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सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों से परिवार में किसके लिए सपोर्ट मांगा है - राहुल या प्रियंका के लिए?

सोनिया गांधी ने रायबरेली को अलविदा कह दिया है, लेकिन उम्मीद जताई है कि जो सपोर्ट मिलता रहा है, आगे भी मिलेगा. एक पत्र में जिस तरह भविष्य में भी परिवार के लिए सपोर्ट मांगा गया है, कई चीजें साफ हैं, सिवा इस बात के कि सोनिया गांधी का रायबरेली में उत्तराधिकारी कौन होगा - राहुल गांधी या प्रियंका गांधी?

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अब तुम्हारे हवाले रायबरेली बच्चों!
अब तुम्हारे हवाले रायबरेली बच्चों!

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने प्रत्यक्ष चुनावी राजनीति को अलविदा कह दिया है. रायबरेली की जनता के नाम वसीयतनुमा लिखे एक पत्र में सोनिया गांधी ने अपील की है कि जैसे अब तक वे लोग उनके परिवार और उनको सपोर्ट करते आयें हैं, भविष्य में भी परिवार का उतना ही ख्याल रखेंगे. उम्मीदों भरी ये अपील सोनिया गांधी ने अब तक बतौर कांग्रेस उम्मीदवार वोट देते आ रहे लोगों से की है. 

ध्यान देने वाली बात ये है कि 'परिवारवाद' की राजनीति को लेकर ही बीजेपी, कांग्रेस नेतृत्व पर हमलावर रही है. सोनिया गांधी ने उसी 'परिवार' की दुहाई देते हुए रायबरेली के लोगों को चिट्ठी लिखी है, और कहा है कि भविष्य में भी वो 'परिवार' का सपोर्ट करते रहें. 

सोनिया गांधी के इमोशमनल लेटर से एक बात तो साफ है कि वो अपनी विरासत कांग्रेस के लिए नहीं बल्कि अपने परिवार के लिए ही छोड़ रही हैं. कांग्रेस की विरासत संभालने की जिम्मेदारी तो सोनिया गांधी पहले ही राहुल गांधी को सौंप चुकी हैं, लेकिन रायबरेली किसके नाम करना चाहती हैं, अभी सस्पेंस बना कर छोड़ दिया है.  

जिस तरह, सोनिया गांधी ने खास तौर से परिवार को चुनावी राजनीति में प्रोजेक्ट किया है, साफ है कि कांग्रेस अब बीजेपी के परिवारवाद के हमलों से खुद को उबार चुकी है. राहुल गांधी तो देश से बाहर भी भारत में परिवारवाद की राजनीति को हकीकत से जोड़ कर पेश कर चुके हैं, लेकिन जब वही राहुल गांधी तेलंगाना जाकर बीआरएस नेता के. चंद्रेशखर राव को परिवारवाद की राजनीति के नाम पर घेरते हैं, तो हिपोक्रेसी के अलावा कोई और भाव मन में नहीं आता. 

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लोगों के नाम सोनिया गांधी का इमोशनल लेटर

सोनिया गांधी ने अपनी सेहत और बढ़ती उम्र को अगला लोक सभा चुनाव नहीं लड़ पाने की सबसे बड़ी वजह बताई है, और कहा है, लेकिन ये तय है कि मेरा मन-प्राण हमेशा आपके पास रहेगा.

जल्द ही मुलाकात होने के वादे के साथ सोनिया गांधी लिखती हैं, मेरा परिवार दिल्ली में अधूरा है... वो रायबरेली आकर, आप लोगों से मिलकर पूरा होता है... ये नेह-नाता बहुत पुराना है और अपने ससुराल से मुझे सौभाग्य में मिला है. 

सौभाग्य यानी शगुन, और परिवार ये ऐसी बातें हैं जो लोगों को बरबस ही जोड़ देती हैं. 2019 के आम चुनाव से पहले प्रियंका गांधी वाड्रा को कांग्रेस महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया था. तब वो देश से बाहर थीं. आते ही मालूम हुआ कि उनके पति रॉबर्ट वाड्रा को प्रवर्तन निदेशालय ने समन भेज कर पूछताछ के लिए बुलाया है. प्रियंका गांधी गाड़ी में बिठाकर पति रॉबर्ड वाड्रा को खुद ईडी दफ्तर छोड़ने गईं, और फिर कांग्रेस दफ्तर पहुंच कर कामकाज संभाला. 

