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राहुल गांधी कब समझेंगे एसआईआर की अहमियत? ममता बनर्जी तो समझ गईं

बिहार में हुए विधानसभा चुनाव में एसआईआर का मुद्दा सिरे नहीं चढ़ने के बावजूद राहुल गांधी इस मुद्दे पर अड़े हुए हैं. उनके निशाने पर चुनाव आयोग है. दूसरी तरफ बंगाल से लाखों की संख्या में अवैध बांग्लादेशी अपने देश की ओर जा रहे हैं. जिसे एसआईआर की सफलता के रूप में देखा जा रहा है. सबसे खास बात यह है कि इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी चुप्पी साध रखी है.

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ममता बनर्जी और राहुल गांधी
ममता बनर्जी और राहुल गांधी

देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को लेकर चुनाव आयोग की साख खराब करने का आरोप लगाते हुए 272 वरिष्ठ अधिकारियों ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को पत्र लिखा है. दरअसल राहुल गांधी लगातार एसआईआर के खिलाफ बयानबाजी जारी रखे हुए हैं. इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी दिसंबर के पहले सप्ताह में दिल्ली के रामलीला मैदान में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) के खिलाफ एक विशाल रैली आयोजित करने जा रही है. AICC महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने मंगलवार को कहा कि चुनाव आयोग का मकसद लोकतंत्र और विपक्षी दलों को नष्ट करना है. हम सड़कों पर उतरेंगे. दिसंबर के पहले सप्ताह में रामलीला मैदान में लाखों लोगों के साथ एक बड़ी रैली करेंगे. 

दूसरी तरफ एसआईआर पर मुखर रहने वाली वेस्ट बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अचानक इस मुद्दे पर चुप्पी ओढ़ ली है. SIR शुरू होने से ठीक पहले, 4 नवंबर को उन्होंने कोलकाता में विशाल रैली निकाली, जहां संविधान की कॉपी हाथ में लेकर 'साइलेंट इनविजिबल रिगिंग' का आरोप लगाया था. उन्होंने कहा था कि एक भी वैध वोटर का नाम कटेगा तो केंद्र की BJP सरकार गिर जाएगी.

उन्होंने EC पर पक्षपात का आरोप लगाया और कहा कि क्यों असम में SIR नहीं लागू हो रहा है, जहां BJP सत्ता में है? पर इधर कुछ दिनों से ममता का रुख बदला-बदला नजर आ रहा है. वो एसआईआर पर पहले जैसा विरोध नहीं दिखा रही हैं. यह चुप्पी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा लगती है. पहले ममता ने SIR फॉर्म लेने से इनकार किया, लेकिन अब TMC कार्यकर्ता फॉर्म भरवा रहे हैं. 

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ममता को हिंदू वोटर्स की नाराजगी का डर, राहुल गांधी को क्यों नहीं

पश्चिम बंगाल में SIR शुरू होने बंगाल से बड़े पैमाने पर अवैध बांग्लादेशी भारत छोड़कर अपने देश जाने के लिए रवाना हो रहे हैं. हर दिन इन बांग्लादेशियों की विडियो आ रही है. लोग अपना सामान सर पर लादे पैदल ही बांग्लादेश में घुसने का प्रयास कर रहे हैं. दरअसल एसआईआर की घोषणा होने के बाद इन्हें डर है कि उन्हें जेल भेज दिया जाएगा. क्योंकि उनके पास भारत की नागरिकता को प्रूफ करने वाले कागजात नहीं है.

शुरू में तो TMC ने बहुत हल्ला मचाा और दावा किया कि SIR से 7 लोगों की जान गई, और अभिषेक बनर्जी ने दिल्ली में विरोध की चेतावनी दी. पर 19 नवंबर यानि आज के दिन तक ममता बनर्जी की ओर से उनके लेवल का विरोध नहीं दिखा. ममता खुद चुप हैं. यह चुप्पी राजनीतिक रणनीति का हिस्सा लगती है. पहले ममता ने SIR को NRC से जोड़कर मुस्लिम और अल्पसंख्यक वोट बैंक को सतर्क किया,

लेकिन अब जब घुसपैठियों का पलायन BJP के नैरेटिव को मजबूत कर रहा है, वे विवाद से बच रही हैं. ममता ने SIR फॉर्म लेने से इनकार किया, लेकिन अब TMC कार्यकर्ता फॉर्म भरवा रहे हैं. ममता का मौन इसलिए है क्योंकि 2026 चुनाव नजदीक है. अवैध घुसपैठ को बचाने का आरोप लगने से हिंदू वोटर नाराज हो सकते हैं. TMC लगातार एसआईआर को BJP की साजिश बता रही है, लेकिन ग्राउंड पर चुप्पी साध ली है. कुल मिलाकर, SIR ने बंगाल की राजनीति को बांट दिया है.

