scorecardresearch
 

अब बस 'ब्रांड मोदी' के सहारे नहीं जीत सकती BJP... जनादेश पर राजदीप सरदेसाई के 11 Takeaway

तमाम कंपटीशन के बावजूद, मोदी पूरी संभावना के साथ एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा पूरे भारत में नंबर वन पार्टी बनी हुई है, उदाहरण के लिए, पहली बार केरल में एक सीट जीती है. लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बात है कि अगर भाजपा सोचती है कि केवल मोदी के नाम पर निर्भर रहने से वह चुनाव जीत जाएगी, तो यह उसकी गलतफहमी है.

Advertisement
X
लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बहुमत हासिल किया है.
लोकसभा चुनाव में एनडीए ने बहुमत हासिल किया है.

लोकसभा चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं. ज्यादातर लोगों को उम्मीद थी कि भाजपा एक बार फिर सत्ता में वापसी करेगी, लेकिन कांग्रेस ने जबरदस्त वापसी की और 2019 की 52 की संख्या को इस बार पहुंचाकर 99 कर दिया. रिकॉर्ड तीसरी बार वापसी करने कर प्रधानमंत्री बनने वाले नरेंद्र मोदी और बीजेपी को इस बार अपने सहयोगियों पर निर्भर रहना पड़ेगा. चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी और नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) नई सरकार, एक 'मिली जुली सरकार' (गठबंधन सरकार) में किंगमेकर के रूप में उभरे हैं.

एनडीए 293 सीटें जीतने में सफल रही, जो बहुमत के आंकड़े 272 से 21 ज्यादा है, जबकि विपक्ष के नेतृत्व वाले INDIA ब्लॉक ने 234 सीटें हासिल कर तमाम एग्जिट पोल को गलत साबित कर दिया. बीजेपी के दो सबसे मजबूत गढ़ उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में इंडिया ब्लॉक ने जबरदस्त तरीके से सेंध लगाकर पूरे सियासी परिदृश्य को बदल दिया. इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई ने अपने ब्लॉग 'स्ट्रेट बैट' में चुनाव नतीजों से जुड़ी अपनी बातें साझा की हैं और चुनाव नतीजों को लेकर जो अहम सामने आई हैं वो कुछ इस प्रकार हैं.

टेकअवे 1: भारत के लोगों ने दिखा दिया है कि यह देशी अनूठी विविधताओं से भरा हुआ है. यह एक ऐसा चुनाव था जिसे राज्य-दर-राज्य कंपटीशन के रूप में देखा जा सकता है. भाजपा इस चुनाव को कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक केवल एक नाम, ‘नरेंद्र मोदी’ और 'मोदी की गारंटी' को लेकर चुनावी मैदान में थी. इस मामले की सच्चाई यह है कि विभिन्न राज्यों के मतदाताओं ने अलग-अलग मुद्दों पर मतदान किया है. महाराष्ट्र के मतदाताओं ने पड़ोसी गुजरात के वोटरों से अलग वोट किया तो बिहार के वोटरों ने पूरे हिंदी भाषी क्षेत्र के मतदाताओं से अलग वोट किया है. बंगाल से लेकर ओडिशा तक, तमिलनाडु से लेकर अन्य राज्यों तक अलग-अलग मतदान पैटर्न नजर आया. फिर से, विविधता ने एकरूपता पर जीत हासिल की. वोटरों ने यह संदेश देने की कोशिश की कि भारत एक नेता, एक पार्टी की अवधारणा को पूरी तरह से खारिज करता है. यही कारण है कि उन्होंने एक तरह से अधिक उदार गठबंधन - एक मिली-जुली सरकार की अपनी इच्छा को दर्शाया है. क्योंकि, मेरे दोस्तों, यह महान देश आखिरकार एक गठबंधन है.