मीडिया के सवाल पर तब प्रियंका गांधी ने बस इतना ही कहा था, मैं परिवार के साथ हूं. काफी था. बाद में सोनिया गांधी को भी वैसे ही प्रियंका गांधी ईडी दफ्तर में पेश होने के लिए छोड़ने गई थीं. 

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सोनिया गांधी परिवार के उसी भाव के साथ बीजेपी या दूसरे राजनीतिक विरोधियों के परिवारवाद की पॉलिटिक्स के नाम पर हमले को काउंटर करने की कोशिश कर रही हैं. और आगे भी परिवार के नाम पर ही वोट देने की बात कर रही हैं. 

परिवारवाद की राजनीति और परिवार के लिए वोट

'मेरे स्नेही परिवार जनों', कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने इसी संबोधन के साथ रायबरेली के लोगों के नाम अपने पत्र की शुरुआत की है. ये देख कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषणों की तरह यूं ही ध्यान चला जाता है. सार्वजनिक सभाओं में लोगों से मुखातिब होने पर पहले भाइयों और बहनों, और बाद में मित्रों के साथ संबोधन की शुरुआत करने वाले नरेंद्र मोदी को कुछ दिनों से 'मेरे परिवारजनों' बोल कर भाषण शुरू करते देखा गया है - और खास बात ये है कि सोनिया गांधी ने अपने पत्र में मोदी सरकार के दौरान बपले हालात करा भी खास तौर पर जिक्र किया है. 

सोनिया गांधी लिख रही हैं, सास और जीवनसाथी को हमेशा के लिए खोकर मैं आपके पास आई, और आपने अपना आंचल मेरे लिए फैला दिया... रायबरेली के साथ हमारे परिवार के रिश्तों की जड़ें बहुत गहरी हैं... आजादी के बाद हुए पहले लोक सभा चुनाव में आपने मेरे ससुर फीरोज गांधी को वहां से जिता कर दिल्ली भेजा... उसके बाद इंदिरा गांधी को अपना बना लिया... तब से ये सिलसिला आगे बढ़ता गया... हमारी आस्था मजबूत होती गई. 

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पढ़ कर ऐसा लगता है जैसे सोनिया गांधी रायबरेली से 2014 और 2019 में अपनी चुनावी जीत के सफर को काफी मुश्किल महसूस किया है. लिखती हैं, पिछले दो चुनावों में विषम परिस्थितियों में भी आ पर चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहे... मैं कभी ये भूल नहीं सकती. ये कहते हुए मुझे गर्व है कि आज मैं जो कुछ भी हूं, आपकी बदौलत हूं... और मैंने इस भरोसे को निभाने की हरदम कोशिश की है. 

2014 में तो कांग्रेस ने रायबरेली के साथ अमेठी लोक सभा सीट भी जीत ली थी, लेकिन 2019 में मामला गड़बड़ हो गया. पांच साल पहले बीजेपी उम्मीदवार को ठिकाने लगा देने के बावजूद अमेठी में राहुल गांधी गच्चा खा गये, और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी के आगे शिकस्त स्वीकार करनी पड़ी.

अपनी चिट्ठी के आखिर में बड़ी उम्मीदों के साथ सोनिया गांधी ने लिखा है, मुझे पता है... आप भी हर मुश्किल में मुझे और मेरे परिवार को वैसे ही संभाल लेंगे, जैसे अब तक संभालते आये हैं.

मतलब, तो यही हुआ कि सोनिया गांदी ने रायबरेली सीट से कांग्रेस का उम्मीदवार घोषित कर दिया है, बस नाम नहीं बताया है. साफ है कांग्रेस उम्मीदवार गांधी परिवार से ही होगा, कोई बाहरी नहीं. 
 
