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मुजरिम मानव हाजिर हो... सबसे बड़ी अदालत की सुनवाई और सुरक्षित फैसला

इंसान जब अपनी अंधी दौड़ में प्रकृति को नियंत्रित करने के लिए बेचैन है, एक अदालत ऐसी भी है, जहां उसे खुद कटघरे में खड़ा होना पड़ रहा. पढ़िए, ये व्यंग्य.

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स्ट्रे डॉग्स के मुद्दे पर सबसे बड़ी अदालत की सुनवाई और सुरक्षित रखा गया फैसला. (Photo: ITG)
स्ट्रे डॉग्स के मुद्दे पर सबसे बड़ी अदालत की सुनवाई और सुरक्षित रखा गया फैसला. (Photo: ITG)

कोर्ट रूम खचाखच भरा हुआ था. सबसे बड़ी कोर्ट. और मामला भी एक बड़ी आबादी के जानवरों से जुड़ा था. ऐसे जानवर जो अब समस्या बनते जा रहे थे. उनका वजूद, उनकी आदतें, उनके तेवर, उनकी नीयत, उनकी बढ़ती आबादी और उस आबादी के साथ दिन ब दिन बढ़ते हुए संकट, खतरे, नुकसान. पहले की कितनी ही कोशिशें बेकार साबित हुईं. हां, कुछ लोग थे जो इन जानवरों की पैरवी में संस्थाएं खोलकर और झंडे उठाकर खड़े थे. लेकिन पानी अब सिर से ऊपर था. बच्चे, औरतें, बुजुर्ग, जवान... कोई भी सुरक्षित नहीं था. और सुरक्षा का खतरा इतना गहराता देखकर अब मामला सबसे बड़ी अदालत तक आ चुका था.

आज जिरह का आखिरी दिन था. निर्णायक दिन. फैसला लिया जाना था. और इस फैसले पर सबकी निगाहें थीं. हालांकि इन जानवरों को इसका इल्म नहीं ही था कि उनके खिलाफ कोई मामला बड़ी अदालत तक आ पहुंचा है. लेकिन मामला गंभीर हो चला था. एक पूरी जीव जाति प्रभावित थी. “धर्म संकट में है मी लार्ड”, वरिष्ठ अधिवक्ता जैकी ने तर्क दिया. “हमने धर्म बनकर युधिष्ठिर की परीक्षा ली. उसके साथ स्वर्ग तक गए. वो प्रतिबद्ध रहा और इसीलिए आज धर्मराज है. लेकिन आज इन जानवरों में एक भी ऐसा नहीं जिसे हम धर्मराज कह सकें. ये धर्म से विमुख हो चुके जीव हैं. इन्हें अपनी भूख से बड़ा, अपने लालच के आगे और अपनी जाति के सिवाय और कुछ दिखता नहीं. इन्हें रोकना ही होगा. वरना बहुत देर हो जाएगी”. 

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“आज चार्जेज़ पर ही फोकस करें. भाषण देकर अदालत का वक्त न खराब करें”, जस्टिस प्रकृति ने एडवोकेट जैकी को टोका. “सॉरी लार्डशिप, लेकिन चार्जशीट इतनी लंबी है कि महीनों पढ़कर भी हम उसे पूरा नहीं दोहरा सकते. मनुष्यों ने अपनी शुरुआत जब इस धरती पर की, हमें वो सबसे ज़रूरतमंद और रचनात्मक जानवर लगे. हम उनके पहले दोस्त बने. उनके लिए शिकार खोजना, उनके लिए रास्ते सुझाना, खतरों की जानकारी देना, उनकी रखवाली करना... किस कदम पर हम उनके साथ नहीं रहे. जब शेर, बाघ और रीछ इनपर हमला करते थे, हम इन्हें खतरे से आगाह करते थे. हमने इनके बच्चों को बचाने के लिए भेड़िए और लकड़बग्घों से लड़ाई की हैं, कुर्बानियां दी हैं. इंसान ने भी तब हमको इज्जत दी, मोहब्बत दी. रोटी साझा की, बोटी बांटी. शादी हो, शमशान हो, मंदिर हो, गांव के चौराहे हों, खलिहान हो, चरागाह हों, रात को खेतों में पानी हमने लगवाया, खर-पतवार में सांप बिच्छू से हमने बचाया, इनके लिए दुर्गम बर्फीली जगहों पर लकड़ियां ढोईं, इनकी गाड़ियां खीचीं. इनसे मार खाई, दुत्कारे गए लेकिन वफादारी नहीं छोड़ी. युद्ध हों, शिकार हों, सेनाएं हों, प्राकृतिक आपदाएं और संकट हों, खेल हों और करतब हों, जासूसी हो, चौकीदारी हो, हमने क्या नहीं किया”. जैकी बोलते जा रहे थे और सूखे थूक की लकीरें अब जबड़े के दोनों ओर से लटकने लगी थीं. 