Advertisement

टेकअवे 2: भाजपा निस्संदेह पार्टी नंबर वन है और नरेंद्र मोदी नेता नंबर वन बने हुए हैं. सत्ता में रहने के बाद 10 साल की एंटी-इनकंबेंसी को पीछे छोड़ना और फिर हैट्रिक बनाना आसान नहीं है. ऐसा करने वाले आखिरी नेता जवाहरलाल नेहरू थे. शायद तब कंपटीशन बहुत कम था. तमाम कंपटीशन के बावजूद, मोदी पूरी संभावना के साथ एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनेंगे. इसलिए, इसमें कोई संदेह नहीं है कि भाजपा पूरे भारत में नंबर वन पार्टी बनी हुई है, उदाहरण के लिए, पहली बार केरल में एक सीट जीती है. लेकिन यह एक महत्वपूर्ण बात है कि अगर भाजपा सोचती है कि केवल मोदी के नाम पर निर्भर रहने से वह चुनाव जीत जाएगी, तो यह उसकी गलतफहमी है. हमने इस चुनाव में यह बहुत स्पष्ट रूप से देखा है. उम्मीदवारों का चयन, लोगों को साथ लेकर चलने की अनिच्छा, असहमति की गुनगुनाहट, यहां तक कि यह भी सुना कि योगी (आदित्यनाथ) उम्मीदवारों के चयन से नाखुश थे. जिस तरह से भाजपा नेतृत्व ने माना कि केवल ब्रांड मोदी चुनाव जीतने के लिए पर्याप्त है (वह) अब नहीं हो रहा है. स्थानीय कारक हैं जिन पर ध्यान देना होगा. भाजपा को नेतृत्व के साथ व्यवहार करते समय, देश भर में अपने कार्यकर्ताओं के साथ व्यवहार करते समय थोड़ा और विनम्र होना होगा.

Advertisement

टेकअवे 3: मतदाताओं ने सत्ता के अहंकार को नकार दिया है. याद कीजिए, पिछले कुछ महीनों से 'अबकी बार 400 पार' का नारा गूंज रहा था, मानो यह तय हो चुका हो कि अब चार सौ पार दूर नहीं है. वोटरों ने कहा, 'जब आप 400 पार कहते हैं तो हमसे भी सलाह लें.' मुझे लगता है कि कहीं न कहीं मतदाताओं ने '400 पार' के नारे  को हल्के में लिया, और यह किसी न किसी तरह से उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए वापस आया. सत्ता का अहंकार कई तरह से दिखाई दिया. उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में जिस तरह से पार्टियां टूटीं, उसे सबने देखा. सौदेबाजी लगभग इस तरह से की गई जैसे कि मतदाता या नागरिकों की चिंताएं बिल्कुल भी मायने नहीं रखतीं. महाराष्ट्र जैसे राज्यों के लोगों ने संदेश दिया कि अब बहुत हो गया. सौदेबाजी की भी सीमाएं होती हैं. या फिर, हमने अमेठी में जो देखा, जहां स्मृति ईरानी, जिन्होंने ज़मीन पर कड़ी मेहनत की लेकिन कांग्रेस के किशोरी लाल शर्मा से हार गईं. किशोरी लाल को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में देखा जाता था जो रात-दिन लोगों के लिए उपलब्ध रहता है. स्मृति ईरानी एक ऊंची पहुंच वाली मंत्री थीं और सभी कार्यकर्ता उनकी कार्यशैली से स्पष्ट रूप से खुश नहीं थे और मतदाता ने सत्ता के अहंकार का जवाब दिया है. जगन मोहन रेड्डी ने 73 साल की उम्र में चंद्रबाबू नायडू को गिरफ्तार किया. उस गिरफ्तारी ने पिछले साल चंद्रबाबू नायडू के लिए सहानुभूति जगाई.

Advertisement

टेकअवे 4: मंडल 2.0 ने किसी तरह से 21वीं सदी के मंदिर को मात दे दी है. भाजपा फैजाबाद में हार गई जहां अयोध्या है, जहां राम मंदिर स्थित है, जहां एक उम्मीदवार, लल्लू सिंह, समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार से हार गए जो पासी समुदाय से आते हैं. किसी ने मुझे बताया, वहां एक नारा था, 'मथुरा को भूल जाओ, काशी को भूल जाओ, इस पासी को वोट'. कुछ जातिगत पहचानें हैं जो कभी-कभी इस विश्वास को कमजोर कर सकती हैं कि हिंदू एकता का अस्तित्व है, विशेष रूप से वह जाति जो अभी भी समाज का निचला तबका है. अखिलेश यादव यह संदेश देने में सफल रहे कि उनका नया पीडीए - पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक गठबंधन एक व्यापक सामाजिक गठबंधन था.

