जाति सर्वे को लेकर कांग्रेस आजकल कितनी आंदोलित है यह राहुल गांधी के बयानों को देखकर लगाया जा सकता है. राहुल आजकल हर मंच पर जाति सर्वे की बात करते हैं. पिछड़ी जातियों के अधिकारों को लेकर उनकी सजगता इतनी बढ़ गई है कि कहा जाने लगा है कि वो अपने सहयोगी पार्टियों जैसे आरजेडी, जेडीयू, समाजवादी पार्टी के वोट बैंक पर उनकी नजर है. पर सवाल उठता है कि केंद्र की एनडीए सरकार से जाति सर्वे की मांग करने वाली पार्टी आखिर अपनी सरकार वाले राज्यों में क्यों पीछे हट रही है. कर्नाटक में जाति सर्वे हो चुका है, रिपोर्ट भी सरकार को सौंपी जा चुकी है. फिर भी कर्नाटक सरकार आंकड़ों को सार्वजनिक करने से क्यों हिचक रही है? आखिर बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने जाति सर्वे कराकर रिपोर्ट सामने ला ही दिया है. तो फिर कांग्रेस को कर्नाटक में भी रिपोर्ट को जनता के सामने लाने में किस बात का डर है? छत्तीसगढ़ में भी पिछड़ी जातियों का हेडकाउंट कराया गया है, और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कहते हैं इन आंकड़ों को सबको बताने की क्या जरूरत है. यह सरकारी कामकाज के लिए है. आखिर छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार राहुल गांधी की मंशा को नकार रही है, या फिर यह एक फिक्सिंग है. आखिर, जाति सर्वे के आंकड़े जनता के सामने लाने से डर क्यों रही है कांग्रेस सरकार?
कांग्रेस और पिछड़ी जाति
ब्राह्मण-दलित और मुसलमान के वोट पर देश पर कई दशकों तक राज करने वाली कांग्रेस ने कभी पिछड़ी जाति के वोटों का ख्याल नहीं किया. यही कारण है कि मंडल कमीशन के बाद की राजनीति में पार्टी उत्तर भारत से साफ होती गई. यूपी और बिहार में पिछड़ी जाति की राजनीति करके बीजेपी ने अपनी जड़ें गहरी जमा लीं. ऐसा नहीं है कि कांग्रेस राज में पिछड़ों के लिए कुछ नहीं हुआ पर रीजनल पार्टियों और भारतीय जनता पार्टी के मुकाबले कांग्रेस को अपनी पिछड़ा समर्थक छवि बनाने में देर लग गई. यही कारण है कि राहुल गांधी लगातार पिछड़ी जातियों के हक की आवाज उठा रहे है. 16 अप्रैल को राहुल गांधी ने कहा कि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ओबीसी, दलितों और आदिवासी समुदाय का भला करना चाहते हैं, तो 2011 की जनगणना के जातिगत आंकड़े सार्वजनिक करें.उन्होंने आगे कहा था कि पीएम मोदी ऐसा कभी नहीं करेंगे, क्योंकि वह ओबीसी का कल्याण नहीं चाहते. लेकिन कांग्रेस मौका मिलते ही 2011 की जनगणना के आंकड़े जारी करेगी.कांग्रेस ने तब नारा भी दिया था, 'जितनी आबादी, उतना हक़'. अब सवाल उठता है कि आखिर कर्नाटक में तो कांग्रेस की ही सरकार है तो फिर किस बात की देर है. पहले अपने घर में तो रोशनी करके उजाला तो फैलाए कांग्रेस.
