर 2025 के बजट में सरकार गरीबों को भरोसा दिलाने के लिए कल्याणी योजनाओं के विस्तार की रूररेखा पेश करेगी ताकि उनके बीच यह संदेस जाए कि सरकार उनके लिए काम कर रही है. नतीजों से पहले इस बात पर काफी चर्चा हुई थी कि सरकार भारतीय रिजर्व बैंक से मिले 2.11 लाख करोड़ रुपये का इस्तेमाल कैसे करेगी. जिसके बाद यह सुझाव दिया गया था कि इसका इस्तेमाल बुनियादी ढांचे के लिए किया जाना चाहिए. अब संभावना है कि बड़े पैमाने पर इसका इस्तेमाल लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए किया सकता है.