रायबरेली में कौन होगा सोनिया गांधी का उत्तराधिकारी

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2019 में ही सोनिया गांधी ने संकेत दे दिया था कि वो आखिरी लोक सभा चुनाव लड़ रही हैं. हो सकता है, तभी वो लोक सभा की जगह राज्य सभा का रुख कर ली होतीं बशर्ते उनको पक्का यकीन होता कि राहुल गांधी सब संभाल लेंगे. 2019 का चुनाव कांग्रेस राहुल गांधी के नेतृत्व में ही लड़ रही थी. चुनावी हार की जिम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया, और पार्टी पर परिवार के कब्जे को बरकरार रखने के लिए सोनिया गांधी को फिर से कांग्रेस की कमान संभालनी पड़ी, लेकिन अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर.

कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार वे 1999 का चुनाव सोनिया गांधी अमेठी और बेल्लारी से लड़ी थीं. चुनाव नतीजे आने पर बेल्लारी सीट छोड़ दी और अमेठी पास रखा. फिर 2004 में राहुल गांधी के लिए अमेठी छोड़ कर सोनिया गांधी रायबरेली चली गईं, और अब राज्य सभा जाने के बाद रायबरेली भी छोड़ रही हैं.

देखा जाये तो सोनिया गांधी ने वक्त रहते अच्छा फैसला लिया है. हाल ही में हुए सी-वोटर के एक सर्वे के नतीजों से मालूम हुआ था कि 2024 में सोनिया गांधी के लिए रायबरेली का चुनाव ज्यादा मुश्किल हो सकता है. मतलब, 2014 और 2019 से भी कहीं ज्यादा विषम परिस्थितियां फेस करनी पड़ सकती हैं. 

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अब जबकि सोनिया गांधी ने रायबरेली की सीट परिवार के लिए छोड़ दी है, कांग्रेस के पास उम्मीदवार के रूप में कम ही ऑप्शन बचते हैं. विकल्पों में पहले नंबर पर तो राहुल गांधी का ही नाम आएगा, और दूसरे नंबर पर प्रियंका गांधी का. अगर परिवार की राय बने तो तीसरा नाम रॉबर्ट वाड्रा का भी हो सकता है, शर्त सिर्फ ये है कि ये चीज गांधी परिवार को भी मंजूर हो, और प्रियंका गांधी की भी मंजूरी मिल जाये. और अगर परिवार के एकजुट हो जाने की कल्पना करें तो चौथा नाम वरुण गांधी का भी हो सकता है, लेकिन ये संभव हो पाएगा, अभी किसी को भी नहीं मालूम. 

चौतरफा चर्चाओं को सुनें तो लगता है, जैसे राहुल गांधी अगर यूपी का रुख करते हैं तो अमेठी की जगह रायबरेली का रुख कर सकते हैं. जैसे सोनिया गांधी के छोड़ने पर वो अमेठी से चुनाव लड़ते रहे, अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस चाहेगी कि प्रियंका गांधी अमेठी सीट पर बीजेपी की स्मृति ईरानी को चैलेंज करें. लेकिन प्रियंका गांधी अमेठी में वैसे सक्रिय नहीं देखी गईं जैसी 2014 के हार के बाद स्मृति ईरानी. बीजेपी तो इंडिया शाइनिंग वाली मानसिकता से निकल आई है, लेकिन कांग्रेस को अब भी पुराने संबंधों पर ही भरोसा है. सोनिया गांधी का पत्र पढ़ कर भी तो ऐसा ही लगता है. 

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रायबरेली को लेकर सी-वोटर सर्वे में बताया गया है कि अगर सोनिया गांधी की जगह प्रियंका गांधी मैदान में उतरती हैं, तो 49 फीसदी लोक मानते हैं कि वो जीत जाएंगी, लेकिन 42 फीसदी लोग उनकी जीत को लेकर आश्वस्त नहीं हैं. बल्कि कह रहे हैं कि कांग्रेस रायबरेली सीट हार जाएगी.

'परिवारवाद' की राजनीति को लेकर बीजेपी जिस तरह कांग्रेस नेतृत्व पर हमलावर रही है, सोनिया गांधी ने उसी 'परिवार' की दुहाई देते हुए रायबरेली के लोगों को एक चिट्ठी लिखी है. सोनिया गांधी ने रायबरेली के लोगों से अपेक्षा की है कि वे पहले  की तरह ही भविष्य में भी परिवार को सपोर्ट करते रहेंगे. 

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