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मोदी के खिलाफ राहुल गांधी का वीडियो अटैक – कौन किसे डरा रहा है और क्‍यों?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच चल रही तीखी बहस 'डरो मत' से अडानी-अंबानी पर पहुंच चुकी है. लेकिन कौन किसे डरा रहा है? और डर के आगे क्या है? ये तो 4 जून को ही साफ हो पाएगा - उससे पहले कुछ रिटायर जजों ने दोनों को किसी न्यूट्रल प्लेटफॉर्म पर डिबेट की चुनौती दी है.

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चुनावी रैली की संख्या के मामले में राहुल गांधी के मुकाबले मोदी भले बहुत आगे हों, लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल होते राहुल के कुछ वीडियो सब बराबर कर दे रहे हैं.
चुनावी रैली की संख्या के मामले में राहुल गांधी के मुकाबले मोदी भले बहुत आगे हों, लेकिन सोशल मीडिया पर वायरल होते राहुल के कुछ वीडियो सब बराबर कर दे रहे हैं.

लोकसभा चुनाव के लिए तीन चरणों की वोटिंग हो चुकी है, चौथे चरण का मतदान 13 मई को होने जा रहा है. जैसे जैसे चुनाव समाप्ति की ओर बढ़ रहा है, बीजेपी और कांग्रेस के बीच तकरार हद से ज्यादा तीखी होती जा रही है - और अब तो हाल ये हो गया है कि बीजेपी नेता अमित शाह चुनाव को विकास बनाम जिहाद बना देने की पूरी कोशश कर रहे हैं. 

कांग्रेस नेता राहुल गांधी तो पूरे साल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाये रहते ही हैं, अब बीजेपी नेता मोदी भी बिलकुल उसी लहजे में काउंटर अटैक करने लगे हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के बीच बहस उन मुद्दों पर होने लगी है, जिस पर कांग्रेस नेता का जोर हुआ करता था.

पहले राहुल गांधी कहा करते थे, 'डरो मत' - अब मोदी ही राहुल गांधी से कह रहे हैं कि 'डरो मत...'

और वैसे ही पहले राहुल गांधी हमेशा अडानी-अंबानी का नाम लेकर मोदी और उनकी सरकार पर हमला बोल रहे थे. अब आम चुनाव में पहली बार मोदी के मुंह से भी ये दोनों नाम सुनने को मिले हैं - बड़ा सवाल ये है कि कौन एजेंडा सेट कर रहा है, और कौन सफाई दे रहा है?

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आखिर कौन किसे डरा रहा है? 
और डर के आगे क्या है?
जीत ही है, या हार भी?

चुनावों में डर के आगे क्या होता है

चुनावी दावों और विज्ञापनों में बहुत फर्क नहीं होता. हो सकता है, पहले थोड़ा बहुत होता भी हो, लेकिन अब तो बिलकुल ही फर्क नजर नहीं आता. चुनावी घोषणा पत्रों में भी विज्ञापनों की ही तरह सपने दिखाये जाते हैं, उम्मीदें जगाई जाती है.

भ्रामक विज्ञापन के केस में भले ही पतंजलि वाले बाबा रामदेव चपेट में आ गये हों, लेकिन चुनावी वादों और दावों को लेकर तो ऐसा कुछ न होता है, न लगता है कि होने वाला है. 

एक विज्ञापन में कहा जाता है कि डर के आगे जीत है, लेकिन हमेशा ऐसा ही नहीं होता. डर के आगे हार भी होती है - आप किसी भी मोटिवेशनल स्पीकर को सुन सकते हैं. 

काफी दिनों से राहुल गांधी अपनी सोशल मीडिया पोस्ट में लिखते रहे हैं - डरो मत.

कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हौसलाअफजाई के लिए राहुल गांधी ने ये बात दिल्ली के रामलीला मैदान की रैली में की थी, और आगे ये भी कहा था - 'मेरा नाम सावरकर नहीं है...' 

और फिर नियमित रूप से ये राहुल गांधी अपने समर्थकों को नहीं डरने की सलाह देते रहे हैं. ये बात काफी दिनों से राहुल गांधी और कांग्रेस के सोशल मीडिया हैंडल्स पर देखने को मिली है. 

