बिहार विधानसभा चुनाव में सबसे अधिक जिस सीट की चर्चा है वह राघोपुर सीट है.यहां तेजस्वी यादव, आरजेडी के युवा चेहरे और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के दावेदार चुनावी मैदान में हैं. देश में पिछले कुछ सालों से जहां भी विधानसभा चुनाव हुए हैं वहां बीजेपी की रणनीति रही है कि विपक्ष के सीएम कैंडिडेट को ही इस तरह घेर लिया जाए कि उसके लिए हार का संकट पैदा हो जाए. दिल्ली विधानसभा और पश्चिम बंगाल विधानसभा में बीजेपी की यह रणनीति सफल भी हुई. इसी तरह उत्तर प्रदेश में एक बार राहुल गांधी को भी बीजेपी हराने में सफल हुई थी.
दरअसल जब बीजेपी इस तरह की रणनीति अपनाती है तो यह एक सुनियोजित राजनीतिक घेराबंदी की तरह होता है. भ्रष्टाचार के आरोपों से लेकर कानूनी दबाव, और स्थानीय असंतोष को भुनाने तक सभी तरह के हथकंडों का प्रयोग करके बीजेपी सामने वाले को इस तरह पस्त कर देती है कि विरोधी पार्टी की रीढ़ ही टूट जाती है.
राघोपुर में तेजस्वी का मुकाबला बीजेपी के सतीश कुमार यादव से है, जो 2010 में राबड़ी देवी को हराने वाले 'उलटफेर' के नायक हैं. लेकिन इस बार की लड़ाई ज्यादा गहरी है. यह यादव परिवार के 'राजनीतिक किले' को तोड़ने की कोशिश है, ठीक वैसे ही जैसे बीजेपी ने केजरीवाल का 'आम आदमी' किला ध्वस्त किया और ममता का 'बंगाल की बेटी' नारा कमजोर किया.
राघोपुर: तेजस्वी का किला, बीजेपी का निशाना
राघोपुर वैशाली जिले की एक ग्रामीण सीट है, जहां यादव समुदाय का दबदबा है- करीब 3.4 लाख वोटरों में 25-30% यादव हैं. यह लालू प्रसाद यादव का गढ़ रहा है. उन्होंने 1995 और 2000 में यहाँ से जीतकर मुख्यमंत्री पद संभाला. राबड़ी देवी ने 2000 का उपचुनाव और 2005 में जीत हासिल की. तेजस्वी ने 2015 और 2020 में इसे मजबूती से थाम लिया. 2020 में तेजस्वी यादव ने सतीश यादव को 40,000 से ज्यादा वोटों से हराया. लेकिन 2025 में बीजेपी ने फिर से एक बार सतीश यादव पर ही भरोसा जताया है. दरअसल सतीश यादव एक बार राबड़ी देवी को हराकर अपने को साबित कर चुके हैं. दूसरे यह यादव कनेक्शन जोड़ने की रणनीति है. जाहिर है कि तेजस्वी के वोट बैंक को ही चुराने की कोशिश भी है .
बीजेपी की घेराबंदी शुरू हुई स्थानीय असंतोष से. हालिया रैलियों में राबड़ी देवी को ग्रामीणों का विरोध झेलना पड़ा. एक किसान ने गाड़ी रोककर चिल्लाया, राघोपुर के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है, विकास कहां है? बाढ़, बिजली की कटौती, और सड़कों की बदहाली जैसे मुद्दे तेजस्वी के खिलाफ हैं. एक्स पर एक वायरल वीडियो में स्थानीय कह रहे हैं, तेजस्वी दिल्ली में तो विकास की बात करते हैं, लेकिन यहां जंगलराज ही है. बीजेपी नेता नित्यानंद राय ने कहा कि तेजस्वी जीतेंगे तभी सीएम बनेंगे, लेकिन राघोपुर में हार तय है. जनता भरोसा खो चुकी है.
राघोपुर में तेजस्वी के खिलाफ बीजेपी की रणनीति
यह 'एंटी-इनकंबेंसी' का हथियार है, जो बीजेपी ने दिल्ली और बंगाल में भी चलाया. कानूनी मोर्चे पर भी दबाव बनाया है. तेजस्वी पर आईआरसीटीसी घोटाले में चार्जशीट का साया है. बीजेपी इसे लुटेरे परिवार का सबूत बता रही है. चुनाव आयोग के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) में तेजस्वी का नाम वोटर लिस्ट से कथित तौर पर हटाने का आरोप लगा, जो बाद में फर्जी निकला. लेकिन बीजेपी ने इसे भुनाया: तेजस्वी खुद वोटर लिस्ट से गायब हो गए, जनता भी उन्हें गायब कर देगी. यह वोटर लिस्ट विवाद दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ इस्तेमाल हुआ था, जहां बीजेपी ने 'पूर्वांचलियों को हटाने' का आरोप लगाकर काउंटर किया.
