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बर्फ, बारिश, चट्टानें या हमारी लापरवाहियां... धराली फ्लैश फ्लड के कहर की असली वजह क्या है?

खीर गाड़ पहले भी कई बार बाढ़ ला चुकी है. 2013 में, जब केदारनाथ घाटी में GLOF से 4,000 से अधिक लोगों की मौत हुई, खीर गाड़ ने भी धराली में 4-5 फीट मलबा जमा कर दिया था. धराली का बाजार क्षेत्र डेब्रिस-फ्लो फैन पर बसा है- जो बार-बार बाढ़ से जमा हुए मलबे से बनी पंखे जैसी संरचना होती है. यह इलाका स्वभाव से ही अस्थिर है और बसने के लिए अनुपयुक्त है, फिर भी पिछले दो दशकों में यहां निर्माण तेजी से बढ़ा.

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बाढ़ का कारण अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों ने कई संभावित कारण सुझाए हैं.
बाढ़ का कारण अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों ने कई संभावित कारण सुझाए हैं.

उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला, 5 अगस्त की दोपहर, करीब 1:30 बजे, धराली गांव से बहने वाली एक शांत धारा, जिसे खीर गंगा भी कहा जाता है, अचानक प्रलयकारी बन गई. यह धारा उफान पर आ गई और नीचे की ओर बहते हुए अपने साथ चट्टानें, बोल्डर, मलबा और भारी मात्रा में पानी लेकर उतरी, जिसने गांव के बाजार क्षेत्र में कई इमारतों को बहा दिया और कई लोगों की जान ले ली.

हालांकि बचाव कार्य जारी है, लेकिन मृतकों की वास्तविक संख्या अभी अज्ञात है, क्योंकि कई शव अब भी 40 से 60 फीट गहराई तक जमे मलबे और बोल्डरों के नीचे दबे हैं. इस बीच, उत्तरकाशी के आपदा नियंत्रण कक्ष को सौ से अधिक ऐसे लोगों के बारे में पूछताछ प्राप्त हुई है जो बाढ़ के समय धराली में मौजूद थे और जिनका पता अब तक नहीं चल सका है.

बाढ़ का कारण अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन विशेषज्ञों ने कई संभावित कारण सुझाए हैं.

चट्टान और बर्फ का हिमस्खलन

वरिष्ठ भूविज्ञानी नवीन जूयाल, जिनके पास उत्तराखंड में तीन दशकों से अधिक का अनुभव है, ने बताया कि यह आपदा एक सर्क या हैंगिंग ग्लेशियर से शुरू हुई. सर्क ग्लेशियर उथली गुफानुमा घाटियां होती हैं, जिनमें बर्फ इकट्ठा होती है.

1850 में 'लिटिल आइस एज' के समाप्त होने के बाद ये ग्लेशियर पीछे हटने लगे और अपने पीछे मोरेन्स नामक ढीली-ढाली चट्टानों और मलबे की परतें छोड़ गए, जो आसानी से कटाव और बहाव में आ सकती हैं. जूयाल का अनुमान है कि 5 अगस्त को खीर गंगा को पोषित करने वाले सर्क ग्लेशियर में चट्टान और बर्फ का हिमस्खलन हुआ.

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आमतौर पर, इस तरह के हिमस्खलन का कारण बादल फटने (क्लाउडबर्स्ट) जैसी मौसमी घटना होती है, लेकिन जूयाल को ऐसा नहीं लगता. उनका मानना है कि आपदा से पहले के दिनों में हुई मध्यम लेकिन लगातार बारिश ने यह ट्रिगर किया होगा. इसके अलावा, इस साल वसंत ऋतु तक बर्फबारी जारी रही, जिसे जूयाल ने जलवायु परिवर्तन से जोड़ा. वसंत की बर्फ में जल की मात्रा सर्दियों की बर्फ की तुलना में अधिक होती है.