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“लेकिन मनुष्यों की महात्वाकांक्षाएं इतनी अंधी औऱ भूखी हो चली है कि वो अब हमको, हमारे वजूद को खत्म करने पर आमादा हैं. इन्होंने जंगलों को काटकर अपनी कंक्रीट की खोहें बनाने का सिलसिला बदस्तूर जारी रखा है. हम इनके दरवाजों पर रहे. अपना काम करते रहे. लेकिन फिर इन्होंने कई मंजिलों वाली इमारतें बना लीं. शहर की सीमाएं जैसे-जैसे आगे बढ़ती गईं, हमारे कई पटीदार, रिश्तेदार अपने घरों से, बसाहटों से उजाड़े जाते रहे. हम जहां पर थे, आज वहां से हमारी आबादी पचासों किलोमीटर दूर धकेली जा चुकी हैं. एक बार, दो बार, तीन बार नहीं, ये न रुकने वाला सिलसिला है. इन्होंने नैचुरल पिरामिड को तहस-नहस कर दिया है. हमारे खाने, पीने, रहने और बसने की जगहें हमेशा इनके निशाने पर रहती हैं. इन्होंने ये केवल हमारे साथ ही नहीं किया. इस धरती पर कोई एक जीव जाति बताइए मी लार्ड जिसके वजूद पर इनकी वजह से संकट नहीं आया है. चूहे, सांप, गिलहरी, खरगोश, बाघ, कबूतर, मोर, चीतल, शेर, मगरमच्छ, बया, गौरेय्या, बुलबुल, गिद्ध, मछलियां... अरे कोई तो एक जीव हो जो कहे कि मनुष्य से वो खुश हैं, मनुष्य ने उन्हें बख्शा है”.

“लेकिन आपको यह ध्यान रखना होगा कि वो हमारे बीच सबसे ज्यादा दिमाग और क्षमता वाला जानवर है”, मनुष्य की पक्षकार बैरिस्टर रूबी अब कोर्टरूम में पूरे तेवर से जिरह का प्रतिवाद कर रही थीं. रूबी का ब्लैक स्पॉट वाला व्हाइट कोट और हमेशा की तरह भीतर तक झांकने वाली आंखें कतई भावनात्मक हो चली बहस से मुकदमे को भटकने नहीं देना चाहती थीं. “उसकी क्षमताएं अपार हैं. वो जितना विकसित है, उतना कोई और जीव नहीं. उसने अपने दम पर इतने अनुसंधान किए हैं, साधन बनाए हैं और सुविधाओं को अर्जित किया है. उसने व्यवस्था बनाई हैं. समाज बनाया है. देश बनाए हैं. संविधान बनाया है. मनुष्य ने अपनी ज़रूरतों के लिए किसी एक विकल्प पर निर्भरता नहीं रखी और न ही एक परिस्थिति को ही अंतिम विकल्प माना. वो जंगलों में हमारे पास बैठा और सोया लेकिन इससे उसने घर बनाने का सपना नहीं खोया. उसको हमने रास्ते दिखाएं, उसने आज हाईवे बिछा दिए हैं. हमने उसकी गाड़ी खींची और आज उसके पास जहाज हैं, प्लेन हैं, ट्रेन और गाड़ियां हैं...”

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“गाड़ियां, गाड़ियां... हत्यारी गाड़ियां, हत्यारी ट्रेनें. हत्यारा आदमी, हत्यारी जात...” पूरे कोर्टरूम में शोर गूंजने लगा. वकील साहेब जैकी जलती आंखों से रूबी को देख रहे थे. जैकी का सबसे दुलारा बेटा, टैरिफ, दो साल पहले एक गाड़ी की चपेट में आकर बुरी मौत मरा था. कुत्तों को सबसे ज्यादा तकलीफ मनुष्य की गाड़ियों से ही मिली थी. अनगिनत मौतें, अनगिनत चोटें. अपार दर्द और दुख. जस्टिस प्रकृति ने टेबल पर हथौड़ा पटका, “ऑर्डर, ऑर्डर, कोर्टरूम है ये. शोर करना है तो बाहर निकल जाइए”. उठी और ऐंठी हुई पूंछें अब धीरे-धीरे वापस बेंचों पर लटकने लगी थीं.