टेकअवे 5: दलित मतदाता, यह बहुत दिलचस्प है कि डेटा में से एक यह बताता है कि 150 में से 90 से ज़्यादा प्रभावशाली निर्वाचन क्षेत्र, जहां दलितों की संख्या 20% से ज़्यादा है, उनमें से एक बड़ा हिस्सा इंडिया ब्लॉक के हिस्से में गया. समाज के निचले हिस्से में रहने वाले लोग, जो कोविड, कोविड के बाद के संकट, आय में गिरावट से वास्तव में आहत हुए हैं, उन तक पहुंचने की जरूरत है. अक्सर उनके कई सांसद, शायद कोविड के समय में इन लोगों तक नहीं पहुंचे. मुझे पता है कि दलित भी 'संविधान ख़तरे में है' के इस पूरे विमर्श से प्रभावित रहे थे. आरक्षण खत्म हो जाएगा जैसे नैरेटिव ने भी निचले तबके में प्रभाव डाला. मेरा मानना है कि यह सिर्फ जाति नहीं बल्कि वर्ग का मुद्दा भी था.

Advertisement

टेकअवे 6: भारत के कई हिस्सों में हमने ग्रामीण-शहरी विभाजन को और चौड़ा होते हुए देखा जहां सत्ता विरोधी भावना सबसे ज़्यादा थी. मैंने महाराष्ट्र की यात्रा की और आप इसे देख सकते हैं. पिछले कुछ सालों से सूखे की स्थिति, पानी की कमी, कुछ किसानों ने प्याज़ के निर्यात पर प्रतिबंध की शिकायत की तो कुछ ने शिकायत की कि उन्हें लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहे हैं. ग्रामीण संकट वास्तविक है, और आप इसे सिर्फ आलीशान पांच सितारा होटल में जीडीपी के आंकड़े देकर तय नहीं कर सकते. ज़मीन पर, वास्तविकता अक्सर बहुत अलग होती है और शायद, ग्रामीण संकट इस चुनाव में एक कारक था.

टेकअवे 7: महिला मतदाता-  मैंने कुछ सप्ताह पहले एक ब्लॉग में इसका उल्लेख किया था, और मैं इसे फिर से दोहरा रहा हूं. आप महिला मतदाताओं के समर्थन के बिना भारतीय चुनाव को व्यापक रूप से नहीं जीत सकते. राज्य के विभिन्न भागों में महिलाएं इस देश की विविधता को दर्शाती हैं. उदाहरण के लिए, देश के कुछ भागों में, वे 5 किलो राशन या आवास योजना या उज्ज्वला योजना पर भाजपा और प्रधानमंत्री का समर्थन कर सकती हैं. लेकिन बंगाल में वे ममता बनर्जी की लखीर भंडार योजना का समर्थन कर सकती हैं, जिसके तहत वे एक घर की महिला को 1,200 रुपए प्रदान करती हैं. यह एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है कि ममता बनर्जी बंगाल में सत्ता विरोधी लहर को रोकने में सक्षम रहीं. इसलिए महिला मतदाता, भारतीय चुनावों में एक महत्वपूर्ण कारक बनी हुई है.

Advertisement

टेकअवे 8: इसके अलावा, भारतीय चुनावों में जो काम करता है वह है गठबंधन की राजनीति. जब आप समझदारी से गठबंधन करते हैं, तो वे काम करते हैं. कर्नाटक में जेडीएस के साथ मिलकर भाजपा ऐसा करने में सफल रही और उसने काफी संख्या में इस वजह से वोट हासिल किए और कर्नाटक में अच्छा प्रदर्शन किया. भाजपा ने चंद्रबाबू नायडू के साथ गठबंधन किया और उन्हें इसका फायदा मिला. उदाहरण के लिए, बिहार में भाजपा ने नीतीश कुमार को अपने पाले में वापस ला लिया, चिराग पासवान को अपने पाले में कर लिया और एक तरह से वे बिहार में अपनी प्रमुख स्थिति बनाए रखने में सफल रहे.