जूयाल के अनुसार, 'मार्च-अप्रैल तक जारी बर्फबारी के कारण खीर गंगा को पोषित करने वाले सर्क ग्लेशियर के सामने मौजूद गुफा जैसी जगह में पानी से भरपूर बर्फ का बड़ा जमाव हो गया होगा. 3 से 5 अगस्त तक लगातार हुई बारिश ने इस जमाव को उसकी क्षमता से ज्यादा भर दिया होगा. इसमें दरारें पड़ी होंगी और इसका कुछ हिस्सा टूटकर गिरा होगा, जिससे खीर गंगा में बर्फ-चट्टान का हिमस्खलन हुआ.'

Uttarkashi flash floods

(धाराली, 2023 में, जब आज तबाह हो चुका बाजार क्षेत्र पूरी तरह सुरक्षित था)

चूंकि ढलान काफी तेज है, यह हिमस्खलन ग्लेशियर के मोरेन्स (बोल्डर, गाद, मिट्टी) को साथ लेकर तेजी से नीचे आया. रास्ते में मौजूद भूस्खलन क्षेत्र ने अस्थायी रूप से, कुछ घंटों के लिए, प्रवाह को रोका होगा. जब ये रुकावटें टूटीं, तो अचानक भारी मात्रा में मलबा, पानी और बोल्डर धराली में कुछ ही सेकंड में उतर आए.

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यह आपदा फरवरी 2021 में चमोली जिले के कुछ हिस्सों में आई बाढ़ जैसी दिखी, जिसमें 204 लोगों की मौत हुई थी और दो जलविद्युत परियोजनाएं क्षतिग्रस्त हुई थीं. उस समय रोंटी पीक से 80% चट्टान और 20% बर्फ का हिमस्खलन हुआ था, जिससे घर्षणीय गर्मी उत्पन्न हुई, बर्फ पिघली और पानी, बर्फ के टुकड़े व मलबे का तेज बहाव शुरू हो गया.

वरिष्ठ भूविज्ञानी यशपाल सुंद्रीयाल ने कहा, 'चमोली की बाढ़ और धराली की आपदा में समानता थी- गाढ़े पानी का बहाव, जिसमें भारी मात्रा में मलबा और बोल्डर मिले हुए थे, जिसने कई इमारतें बहा दीं और लोगों की जान ली.'

खीर गंगा के अलावा, पास की दो अन्य धाराएं- हर्षिल गाड़ और झाला गाड़- भी 5 अगस्त को उफान पर थीं. हर्षिल (धराली से लगभग 4 किमी दूर) में एक भारतीय सेना का कैंप क्षतिग्रस्त हुआ और कम से कम नौ जवान लापता हो गए. जूयाल का मानना है कि चूंकि ये तीनों धाराएं नजदीक हैं और एक जैसे भू-आकृतिक ढांचे (सर्क ग्लेशियर) से निकलती हैं, इसलिए हर्षिल गाड़ और झाला गाड़ में भी खीर गाड़ (खीर गंगा) जैसी बर्फ-चट्टान वाली घटनाएं हुई होंगी.

हालांकि मीडिया में अटकलें हैं कि धराली की आपदा का कारण ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) हो सकता है, लेकिन जूयाल की सैटेलाइट तस्वीरों के विश्लेषण में इसका कोई सबूत नहीं मिला.

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भूस्खलन झील फटने से आई बाढ़

विशेषज्ञ यह भी जांच कर रहे हैं कि क्या खीर गाड़ के रास्ते में कहीं अस्थायी झील बनी थी, जो बाद में टूट गई. इससे यह समझाया जा सकता है कि बाढ़ का बहाव अचानक तेज हुआ और जल्दी घट गया- बिल्कुल किसी बांध के टूटने जैसा. भूविज्ञानी पियूष रौतेला ने कहा, 'संभावना है कि भारी बारिश से कहीं भूस्खलन हुआ, जिससे अस्थायी बांध बना और पानी उसमें जमा हो गया. जब यह बांध टूटा, तो भूस्खलन झील फटने से बाढ़ आई.' 

