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बंकिम दा vs बंकिम बाबू... पीएम मोदी की 'चूक' को ममता बनर्जी कितना बड़ा अपराध बना पाएगी?

वंदे मातरम् पर संसद में बहस हुई, और ममता बनर्जी को मजबूरी में समर्थन करना पड़ा. क्योंकि, पश्चिम बंगाल में अगले साल चुनाव होने वाले हैं. बहस के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक बात को ममता बनर्जी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही हैं, जबकि वो तत्काल प्रभाव से भूल सुधाकर कर चुके होते हैं.

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वंदे मातरम् पर बहस के बाद मोदी से ममता बनर्जी माफी मंगवाना क्यों चाहती हैं? (Photo: PTI)
वंदे मातरम् पर बहस के बाद मोदी से ममता बनर्जी माफी मंगवाना क्यों चाहती हैं? (Photo: PTI)

वंदे मातरम् पर संसद में बहस खत्म हो चुकी है, लेकिन सड़क पर जारी है. अब बहस के बाद की राजनीति शुरू हो गई है. ममता बनर्जी शुरू से ही वंदे मातरम् पर बहस के समर्थन में खड़ी नजर आईं. ममता बनर्जी बोलीं भी कि वंदे मातरम् पर संसद में बहस होना उनके लिए गर्व की बात है. 

वंदे मातरम् का बंगाल कनेक्शन ममता बनर्जी के लिए कुछ भी विरोध में बोलने से रोक रहा था. ममता बनर्जी को तो वैसे भी बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ बोलने के लिए मौका चाहिए होता है. लेकिन, जब चुनाव सिर पर हों, तो बोलें भी तो क्या बोलें. वो भी ऐसे मसल पर जो बंगाल के लिए बहुत ही संवेदनशील हो. पश्चिम बंगाल में 2026 में विधानसभा के चुनाव होने हैं.   

ममता बनर्जी को वंदे मातरम् के बीच से ऐसे मुद्दे की तलाश थी, जिस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी को घेरा जा सके. अब संसद में बहस के दौरान हुए एक वाकये को लेकर ममता बनर्जी चाह रही हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उसके लिए माफी मांगें. 

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वंदे मातरम् के रचयिता बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय को 'बंकिम दा' कहकर उनका अपमान किया है - और ऐसा करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को माफी मांगनी चाहिए. 

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ममता बनर्जी को तो मौका चाहिए था, मिल गया है

पश्चिम बंगाल के चुनावों में ममता बनर्जी बीजेपी नेताओं प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को बाहरी बताकर हमले करती रहती हैं - और संसद में बहस का मुद्दा उठाकर एक बार फिर वो वही बात साबित करना चाहती हैं. ममता बनर्जी को मजबूरी में संसद में वंदे मातरम् पर बहस के लिए मोदी को सपोर्ट करना पड़ रहा था. अब मौका तो मिल गया है, सवाल ये है कि ममता बनर्जी को मुद्दा बनाने का फायदा भी मिलेगा क्या?

असल में, वंदे मातरम् की रचना के 150 साल पूरे होने पर संसद में हो रही चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाषण दे रहे थे. बंकिम चंद्र चटर्जी को वो ‘बंकिम दा-बंकिम दा’ कहकर संबोधित कर रहे थे. जब प्रधानमंत्री ने चौथी बार बंकिम दा बोला, तो तृणमूल कांग्रेस सांसद सौगत रॉय का गुस्सा फूट पड़ा. भाषण के बीच ही सौगत रॉय ने प्रधानमंत्री मोदी को टोक दिया. 

सौगत रॉय का कहना था, ‘आप बंकिम दा बोल रहे हैं. बंकिम बाबू-बंकिम बाबू…’

प्रधानमंत्री मोदी को भी लगा कि संबोधन सही नहीं हो रहा है. मोदी खुद को सही तो कर लिया, लेकिन सौगत रॉय का नाम लेकर कटाक्ष भी कर डाला. सौगत रॉय शांत हो गए. वैसे भी उनकी बात मान ली गई थी, लेकिन अब उनकी नेता ममता बनर्जी उसी बात को मुद्दा बना रही हैं.  

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मोदी ने तत्काल कहा, मैं बंकिम 'बाबू' कहूंगा... धन्यवाद, मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करता हूं.

मोदी ने सौगत रॉय को शुक्रिया तो कहा, लेकिन बख्शा भी नहीं. बोले, आपको तो दादा कह सकता हूं न? कहीं आपको न उसमें ऐतराज न हो जाए.