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राहुल गांधी की नजर में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में या कहीं भी और चले जाने वाले नेता भी डरपोक कैटेगरी में आते हैं. और इस बारे में भी वो अपने करीबी नेताओं के बीच साफ कर चुके हैं कि जो निडर नेता बाहर हैं, आरएसएस और बीजेपी से उनको कांग्रेस में लाया जाना चाहिये. 

राहुल गांधी के इसी 'डरो मत' स्लोगन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पश्चिम बंगाल की एक रैली में इस्तेमाल किया था. राहुल गांधी के वायनाड के बाद अमेठी छोड़ कर रायबरेली से चुनाव लड़ने पर भी प्रधानमंत्री मोदी और बाकी बीजेपी नेता ऐसे ही हमले बोलते दिखे.  

बर्दमान की रैली में मोदी ने कहा, मैंने पहले कहा था कि राहुल गांधी वायनाड हार रहे हैं... और वो नई सीट खोज रहे हैं... उनके चेले चपाटे कह रहे थे कि वो अमेठी से लड़ेंगे... लेकिन वो तो इतना डर गए हैं कि वायनाड से भागकर रायबरेली पहुंच गए हैं... वो देश भर में घूम-घूमकर कहते हैं कि डरो मत, डरो मत... आज मैं भी कहना चाहता हूं कि डरो मत... भागो मत.

मोदी के इस कटाक्ष पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने पलटवार किया, 'वो भी तो खुद ही भागकर वाराणसी आये ना.'

बाद में एक वीडियो में राहुल गांधी ने दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव में हार को लेकर डरे हुए हैं. 

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अब राहुल गांधी का वीडियो आया है, दावा है कि मोदी डरे हुए हैं - क्योंकि 'मोदी के हाथ से चुनाव निकल रहा है.'

कुल मिला कर अब ये देखने को मिल रहा है कि दोनों तरफ से डर बर अटैक और काउंटर अटैक होने लगा है - सवाल है कि क्या डर की बात भी कोई जुमला है?

क्या अडानी-अंबानी को चुनावी मुद्दा बना दिया गया है

बर्दमान की ही रैली में प्रधानमंत्री मोदी का कहना था, मैं भी बताना चाहता हूं कि कांग्रेस पहले से भी कम सीटों पर सिमटने जा रही है - और ऐसा होने के पीछे मोदी ने अपनी तरफ से वजह भी बताई, इस बार चुनाव भी पहले से कम सीटों पर लड़ रहे हैं.

विपक्षी गठबंधन INDIA ब्लॉक को लेकर मोदी का कहना था, ये चुनाव जीतने के लिए नहीं, देश को बांटने के लिए चुनावी मैदान का उपयोग कर रहे हैं... ये गठबंधन सिर्फ एक वोट बैंक के लिए समर्पित है.

राहुल गांधी ने सोशल साइट X पर एक रिकॉर्डेड वीडियो डाला है, जिसमें वो देश के युवाओं को संबोधित कर रहे हैं, और दावा कर रहे हैं कि 4 जून के बाद मोदी सरकार नहीं, बल्कि INDIA गठबंधन की सरकार आ रही है. 

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राहुल गांधी कहते हैं, 'देश की शक्ति, देश के युवाओं... नरेंद्र मोदी के हाथ से चुनाव निकल रहा है... वो स्लिप कर रहे हैं और हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री नहीं बनेंगे... उन्होंने डिसीजन ले लिया है कि अगले चार पांच दिनों में आपके ध्यान को भटकाना है... कुछ न कुछ ड्रामा करना है... आपके ध्यान को भटकना नहीं चाहिये... बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा है... नरेंद्र मोदी जी ने आपको कहा था कि दो करोड़ युवाओं को रोजगार देंगे... झूठ बोला... नोटबंदी की गलत जीएसटी लागू की... और सारा का सारा काम अदानी जैसे लोगों के लिए किया है... हम भर्ती भरोसा स्कीम लागू कर रहे हैं... 4 जून को इंडिया गठबंधन की सरकार आ रही है... 15 अगस्त तक भर्ती भरोसा स्कीम में 30 लाख युवाओं को रोजगार देने का काम शुरू हो जाएगा.' 