प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने चंचल सिंह को उतारकर त्रिकोणीय मुकाबला कर दिया है. किशोर ने कहा, राघोपुर में तेजस्वी को अमेठी जैसी हार मिल सकती है. यह वोट काटने की रणनीति है, जो बीजेपी को फायदा पहुंचाती है. मीडिया में आ रही रिपोर्ट के अनुसार इस सीट पर त्रिकोणीय जंग के आसार बन चुके हैं.
राघोपुर में तेजस्वी का माताजी पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का दौरा इस बात का सूबत है कि आरजेडी में भी डर का माहौल है. बीजेपी राघोपुर को 'प्रतीकात्मक युद्धक्षेत्र' बना रही है. बीजेपी के पास यादव किले को तोड़कर तेजस्वी की सीएम दावेदारी को चूर-चूर करने का मौका है.
राघोपुर में क्यों तेजस्वी कमजोर दिख रहे हैं
पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि राघोपुर में तेजस्वी कमजोर हैं. 2020 में राघोपुर से लोजपा प्रत्याशी ने करीब 2700 हजार वोट पाया था. और तेजस्वी करीब इस बार लोजपा प्रत्याशी नहीं है. लोजपा पूरी तरह से बीजेपी के साथ है. जाहिर है कि दलित वोट बीजेपी को ही मिलेंगे. इसके साथ ही सतीश यादव को एक बार राबड़ी देवी को हराने का अनुभव भी है. मतलब ऐसा नहीं है कि राघोपुर में आरजेडी अजेय हो . सतीश यादव को फिर से टिकट देकर शायद बीजेपी यही कहना चाहती है कि जैसे उन्होंने राबड़ी देवी को हराया था वैसे ही इस बार तेजस्वी को हराएंगे.
तेजस्वी ने 2015 में 91,236 वोट (49.15%) से सतीश कुमार (बीजेपी) को 22,733 वोटों से हराया. 2020 में यह अंतर बढ़कर 38,174 वोट (97,404 वोट, 48.74%) हो गया. लेकिन यह जीत 'त्रिकोणीय' मुकाबले में आई. यदि लोजपा के राकेश रौशन ने 24,947 वोट (12.48%), जो दलित वोटबैंक का बड़ा हिस्सा था. जाहिर है कि इस बार ये वोट बीजेपी कैंडिडेट को मिल सकते हैं. क्योंकि लोजपा पूरे राज्य में बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है.
इस बार LJP (रामविलास) NDA का पूर्ण साथी है और 29 सीटें पर चुनाव लड़ रही है. जाहिर है कि पिछली बार लोजपा को जो 25,000 के करीब वोट मिले थे वे दलित वोट (SC/ST 15-20%) थे. बीजेपी दलित वोटों के अपने पक्ष में ट्रांसफर होने की उम्मीद तो कर ही सकती हैं. ऐतिहासिक रूप से राघोपुर आरजेडी का गढ़ रहा है पर 2010 में सतीश कुमार (तब JD(U) से) ने राबड़ी को 13,006 वोटों से हराया था. यह 'जाइंट किलर' की मिसाल थी. सतीश ने यादव वोट भी काटे. इस बार सतीश यादव के साथ NDA का 'डबल इंजन' (मोदी-नीतीश) दलित-OBC को लुभा रहा है.
स्थानीय मुद्दे जैसे बाढ़, बेरोजगारी (युवा दर 26%), सड़कें तेजस्वी के खिलाफ हैं. राबड़ी को हाल रैलियों में विरोध झेलना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है. यादव वोट आरजेडी के लिए पक्के हैं पर इस बार यह उम्मीद की जा रही है कि कुछ वोट तो सतीश यादव को मिलेंगे हीं. सतीश का 'लोकल फेस' और IRCTC घोटाले का प्रचार तेजस्वी को घेर रहा है. अगर दलित वोट NDA को मिले तो कहानी बदल सकती है.