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जाति जनगणना पर 2021 में बीजेपी उतनी ही बैकफुट पर थी, जितनी 2011 में कांग्रेस

जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों की स्थिति में एक बहुत बड़ी समानता देखी जा सकती है. सत्ता में रहते हुए दोनों दलों ने सामाजिक और राजनीतिक जोखिमों के डर से इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी. हालांकि बीजेपी ने सत्ता में रहते ही जाति जनगणना का फैसला लेकर कांग्रेस से अपनी स्थिति अलग कर ली है.

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राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी
राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी

पहलगाम आतंकी हमले के बाद अचानक केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 30 अप्रैल को जातिगत जनगणना को मंजूरी दे दी. इसके बाद से देश की राजनीति में इसके श्रेय को लेकर मारा-मारी मची हुई है. जाहिर है कि केंद्र की बीजेपी सरकार का यह फैसला बिहार चुनावों को लेकर विपक्ष के मुद्दे पर एक पोलिटिकल स्ट्राइक माना गया. कांग्रेस अब इस मुद्दे को अपने नाम करने की कोशिश में है और केंद्र की एनडीए सरकार से समयसीमा, बजट आवंटन और अन्य विवरणों के बारे में लगातार  सवाल पूछ रही है. रविवार को तो कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हताश में लिया गया यू-टर्न का आरोप लगा दिया. दरअसल 2021 में बीजेपी जाति जनगणना को लेकर उतना ही बैकफुट पर थी जितना 2011 में कांग्रेस थी. यही कारण है कि बीजेपी 2011 के सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना (SECC) के तहत एकत्र किए गए डेटा को प्रकाशित न करने के लिए कांग्रेस पर निशाना साध रही है. 

 2021 में बीजेपी और 2011 में कांग्रेस दोनों ही जातिगत जनगणना के मुद्दे पर बैकफुट पर थीं. दोनों ही दल इस मुद्दे पर कन्फ्यूज थे. बीजेपी के राष्ट्रीय नेताओं का रुख अधिक स्पष्ट रूप से नकारात्मक था,पर लोकल लेवल पर बीजेपी हर राज्य में जाति जनगणना का सपोर्ट कर रही थी. इसी तरह कांग्रेस 2011 में  SECC कराकर आधा-अधूरा कदम उठाया. दोनों की स्थिति में समानता यह थी कि सत्ता में रहते हुए दोनों ने सामाजिक और राजनीतिक जोखिमों के डर से इस मुद्दे से दूरी बनाए रखी. बाद में दोनों ही दलों ने जनता के दबाव में हथियार डाल दिए. 2011 की जनगणना का डाटा कभी सार्वजनिक नहीं करने वाली कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इस मुद्दे के प्रबल पैरोकार बनकर उभरे. इसी तरह बीजेपी ने भी 2025 में जातिगत जनगणना को मंजूरी देकर अपना रुख बदल लिया.

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जाति जनगणना को लेकर कांग्रेस का मोदी पर हमला

कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जाति जनगणना को लेकर तीखी टिप्पणियां की हैं, इसे उनकी नीति में अचानक और हताशा वाला बदलाव करार दिया है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि मोदी ने पहले जाति जनगणना की मांग को शहरी नक्सल सोच कहकर खारिज किया था और दावा किया था कि देश में केवल चार जातियां हैं—गरीब, युवा, महिलाएं और किसान. कांग्रेस इसे पहलगाम हमले से देश का ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी का प्रयास बता रही है. जयराम रमेश ने इसे हेडलाइन मैनेजमेंट और पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) से ध्यान भटकाने की चाल करार दिया, जिसमें 28 लोग मारे गए थे.

राहुल गांधी का कहना है कि सरकार ने 11 साल तक विरोध के बाद उनकी पार्टी के दबाव में यह फैसला लिया, लेकिन समयसीमा की कमी को लेकर सवाल उठाए.कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खारगे ने भी आरएसएस और जनसंघ पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया, दावा किया कि 2013 में यूपीए सरकार ने सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना शुरू की थी, जिसके आंकड़े मोदी सरकार ने जारी नहीं किए.

2011 में जाति जनगणना को लेकरकांग्रेस बैकफुट पर थी

2010 में, अपनी दूसरी पारी के लगभग एक साल बाद, मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार उस समय असमंजस में पड़ गई, जब उसके सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (RJD), समाजवादी पार्टी (SP) और जनता दल (यूनाइटेड) ने मांग की कि 2011 की जनगणना के साथ जातिगत जनगणना भी की जाए.  कांग्रेस के कई ओबीसी नेता इस विचार का समर्थन कर रहे थे, पर कांग्रेस इस मुद्दे पर स्पष्ट रुख नहीं बना पा रही थी. उस दौर में सरकार की सबसे बड़ी विरोधी पार्टी बीजेपी भी इस मुद्दे पर अपना कोई स्पष्ट नीति नहीं रख रही थी. यही कारण था कि कांग्रेस इस मुद्दे पर अपने सहयोगी दलों के दबाव में नहीं आ रही थी. तत्कालीन गृह मंत्री पी. चिदंबरम थे, ने तर्क दिया कि जनगणना के दौरान जाति से संबंधित सवाल शामिल करने से तकनीकी समस्याओं के चलते गलत परिणाम मिल सकते हैं. हालांकि सरकार चलाते रहने की विवशता के चलते मनमोहन सरकार ने जाति जनजगणना तो कराई पर रिपोर्ट कभी लागू नहीं होने दी. 

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6 और 7 मई, 2010 को संसद में इस मुद्दे पर चर्चा हुई. इसने कांग्रेस के भीतर मतभेदों को उजागर किया, लेकिन अधिकांश नेताओं, जिनमें बीजेपी के नेता भी शामिल थे, ने जातिगत जनगणना के पक्ष में बात की. चर्चा के बाद, तत्कालीन सरकार ने इस मामले को तत्कालीन वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता में मंत्रियों के समूह को सौंप दिया. सितंबर 2010 में जातिगत जनगणना करने का फैसला लिया गया.

2021 में बीजेपी की स्थिति

ठीक 10 साल बाद केंद्र में सरकार बीजेपी की थी और कांग्रेस विपक्ष में. बीजेपी के सामने भी वही परेशानी थी. पार्टी ने 2021 में जातिगत जनगणना को लेकर अपरोक्ष रूप से मना कर दिया था. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में कहा कि सरकार केवल अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) की गणना करेगी, अन्य जातियों की गणना करने तकनीकी समस्याएं जैसी बातें कहकर बचने का प्रयास किया. मतलब साफ है कि दोनों ही दल जब सत्ता में होते तो जातिगत जनगणना कराने से बचते रहे. जबकि विपक्ष में आने पर जाति जनगणना का सपोर्ट करते. बीजेपी जब विपक्ष में थी (2011 से पहले), तब उसने जातिगत जनगणना का समर्थन किया था. 2010 में बीजेपी सांसद गोपीनाथ मुंडे ने इसकी मांग उठाई थी. लेकिन सत्ता में आने के बाद, 2021 में सरकार ने इसे प्रशासनिक रूप से जटिल और अव्यवहारिक बताया.

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