कर्नाटक में जाति सर्वे की रिपोर्ट का इंतजार
साल 2013 से 2018 तक कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया 2014 ने कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग जिसे बीसी आयोग कहा गया को जातियों का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिए.बताया गया कि सरकार का इरादा सरकारी कल्याण योजनाओं के लिए पात्र समुदायों की खोज करना है. जातिगत जनगणना का काम आनन फानन में बहुत तेजी से शुरू हुआ.करीब 162 करोड़ रुपये खर्च कर 45 दिनों के अंदर इस आयोग ने एक करोड़ 35 लाख घरों का दौरा किया. कुछ दिनों बाद जब इस जनगणना को असंवैधानिक बताया जाने लगा तो बीसी आयोग का नाम बदलकर सामाजिक और आर्थिक सर्वे कर दिया गया. आयोग के अध्यक्ष एच कांथाराज ने 2017 में रिपोर्ट भी कांग्रेस सरकार को सौंप दिया. पर सरकार ने बहुत सी खामियों की बात कहकर रिपोर्ट को दबा लिया. कहा गया कि जाति के कॉलम में बहुत से लोगों ने अपनी उपजाति भर दी, पर हकीकत कुछ और था. दरअसल कर्नाटक में अचानक 192 से अधिक नई जातियां सामने आ गईं. सरकार को समझ में नहीं आ रहा था कि अपने वोटबैंक और इन जातियों के बीच सांमजस्य कैसे बिठाया जाए. ओबीसी की संख्या में भारी बढ़त तो हुई पर खास लिंगायत और वोक्कालिगा जैसे समुदाय के लोगों की संख्या कैसे कम हो गई ये पता नहीं चल सका. कांग्रेस ये नुकसान सहन करने की स्थिति में नहीं थी और रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
आंकड़ों के लीक होने से विरोध शुरू हो गया
दरअसल साल 2018 में इस जाति जनगणना के कुछ आंकड़े लीक हो गए. जिससे वोक्कालिगा और लिंगायत दोनो समुदायों में भयंकर नाराजगी देखी गई. लीक हुई रिपोर्ट्स के अनुसार लिंगायत की आबादी 14 प्रतिशत और वोक्कालिगा की 11 प्रतिशत थी. जबकि इन दोनों समुदायों का मानना है कि राज्य में लिंगायत 19 प्रतिशत और वोक्कालिगा 16 फ़ीसदी के करीब हैं.अन्य पिछड़ा वर्ग की कुल आबादी 20 प्रतिशत के करीब होने की बात भी पता चली. वोक्कालिगा और लिंगायत दोनों समुदायों ने इस पर आपत्ति जताई. जातिगत जनगणना के आंकड़ों दोनों समुदायों ने खारिज कर दिया. दोनों समुदायों ने हाई कोर्ट में अर्जी लगाई.कहा कि सरकार के पास जाति जनगणना कराने का कोई अधिकार नहीं. दूसरी ओर ओबीसी कार्यकर्ताओं ने भी कोर्ट में अपील की कि सरकार को रिपोर्ट स्वीकार करने का निर्देश दिया जाए. दोनों मामले अभी भी कोर्ट में है.
वोक्कालिगा और लिंगायत दोनों की आबादी घटी
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने जाति सर्वे की रिपोर्ट तो लागू नहीं की. 2018 में बनी बीजेपी सरकार के लागू करने का तो सवाल ही नहीं था.लेकिन 2023 में जब कर्नाटक में फिर कांग्रेस की सरकार बनी तो सीएम सिद्धारमैया ने भरोसा दिलाया कि सरकार राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की जाति जनगणना की रिपोर्ट को स्वीकार करेगी. पार्टी ने चुनावों के दौरान भी इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था. सिद्धारमैया का इतना कहना था कि लिंगायत और वोक्कालिगा ने फिर विरोध शुरू कर दिया.दरअसल लोकसभा चुनाव सर पर हैं. दूसरे वोक्कालिगा डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार भी अंदर से नहीं चाहते कि रिपोर्ट जारी हो. हालांकि डीके शिवकुमार ने इस तरह की बातों का खंडन किया है.पर अगर वास्तव में वोक्कालिगा की आबादी दूसरी जातियों के मुकाबले कम होगी तो निश्चित है कि उनके राजनीतिक महत्व पर भी आंच आएगी ही. विधानसभा चुनावों में लिंगायत और वोक्कालिगा के समर्थन से पार्टी को कई सीटों का फायदा भी हुआ था, इस बात की अनदेखी का मतलब है बड़े पैमाने पर राजनीतिक नुकसान.
छत्तीसगढ़ में भी मुद्दा बनेगा
आज तक ने अपने पंचायत कार्यक्रम में जब छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से पूछा कि आपकी सरकार ने भी पिछड़ी जातियों की जनगणना कराई है उसे सामने क्यों नहीं ला रहे हैं? बघेल ने कहा कि क्या जरूरत है सामने लाने की, सरकार ने योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए हेडकाउंट कराया है. सरकार को हाइकोर्ट में जवाब देना था कि किस आधार पर पिछड़ी जातियों का आरक्षण बढ़ाया इसके लिए ये हेडकाउंट कराया गया था. सीएम बघेल बार-बार जोर देने पर स्पष्ट नहीं कर सके कि आंकड़ों को पब्लिक डोमन में लाने से वो क्यों डर रहे हैं.