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ममता चुनावी राजनीति कर रही हैं जबकि राहुल गांधी हार के बहाने ढूंढ रहे हैं 

ममता एसआईआर के मुद्दे पर चुप रहने की नीति इसलिए अपनाई हैं क्योंकि उन्हें पश्चिम बंगाल की राजनीति को साधना है.जहां वे 2026 के बंगाल चुनावों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय मुद्दों पर फोकस कर रही हैं. ममता का चुप रहना बंगाल की अल्पसंख्यक राजनीति को बचाने का है. ममता जानबूझकर बांग्लादेश जाने वाली भीड़ को मुद्दा नहीं बना रही हैं क्योंकि उन्हें पता है कि अवैध बांग्लादेशियों से सिर्फ हिंदुओं को नहीं पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बाशिंदों को भी दिक्कत है. शायद यही कारण है कि अवैध बांग्लादेशियों से खाली होते कस्बे और गांवों के बावजूद भी ममता बनर्जी अपने आक्रामक अंदाज में नहीं दिख रही हैं.

 जबकि राहुल इसे राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष को एकजुट करने का माध्यम बनाना चाहते हैं.जबकि इस मुद्दे पर उन्हें बिहार में उनके सहयोगियों का ही सपोर्ट मिलता नहीं दिख रहा है. फिलहाल ममता बनर्जी तो पहले से ही राहुल के साथ नहीं थीं. उन्होंने राहुल के बिहार वोटर अधिकार यात्रा में TMC प्रतिनिधि भेजे, लेकिन खुद नहीं गईं, जो उनके 'एकला चलो' अप्रोच को दिखाता है.

पर राहुल गांधी हार मानने के मूड में बिल्कुल नहीं हैं. दरअसल बिहार में  महागठबंधन को सिर्फ 35 सीटें मिलीं, जबकि NDA को 202 पर. लेकिन राहुल ने X पर पोस्ट किया कि SIR ने लोकतंत्र को चुरा लिया है. कांग्रेस नेता शकील अहमद ने भी SIR पर कोई आपत्ति न दर्ज करने का दावा किया, लेकिन राहुल ने इसे खारिज कर दिया.राहुल ने यह भी कहा कि चुनाव आयोग BJP का कठपुतली है. शायद इस रणनीति के जरिए राहुल अपनी हार को सिस्टम की साजिश बताकर पार्टी में विद्रोह को रोकना चाहते हैं. 

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राहुल गांधी का SIR के बहाने पैन-इंडियन मुस्लिम लीडर बनने का ख्वाब

इंडिया ब्लॉक की ओर से एसआईआर पर जैसा समर्थन चाहिए वैसा न मिलने के बावजूद राहुल गांधी इस मुद्दे पर जोर लगाए हुए हैं. दरअसल उनकी यह रणनीति हो सकती है कि इस बहाने अपने सहयोगियों के मुस्लिम वोट बैंक को हथियाया जा सके. उनका सपना हो सकता है कि वे पैन-इंडियन मुस्लिम लीडर के रूप में देश में उभरें.

दरअसल  बिहार से केरल, पश्चिम बंगाल से यूपी तक फैले मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस को अपने सहयोगियों से कड़ी टक्कर मिल रही है. यूपी में अखिलेश यादव बिहार में लालू परिवार, बंगाल में ममता बनर्जी और केरल में वामपंथी पार्टियों के आगे कांग्रेस मुस्लिम वोटर्स के बीच अपना विस्तार नहीं कर पा रही है. SIR के बहाने राहुल गांधी चाहते हैं कि पूरे देश में मुस्लिम वर्ग के इकलौते नेता बनकर उभरें. जाहिर है कि कांग्रेस को बचाने के लिए उनकी रणनीति सही हो सकती है. 

अब तो राहुल पर देश की संवैधानिक संस्थाओं की साख खराब करने का भी आरोप लग रहा

देश के 272 दिग्गजों ने चुनाव आयोग के समर्थन में खुला खत जारी किया है. इनमें 16 पूर्व जज, 123 सेवानिवृत्त नौकरशाह, 14 पूर्व राजदूत और 133 पूर्व सैन्य अधिकारी शामिल हैं. इस पत्र में कांग्रेस और विपक्षी नेताओं पर आरोप लगाया गया है कि वे लगातार बेबुनियाद आरोपों के जरिए चुनाव आयोग सहित संवैधानिक संस्थाओं की साख खराब करने की कोशिश कर रहे हैं.इन लोगों ने कहा है कि EC के खिलाफ 'प्रूफ होने' का दावा किया जा रहा है पर कोई भी शिकायत नहीं की जा रही है. स्पष्ट लगता है कि यह चुनाव आयोग को सिर्फ बदनाम करने की कोशिश है.

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