“लार्डशिप, ये भूख कहां लेकर जाएगी. मेरी साथी रूबी इंसान के पक्ष में जो कुछ कह रही हैं, वो सही है. लेकिन धरती केवल इंसान की नहीं है. उनके मानवाधिकार... और हमारा क्या. किसी और जीव का कोई अधिकार नहीं. और रूबी जी, मनुष्य ने किसी जीव को अपना दोस्त नहीं बनाया. अब वो बस बंधक बनाते हैं. दास बनाते हैं. बैल से पूछिए, घोड़ा, गधा, ऊंट, गाय, बकरी, भैंस, हाथी... किसी से भी पूछिए. जो इनके किसी काम के नहीं रहे उन्हें इन्होंने नुमाइश बना दिया. पिंजरों में डालकर हम कभी सर्कस में खींचे गए तो कभी चिड़ियाघरों में इनके बच्चों का मनोरंजन बनते रहे. यातनाओं की अंतहीन कहानी है इंसान की ये दास प्रथा. अरे इन्होंने तो चमड़ी के रंग से आदमी तक को दास बनाकर रखा. धर्म के लिए दासियां बनाई गईं. जातियों को दास बनाकर रखा गया. आप इसे दोस्ती कहें खुशफहमी में लेकिन इसमें शोषण और साजिश का मानवीय कौशल है. कभी सोचिए कि घोड़ा आदमी को चाबुक से मारते हुए खींचे. कभी सोचिए कि मनुष्य के मुंह में लोहे की जंजीर डालकर उसे जोता जाए. कभी सोचिए कि इंसान को अपने वजन से दस गुना ज्यादा वजन खींचने के लिए डंडों से पीटा और घसीटा जाए. हम वफादार थे. रखवाले थे. हमसे रोटी छीनी गई. इन्होंने कैमरे लगाए और हम इनके लिए आवारा करार दिए गए. हम ज़रूरत की जगह इनके घरों के सजावटी पैट बना दिए गए.”

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“इंसान क्या है और किस सोच का है, उसकी इंसानियत और मानवता का लेवल क्या है. उसकी महानता की पोशाक के अंदर कौन छिपा है, इसे समझने के लिए आप बस एक उदाहरण पर गौर करें कि हम कुत्ते जब भी अपने वंश और प्रकृति के नियमों के लिए सहवासरत होते हैं, उन क्षणों में मनुष्य कितना बर्बर, कठोर, निर्दयी और जघन्य दरिंदा बनकर हमारे साथ पेश आता है. क्या ये हंसी का विषय है, मजे की बात है. हमले का अवसर है. क्या किसी और जीव को आपने इस नीचता तक आते देखा है.” जैकी गुस्से से कांप रहे थे.

“लार्डशिप ये कहानी पक्षपात की है. मनुष्य को इतनी छूट. वो जो चाहे, करे. जहां चाहे बसे और जिसे चाहे उजाड़ दे. जिसे चाहे उसकी खाल उतारकर पहन ले. जिसे चाहे काटकर खा ले, अपने कमरों में सजा ले...”. रुबी बेंच की ओर पलटीं, “... उसके लिए इंसान ने खुद को बदला है. उन्होंने कानून बनाए हैं. बाकी जानवरों को सुरक्षित और लुप्तप्राय की श्रेणी में डाला है. उन्हें बचाने के लिए प्रयास किए. चिकित्सा को केवल अपने फायदे तक नहीं रखा, जानवरों के लिए भी अस्पताल खोले. कितने ही लोग कुत्तों या बाकी जानवरों से हो रही ज्यादतियों के लिए मशाल लेकर सड़कों पर हैं. वो जीव-जंतु अधिकारों की लड़ाई अपनी अदालतों में लड़ रहे हैं. उनकी कोशिश है कि...” रूबी की बात को जैकी ने बीच में ही काटा, “दिखावा मी लार्ड, दिखावा. बस दिखावा. इंसान का ये स्नेह दिखावा है. वो किसी को प्रेम नहीं कर सकता. वो बस जीतना चाहता है. प्रकृति को. उसकी हर सीमा को. उसके हर सृजन को. उसके गर्भ से लेकर आकाश तक वो अपने लिए हीरे खोद रहा है. उसे किसी की चिंता नहीं, सिवाय अपने. उसे किसी से मोह नहीं सिवाय अपने. उसकी दया, करुणा, मानवता सब स्वार्थ को साधने के सजाए गए शब्द हैं. उसे रोकना होगा वरना और कुछ रुकेगा नहीं, बचेगा नहीं”.