हाल ही की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी के मुंह से पहली बार अंबानी और अडानी का नाम सुना गया. मोदी ने कहा, 'मैं आज तेलंगाना की धरती से पूछना चाहता हूं... शहजादे घोषित करें कि चुनाव में ये अंबानी, अदानी से कितना माल उठाया है... काले धन के कितने बोरे भरकर मारे हैं... आज टेंपो भरकर नोट कांग्रेस के लिए पहुंची है क्या?' 

मोदी के सवाल का जवाब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा की तरफ से ही आया. प्रियंका गांधी ने कहा कि राहुल गांधी ने नाम लेना छोड़ा नहीं है, और हर रैली में वो पहले की तरह ही अंबानी और अडानी ले रहे हैं. 

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अंबानी और अडानी के मुद्दे पर भी राहुल गांधी ने एक वीडियो बयान जारी किया है. राहुल गांधी ये मुद्दा संसद में भी उठा चुके हैं, और कांग्रेस की तरफ से अडानी के कारोबार की जांच संसदीय समिति से कराने की भी मांग हो चुकी है. 

वीडियो की शुरुआत राहुल गांधी प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए की है. कहते हैं, 'नमस्कार मोदी जी... थोड़ा सा घबरा गये क्या... नॉर्मली आप बंद कमरों में अंबानी जी अदानी जी की बात करते हो... पहली बार आपने पब्लिक में आपने अदानी अदानी अंबानी बोला... और आपको ये भी मालूम कि ये टेंपो में पैसा देते हैं... क्या ये आपका पर्सनल एक्सपीरियंस है क्या... एक काम कीजिए... सीबीआई और ईडी को इनके पास भेजिये ना... पूरी जानकारी करिये... इन्क्वायरी कराइये... जल्दी से जल्दी कराइये... घबराइये मत मोदी जी... और मैं देश को जल्द से जल्द दोहरा के कह रहा हूं... जितना पैसा नरेंद्र मोदी जी ने इनको दिया है न, उतना ही पैसा हम हिंदुस्तान के गरीब लोगों को देने जा रहे हैं... महालक्ष्मी योजना... पहली नौकरी पक्की योजना... इन योजनाओं के माध्यम से... करोड़ों लखपति बनाएंगे... इन्होंने 22 अरबपति बनाये हैं, हम करोड़ों लखपति बनाएंगे.'

प्रधानमंत्री मोदी की तरफ से अंबानी और अडानी का नाम किसी चुनावी रैली में लिया जाना अपनेआप में बहुत खास है, और सवाल उठता है - क्या राहुल गांधी की मेहनत रंग लाई है? क्या राहुल गांधी अंबानी-अडानी को चुनावी मुद्दा बनाने में सफल रहे हैं? 

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राहुल और मोदी को बहस की चुनौती

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मदन बी. लोकुर, और दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व जज एपी शाह के साथ पत्रकार एन. राम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को संयुक्त रूप से एक चिट्ठी लिखी है - और दोनों नेताओं को किसी गैर-राजनीतिक और गैर-व्यावसायिक प्लेटफॉर्म पर डिबेट करने की सलाह दी है. 

मोदी और राहुल गांधी के नाम लिखे इस पत्र में कहा गया है, पब्लिक इस बात से चिंतित है कि दोनों तरफ से सिर्फ आरोप और चुनौतियां ही सुनने को मिली हैं... कोई सार्थक जवाब अब तक नहीं मिला है. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी के शीर्ष नेताओं को बहस करनी चाहिये.

पत्र में कहा गया है, ऐसा पब्लिक डिबेट मिसाल बनेगा... क्योंकि इससे न सिर्फ लोगों को सही जानकारी मिलेगी, बल्कि स्वस्थ और जीती-जागती डेमोक्रेसी की छवि भी सबके सामने आएगी.

साथ ही ये भी कहा गया है, ये पब्लिक बहस कहां होगी, कितनी देर की होगी, सवाल कौन पूछेगा और फॉर्मेट क्या रहेगा - ये प्रधानमंत्री मोदी और राहुल गांधी दोनों की सलाह पर तय किया जा सकता है, और अगर ये दोनों नेता नहीं आ सकते हैं, तो अपनी तरफ से वे किसी और को भी नॉमिनेट कर सकते हैं.

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