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क्या अगड़ा बनाम पिछड़ा संघर्ष के लिए फिर तैयार हो रही है बिहार की धरती?

मंडल आयोग के लागू होने के बाद देश में सबसे अधिक जिस राज्य की राजनीति प्रभावित हुई वो बिहार ही है. यूं कहिए कि उत्तर भारत में अगड़ा बनाम पिछड़ा राजनीति का सबसे बड़ा केंद्र बिहार ही है. यह लोकसभा चुनाव भी इससे अछूता नहीं रहने वाला है.

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अशोक महतो की पत्नी के चुनाव लड़ने से बदलेंगे कई समीकरण
अशोक महतो की पत्नी के चुनाव लड़ने से बदलेंगे कई समीकरण

बिहार की धरती पर कुछ सीटें एक बार फिर अगड़ा बनाम पिछड़ा के संघर्ष की गवाह बनने को तैयार हो रही हैं. इसकी स्क्रिप्ट तैयार है , कैरेक्टर गढ़े जा चुके हैं. सुयोग्य कलाकारों को उनका रोल समझाया जा रहा है. इस क्रम में 90 के दशक में सुर्खियां बटोरने वाले बिहार के बाहुबली अशोक महतो एक बार फिर चर्चा में है. सोमवार को 55 साल की उम्र में अशोक महतो ने अचानक शादी रचायी. खरमास में जब शादी के लिए शुभ मुहूर्त नहीं होता है तब महतो ने 46 साल की अनीता संग फेरे लिये. बिहार में कहा जा रहा है कि अशोक महतो की पत्नी को आरजेडी मुंगेर में प्रत्याशी बना सकती है.

अशोक महतो की पत्नी अगर आरजेडी से चुनाव लड़ती हैं तो निश्चित है कि इलाके की सियासी लड़ाई में नया मोड़ आएगा. ललन सिंह जेडीयू के सांसद हैं और अभी तक यह मानकर चला जा रहा है कि वो एक बार फिर प्रत्याशी बनेंगे. पर अशोक महतो की पत्नी के आने के बाद ललन सिंह को टिकट मिलता है या नहीं यह समय बताएगा. नवादा के रहने वाले अशोक महतो और अखिलेश सिंह जो कि बीजेपी विधायक अरुणा देवी के पति हैं उनके बीच 90 के दशक में खूनी संघर्ष होता रहा है. ऐसा माना जाता है कि नवादा, शेखपुरा के इलाके में करीब 200 से ज्यादा लोगों की जान इस संघर्ष में गई थी. अशोक महतो पिछड़ी जातियों को गोलबंद किए थे जबकि अखिलेश अगड़ी जातियों को.

बिहार की राजनीति में 90 के दशक में अगड़ों के हीरो रहे बाहुबली आनंद मोहन सिंह भी अपनी पत्नी लवली आनंद और पिछड़ों के नायक बाहुबलि पप्पू यादव भी किस्मत आजमाने चुनावी जंग में उतर रहे हैं.जाहिर है कि दोनों अपनी जीत के लिए अपने टार्गेट वोटर्स के ध्रुवीकरण की हर कोशिश करेंगे.आखिर यही कारण रहा कि जब पिछले साल बाहुबली आनंद मोहन की जेल से रिहाई हुई थी तब पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने पिछड़ी जाति के गैंगस्टर अशोक महतो की रिहाई की मांग उठाई थी. 

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अशोक महतो की एंट्री से बनेंगे कई नए समीकरण

आईपीएस अधिकारी अमित लोढ़ा और बाहुबली अशोक महतो के बीच टकराव की कहानी 'खाकी' वेब सीरीज में दिखाई गई थी. इस सीरीज में यह दिखाया गया था कि अगड़ी जातियों के खिलाफ अशोक महतो छोटी जातियों को किस तरह संगठित करके हिंसा का जवाब और बड़े हिंसात्मक घटनाओं को अंजाम देता है. दोनों तरफ से कई नरसंहार होते हैं. 

ये तो रही बात एक सच्ची कहानी पर बनी वेब सीरीज की. पर बिहार की राजनीति का वह दौर अगड़ी बनाम पिछड़ी राजनीति के लिए भी कुख्यात रहा है. बंदूक उठाने वाले लोग अपनी जाति के नायक बन गए. उनके प्रति गर्व की भावना को आम जनता से वोट के रूप में कैश कराने के लिए राजनीतिक पार्टियों ने उन्हें राजनीतिक संरक्षण दिया. करीब हर दल ने अपनी राजनीतिक विचारधारा के नाम पर जो फिट बैठा उसे राजनीतिक संरक्षण दिया. किसी भी एक पार्टी को दोष नहीं दिया जा सकता. 