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“हमने भी उनपर हिंसा की है. काटा है. घाव दिए हैं. बच्चों पर हमला. महिलाओं पर. घर लौटते राहगीर. सब्जी का थैला लेकर लौटती औरतें, लाठी टेककर चलते बुजुर्ग... हमने इन्हें काटा है. हिंसा करेंगे तो वो बचाव में कुछ तो करेंगे न.” रूबी दृढ़ता से बोलीं.

“मुट्ठी भर लोग आतंकवादी हैं. बलात्कारी हैं. हत्यारे हैं. भ्रष्ट हैं. दरिंदे हैं. उनकी पहचान मुमकिन नहीं. जो पकड़ा गया, वो अपराधी. और जो नहीं पकड़ा गया वो... तो क्या इंसानों की नस्ल को इन अपराधियों के आधार पर खत्म कर दें. प्रतिबंधित कर दें. दड़बों और दीवारों में कैद कर दें. या गैस चैम्बरों में डालकर नरसंहार कर दें. अरे इंसान आजतक ये नहीं पहचान पाया कि उनके बीच के अपराधी कौन हैं, तो किसी और जीव के बारे में वो ऐसा कैसे तय कर सकता है.” जैकी बोले. “ये धरती के नक्शे, ये देश ये सीमाएं. ये जमीनों की खरीद, बंटवारे और कब्जे. ये जंगलों, पहाड़ों, मैदानों पर हक... ये हक इंसान को किसने दिया. तुम हो कौन भाई. मिट्टी तुमने बनाई क्या. पानी तुमने बनाया क्या. धरती तुमने गढ़ी क्या. तुमको लैंड राइट्स दिए किसने कि तुम जहां मर्जी देश, प्रदेश, शहर, अपार्टमेंट, सिनेमा, पुल कुछ भी बनाते जा रहे हो. प्रकृति के परिवार रजिस्टर में तो हम भी थे. हमारे हिस्से की ज़मीन तुम क्यों खा गए. क्यों कब्जा कर लिया. न धरती रहने लायक छोड़ी है, न पानी पीने लायक छोड़ा है. नदियों, तालाबों को तुम लगातार निगल रहे. जंगलों को काट रहे. ईधन, फर्नीचर, घर, कागज... सब पेड़ों से. क्यों भाई. किस वसीयत में तुमको ये हक मिला. और हक है तो हमारा भी हक है. सबका हक है. हम सब का क्या”. एडवोकेट जैकी की बात पर कोर्ट रूम में बहुत सी पूंछें हिल रही थीं. 

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जस्टिस प्रकृति बहुत धैर्य से कोर्ट के माहौल को देख रही थीं. उन्हें याद आ रहे थे पूर्व में आए ऐतिहासिक फैसले... जब हद पार कर चुके डायनासोर लुप्त हो गए. जब हिमपातों में प्रकृति के लिए अनाचार हो चुकी आबादियां हमेशा के लिए सो गईं. जब रेगिस्तानी तूफानों ने अपने नमक और रेत से सभ्यताओं को निगल लिया. जब दो डालों की रगड़ ने बेलिहाज हो चले जंगलों को कोयला बना दिया. जब प्लेग, टीबी, मलेरिया जैसी बीमारियों ने आदमियों को चुन लिया. जब सुनामी ने सफाई अभियान चलाए, अकालों ने किसी को कंकाल करके ही छोड़ा. कोविड सबसे नया ताज़ा फैसला था. 

“आज की सुनवाई पूरी हुई. कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है. फैसला अगली तारीख पर सुनाया जाएगा”, जस्टिस प्रकृति अपनी सीट से उठ चली थीं. अगली तारीख तक के लिए...

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