कुछ स्थानीय लोगों ने बताया कि बाढ़ से पहले खीर गाड़ में पानी की मात्रा घट गई थी, जो यह संकेत देती है कि ऊपर कहीं पानी जमा हो रहा था. लेकिन उस समय घने बादलों के कारण साफ सैटेलाइट तस्वीरें नहीं मिल पाईं.

क्या बादल फटा था?

आपदा के बाद, उत्तराखंड सरकार ने दावा किया कि खीर गाड़ की बाढ़ का कारण क्लाउडबर्स्ट था. लेकिन रौतेला के अनुसार, यह 'सुविधाजनक' स्पष्टीकरण है, पर पूर्ण कारण नहीं बताता. सुंद्रीयाल का कहना है कि क्लाउडबर्स्ट आमतौर पर हिमालय की दक्षिणमुखी ढलानों पर होते हैं, जबकि खीर गाड़ उत्तरमुखी ढलान से निकलती है, जहां यह घटना बहुत दुर्लभ है.

Uttarkashi floods

सैटेलाइट तस्वीरें: 13 जून 2024 की आपदा से पहले की धाराली और 7 अगस्त 2025 की आपदा के बाद की धाराली (एनआरएससी, हैदराबाद)

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IMD के डेटा के अनुसार, 3 से 5 अगस्त के बीच उत्तरकाशी में केवल हल्की से मध्यम बारिश हुई और किसी भी स्टेशन पर क्लाउडबर्स्ट का कोई सिग्नेचर दर्ज नहीं हुआ. IIT रुड़की के डॉ. अंकित अग्रवाल की टीम ने 24 जुलाई से 5 अगस्त के बीच के बारिश के डेटा का विश्लेषण किया. उनके अनुसार, 5 अगस्त को बादलों का व्यवहार अत्यधिक वर्षा जैसा था, लेकिन अधिकतम बारिश 36 मिमी प्रति घंटे रही, जो क्लाउडबर्स्ट की 100 मिमी/घंटा सीमा से काफी कम है. फिर भी, टीम ने बादल फटने की संभावना को पूरी तरह खारिज नहीं किया है.

Uttarkashi flash floods

2013 में खीर गंगा में आई बाढ़ के बाद की धाराली (स्रोत: चेतन सिंह चौहान)

यह प्राकृतिक आपदा नहीं थी

खीर गाड़ पहले भी कई बार बाढ़ ला चुकी है. 2013 में, जब केदारनाथ घाटी में GLOF से 4,000 से अधिक लोगों की मौत हुई, खीर गाड़ ने भी धराली में 4-5 फीट मलबा जमा कर दिया था. धराली का बाजार क्षेत्र डेब्रिस-फ्लो फैन पर बसा है- जो बार-बार बाढ़ से जमा हुए मलबे से बनी पंखे जैसी संरचना होती है. यह इलाका स्वभाव से ही अस्थिर है और बसने के लिए अनुपयुक्त है, फिर भी पिछले दो दशकों में यहां निर्माण तेजी से बढ़ा. सुंद्रीयाल ने कहा, 'धराली मानव बस्ती के लिए सुरक्षित स्थान नहीं है. इस बाढ़ में नदी ने अपना पुराना रास्ता फिर से अपना लिया.'

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(कविता उपाध्याय एक पत्रकार और शोधकर्ता हैं, जो भारतीय हिमालयी क्षेत्र में आपदाओं और खतरों के विज्ञान, राजनीति और नीतियों पर लिखती हैं. वह स्वयं हिमालय की निवासी हैं और विशेष रूप से पानी से जुड़े मुद्दों पर कहानियां लिखने को लेकर पैशनेट हैं. उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड से वाटर साइंस, पॉलिसी और मैनेजमेंट में ग्रेजुएट किया है.)

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