'दा' और 'बाबू' के संबोधन में फर्क

बाबू और दादा दोनों ही सम्मानसूचक शब्द हैं. पश्चिम बंगाल में भी ऐसा ही है. दादा को ही शॉर्ट में दा बोलते हैं. दादा यानी बड़े भाई. लेकिन, बाबू उसे कहा जाता है जो पितातुल्य हो. यही वजह रही कि सौगत रॉय ने बंकिम चंद्र चटर्जी को बंकिम दा कहे जाने पर सौगत रॉय ने आपत्ति जताई थी. 

ममता बनर्जी क्या चाहती हैं

पश्चिम बंगाल के कूच बिहार में एक रैली के दौरान ममता बनर्जी ने कह रही थीं, प्रधानमंत्री का तब जन्म भी नहीं हुआ था, जब देश को आजादी मिली... फिर भी उन्होंने बंगाल के सबसे बड़े सांस्कृतिक प्रतीकों में से एक को इतने साधारण तरीके से संबोधित किया.

प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाते हुए ममता बनर्जी ने कहा, आपने उन्हें (बंकिम चंद्र चटर्जी को) वो न्यूनतम सम्मान भी नहीं दिया जिसके वो हकदार हैं... आपको इसके लिए देश से माफी मांगनी चाहिए. 

क्या तत्काल भूल सुधार का कोई मतलब नहीं होता

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राज्यसभा में वंदे मातरम् पर बहस के दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कहना था, जो लोग वंदे मातरम् के महत्व को नहीं जानते वे इसे चुनाव से जोड़ रहे हैं. ये ममता बनर्जी के वंदे मातरम् पर सोच समझकर बोलने से भी समझा जा सकता था,  लेकिन अमित शाह की टिप्पणी कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी के बयान का जवाब थी. 

लोकसभा में चर्चा में हिस्सा लेते हुए कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा था, वंदे मातरम् गीत 150 साल से देश की आत्मा का हिस्सा है... आज इस पर बहस क्यों हो रही है? फिर बोलीं, मैं बताती हूं... क्योंकि बंगाल का चुनाव आ रहा... मोदी जी उसमें अपनी भूमिका निभाना चाहते हैं.

ममता बनर्जी ने ये मुद्दा वैसे ही लपकने की कोशिश की है, जैसे राहुल गांधी ने आंबेडकर के मुद्दे पर अमित शाह को घेर लिया था, और उनको प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर सफाई देनी पड़ी थी. ममता बनर्जी अब चाहती हैं कि प्रधानमंत्री मोदी संसद में बंकिम दा बोलने के लिए माफी मांगें. 

देखा जाए तो टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने मौके पर ही मामला खत्म कर दिया था. सौगत रॉय ने सवाल उठाया और मोदी ने बात मान ली. मामल खत्म. मामला भले खत्म हो गया, लेकिन राजनीति? राजनीति भला कैसे खत्म हो जाए? ये मानकर चलना चाहिए कि चुनावों में भी इसे मुद्दा बनाने की कोशिश होगी. 

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अभी से पश्चिम बंगाल के लोगों को आगाह करते हुए ममता बनर्जी समझाने लगी हैं, अगर बीजेपी बंगाल में सत्ता में आती है तो वो सूबे की संस्कृति, भाषा और विरासत को नष्ट कर देगी. 

और यही बात समझाकर तो ममता बनर्जी बंगाली बनाम बाहरी का मुद्दा उठा देती हैं. ममता बनर्जी पहले से ही भाषा आंदोलन चला रही हैं, उसमें भी निशाने पर बीजेपी ही है. ममता बनर्जी का आरोप है कि बीजेपी शासित राज्यों में पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार किया जाता है. ममता बनर्जी का आरोप है कि बांग्ला भाषा बोलने वालों को बांग्लादेशी करार दिया जाता है, और उनको टार्गेट किया जाता है. 

सवाल ये है कि जब मोदी ने मौके पर ही भूल सुधार कर लिया. और, सौगत रॉय भी संतुष्ट हो गए थे, तो ममता बनर्जी नये सिरे से पश्चिम बंगाल की रैली में क्यों उठा रही हैं? 

क्या तत्काल भूल सुधार का कोई मतलब नहीं होता? क्या तत्काल भूल सुधार के बाद भी माफी की दरकार बचती है? सवाल अपनी जगह हैं, चुनावी राजनीति में तो बस मौके की तलाश होती है, और फायदा उठाने की कोशिश. सवाल ये भी है कि ये मुद्दा उछालकर ममता बनर्जी को फायदा भी मिलेगा क्या?

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