इसके विपरीत, महाराष्ट्र में यह एक असमान्य गठबंधन है. जिस अजित पवार को आपने भ्रष्ट कहा था, उसी को आप लाए हैं. एकनाथ शिंदे स्पष्ट रूप से शिवसेना के नेता नंबर 1 नहीं हैं. इसलिए, गठबंधन की राजनीति जो एक राज्य में काम कर सकती है, यह दूसरे में काम नहीं करती. यही बात इंडिया ब्लॉक पर भी लागू होती है. अखिलेश (यादव) और राहुल गांधी के बीच गठबंधन ने यूपी में काम किया, लेकिन दिल्ली में AAP और कांग्रेस के बीच गठबंधन काम नहीं आया क्योंकि जमीन पर कोई केमिस्ट्री नहीं थी. यह महाराष्ट्र में MVA के लिए काम आया क्योंकि शरद पवार ने इसे एक साथ रखा. गठबंधन की राजनीति के लिए अंकगणित और केमिस्ट्री की आवश्यकता होती है, और अगर इंडिया ब्लॉक यह सुनिश्चित कर पाता कि नीतीश न जाएं, तो चंद्रबाबू नायडू से संपर्क किया जा सकता था. कौन जानता था कि वे इस चुनाव में किंगमेकर हो सकते हैं.

Advertisement

टेकअवे 9: फिर, उत्तर-दक्षिण विभाजन- चुनाव से पहले इस पर बहुत चर्चा हुई. सच्चाई यह है कि विभाजन धीरे-धीरे खत्म होने के रास्ते तलाश रहा है. आप देख रहे हैं कि दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में भाजपा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है. केरल में उन्होंने पहली सीट जीती, लेकिन वे कर्नाटक में एक प्रमुख पार्टी हैं. उन्होंने तेलंगाना में अच्छा प्रदर्शन किया है, और वे अब आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा हैं. इसी तरह, INDIA ब्लॉक पूरी तरह से ध्वस्त हो गया, विशेष रूप से कांग्रेस. 2019 और 14 में हिंदी भाषी क्षेत्रों में कांग्रेस पूरी तरह खत्म हो चुकी थी इस बार उन्होंने कुछ सुधार के संकेत दिए हैं. राजनीति कभी स्थिर नहीं होती. देश का नक्शा बदलता रहता है.

टेकअवे 10: कांग्रेस की बात करें तो 99 सीटें उस पार्टी के लिए अच्छा संकेत हैं जिसने पिछली बार 52 सीटें जीती थी. यह लगभग दोगुना है और यह मानने का कारण है कि राहुल गांधी ने इसमें प्रमुख भूमिका निभाई है. उनकी यात्रा ने निश्चित रूप से कांग्रेस को उत्साहित किया. इसने कांग्रेस को बोलने के लिए एक तरह का नैरेटिव दिया. असमानता के मुद्दों पर बोलना. मुझे यकीन नहीं है कि जाति जनगणना ने काम किया या नहीं, लेकिन कांग्रेस की गारंटी ने हाशिए पर पड़े वर्गों तक पहुंचने की कांग्रेस की कोशिश ने काम किया होगा और राहुल गांधी को इसका कुछ श्रेय मिलना चाहिए. लेकिन चिंता यह है कि कांग्रेस यह मानकर आत्मसंतुष्ट हो जाएगी कि 'ओह, अब हम 100 पर पहुंच गए हैं. हम दौड़ में हैं', नहीं सच तो यह है कि आप अभी भी भाजपा से काफी पीछे हैं. इसलिए, अगर कांग्रेस वास्तव में भाजपा से मुकाबला करना चाहती है, तो उसे अपनी ऊर्जा, अपने प्रयासों को दोगुना करना होगा, अपनी संगठनात्मक ताकत में सुधार करना होगा.