वही बात फिर दुहराई जा रही है. अशोक महतो को उसे दौर में भी राजनीतिक संरक्षण हासिल था और अब वो अपने सियासी संपर्क का फायदा उठाकर अपनी पत्नी के सहारे राजनीतिक एंट्री को तैयार है.

अशोक महतो के ऊपर कई नरसंहार में शामिल होने के आरोप रहे हैं. 17 साल तक जेल में रहने के बाद बीते 10 दिसंबर 2023 को अशोक महतो जेल से बाहर आए. महतो के गिरोह के ऊपर 2005 में सांसद राजो सिंह की हत्या का आरोप लगा था. 2002 में महतो नवादा जेल से भाग गया.

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आरजेडी के लिए अगड़ा बनाम पिछड़ा कराने में फायदा

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव कहते हैं कि उनकी पार्टी एटूजेड की पार्टी है. मतलब सभी की पार्टी है.  पर यह कौन नहीं जानता कि आरजेडी का कोर वोटर्स तो मुस्लिम और यादव ही हैं. पर लालू यादव और तेजस्वी इस बात को अच्छी तरह समझते हैं राज्य में पूर्ण बहुमत के लिए माई समीकरण के अलावा भी वोट की जरूरत है.यही बात जेडीयू और बीजेपी के साथ भी है. उन्हें भी आरजेडी के वोटों में सेंध लगाना है. अगर ऐसा नही कर सके तो इस बिहार में एनडीए की सीटें घट जाएंगी. यही कारण है कि आज बिहार की सभी पार्टियां सभी का नेतृत्व होने का दावा करती हैं. पर सामाजिक न्याय के लिए जाति जनगणना की बात होती है. क्योंकि सभी पार्टियां अतिपिछड़ों को अपना बनाना चाहती हैं.

जेडीयू के बीजेपी के साथ जाने के बाद आ़रजेडी की सबसे बड़ी चिंता अति पिछड़ों के वोट को लेकर है.यही कारण है कि आरजेडी अपनी पुरानी रणनीति पर काम कर रही है. यानि कि जब तक अगड़ा बनाम पिछड़ा की लड़ाई स्वाभिमान की बात नहीं बनेगी तब तक पिछड़ों का वोट आरजेडी के लिए ध्रुवीकृत नहीं होगा. मुंगेर, नवादा, शिवहर आदि में आरजेडी पिछड़ों को एक जुट करने की रणनीति पर काम कर सकती है. यही कारण है कि मुंगेर की सियासी लड़ाई में नया मोड़ आया है. यहां से ललन सिंह जेडीयू के सांसद हैं और अभी तक उनका चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है. इसके पहले मुंगेर में लालू यादव ने ललन सिंह को हराने के लिए बाहुबली का सहारा लिया पर सफल नहीं हो सके . क्योंकि 2019 में यहां से अनंत सिंह की पत्नी नीलम कांग्रेस उम्मीदवार थीं पर उनके भूमिहार होने के चलते आरजेडी यह सीट हार गई. दरअसल आरजेडी का भूमिहार तब तक ही भूमिहार है जब तक एनडीए का कैंडिडेट भूमिहार नहीं है. 

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नवादा और बेगूसराय में भी बदलेंगे समीकरण

अशोक महतो की पत्नी के आरजेडी से उम्मीदवार बनने के बाद पूरे इलाके का समीकरण बदल सकता है.कई नए समीकरण हर रोज बनाए और बिगाड़े जा रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुंगेर में कोई भी नेता लगातार दो बार जीता नहीं है. इस सबके बीच यह भी कहा जा रहा है कि मुंगेर और नवादा की किलेबंदी के लिए जेडीयू सूरजभान सिंह का सहारा ले सकती है.नवादा में बीजेपी जिसे लड़ा सकती है उसमें विवेक ठाकुर , अरुणा देवी, उनके पति अखिलेश सिंह, पूर्व विधायक अनिल सिंह जैसे कई स्थानीय नाम लाइन में हैं. कुछ लोगों का मानना है कि ललन सिंह की जगह जेडीयू मुंगेर में सूरजभान को भी ट्राई कर सकती है. मुंगेर नहीं तो नवादा से सूरजभान को साथ रखना एनडीए की जरूरत बन गई है.हालांकि कुछ चुनाव विश्वेषक यह भी कह रहे हैं कि पशुपति पारस गुट अगर महागठबंधन की ओर आता है तो सूरजभान लोजपा से एनडीए के खिलाफ भी चुनाव लड़ सकते हैं.

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