टेकअवे 11: मैं दो आखिरी बिंदुओं पर आता हूं, जो वास्तव में व्यक्तिगत हैं, जिनके बारे में मैं दृढ़ता से महसूस करता हूं. एक है धर्म. इस चुनाव के दौरान, हमने देखा है कि धर्म को चुनाव अभियान में लाने का प्रयास किया जा रहा था. 'मंगलसूत्र, मछली, मटन, मुजरा' जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया गया, वह केवल मुसलमानों के लिए ही होगी. 'वो आपकी भैंस छीन लेंगे', यह किस तरह की भाषा है? राजनीति में धर्म को लाने का यह प्रयास खतरनाक है. भारत जैसे देश में, हमारे पास दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी है. हमें ध्रुवीकरण के बजाय सामंजस्य स्थापित करने में सक्षम होना चाहिए.  जब मैं इस देश में घूमा, तो मुझे कहीं न कहीं, खासकर युवाओं ने आश्वस्त किया कि वे इस हिंदू-मुस्लिम से थक चुके हैं, और वे चाहते हैं कि आप उनके वास्तविक मुद्दों के बारे में बात करें. रोजगार, बेरोजगारी के बारे में बात करें. ग्रामीण संकट के साथ-साथ बेरोजगारी भी एक बड़ा कारक था, यही वजह है कि 18 से 23 आयु वर्ग के कई मतदाताओं ने मौजूदा सरकार के खिलाफ मतदान किया है. यही वह मुद्दा है जिस पर आपको ध्यान देने की जरूरत है, असली मुद्दे. महंगाई, बेरोजगारी.

मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि हम दुनिया में एक उल्लेखनीय विविधताओं से भरे हुए देश के नागरिक है. हम चीन नहीं हैं. हर कोई कहता है कि लोकतंत्र खतरे में है. मतदाता ने दिखा दिया है, जो समाज के निचले तबके में रहते हैं और अक्सर केवल 6,000 रुपए प्रति माह पर निर्भर रहते हैं, ने कहा है, मैं आपको दिखाऊंगा कि लोकतंत्र क्या है. अंत में मैं आपको एक पोस्ट स्क्रिप्ट देना चाहता हूं. आज, मुझे नहीं पता कि मैं दूसरे चुनाव में उपलब्ध रहूंगा कि नहीं, शायद चुनाव कवर करूंगा. कौन जानता है? शायद रिटायरमेंट का भी समय आ जाएगा. लेकिन किसी भी तरह, मैं अपने कुछ मीडिया मित्रों से बहुत लंबे समय से यह कहना चाहता था. पिछले कई वर्षों में मैंने जो कुछ देखा है, उसे मैं 'डमरू पत्रकारिता' कहता हूं, एक नेता, एक पार्टी का ढोल पीटना, टेलीविजन स्टूडियो में लगातार हिंदू-मुस्लिम के बीच दरार पैदा करना. यह ठीक नहीं है.

हमें शोर को छोड़कर खबरों पर लौटने की जरूरत है. हमें लगातार असल मुद्दों पर बात करने की जरूरत है, न कि सिर्फ पांच साल में एक बार जब हम अपनी चुनावी यात्राओं पर निकलते हैं. इस देश के लोगों को एक मजबूत, जीवंत और स्वतंत्र मीडिया की जरूरत है और ऐसा करने का यह हमारे लिए एक अवसर है. चाहे विपक्ष ऐसा करे या न करे, मीडिया के रूप में हमें देश का चिरस्थायी विपक्ष बने रहना चाहिए और हमेशा सत्ता को सच बताना चाहिए. चाहे कोई भी सत्ता में हो, किसी भी पार्टी से, यह एक तरह से एक संदेश है जो शायद मतदाता मीडिया में हम तक भेज रहे हैं कि हम कहीं न कहीं अपना रास्ता बदल लें. इस बारे में सोचें.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement