आज समय बहुत तेज-रफ्तार है. देश और दुनिया दोनों ही भाग रहे हैं. चुनौतियां हर तरफ हैं. परीक्षाएं कठिन हैं और प्रतियोगिता से घिरी हुई इस सदी में विद्यार्थी एवं युवाओं को हमारी समृद्ध विरासत और गौरवशाली भारतीय अतीत विशेष रूप से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के स्मरण का अवकाश नहीं मिलता. हमारा स्वतंत्रता आंदोलन हमारे समृद्ध और गौरवशाली इतिहास का एक हिस्सा है लेकिन असंख्य ऐसे नि:स्वार्थ, साहसी स्वतंत्रता सेनानी भी रहे हैं, जिनका योगदान उजागर नहीं हुआ या जिनकी अनदेखी की गई.
इन भूले-बिसरे नायकों को याद किए बिना भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की कहानी को पूर्ण रूप नहीं दिया जा सकता. अगर हम देश के उन महान सपूतों और वीरांगनाओं का स्मरण नहीं करते, तो भारत की स्वतंत्रता के अमृत काल का जश्न अधूरा है, जिनकी वजह से हम स्वतंत्र हैं.

नई पीढ़ी तक यह कैसे पहुंचे कि हमारे शहीदों के सर्वोच्च अद्भुत त्याग, अपरिमित साहस, अद्वितीय बलिदान और नि:स्वार्थ भावना ने हमें आजादी दिलाई है. इसी ‘कैसे पहुंचे’ का सबसे सरल और स्पष्ट माध्यम हैं सुधीर आजाद.
राष्ट्रीय युवा पुरस्कार एवं मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी पुरस्कार सहित अन्य सम्मानों से सम्मानित नदी के कवि डॉ. सुधीर आजाद ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर शोधकार्य किया है. ‘मैं खुदीराम त्रैलोक्यनाथ बोस’ खुदीराम बोस पर आधारित एकांकी, ‘शहीद-ए-आजम’ - सरदार भगतसिंह पर महाकाव्य, ‘क्रान्तिमना’ - नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर आधारित बाल नाटक, ‘क्रान्तिसंत’ - नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर आधारित नाटक, ‘शेर-ए-सिंध’ – शहीद हेमू कालाणी पर आधारित नाटक, ‘मेरा नाम आजाद है’-अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद पर रचित एकांकी, 'इदं राष्ट्राय इदं न मम्' नेताजी सुभाषचंद्र बोस पर समीक्षा-ग्रंथ, ‘क्रांतिव्रती: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई’ महाकाव्य एवं राष्ट्रीयता से ओतप्रोत ‘मैं भारत हूं’- बाल-कविताओं का संग्रह उनकी इस यज्ञ में आहुति जैसे हैं.

छोटी उम्र में अपने पिता को खो देना, बड़ी बहन द्वारा पालन-पोषण और जीवन की सारी विषमताओं के बीच स्वयं को इतनी विशाल सोच और गहरे भावों वाला बनाकर अपना सब कुछ राष्ट्र हित समर्पित कर देने का दृढ़-संकल्प! अद्भुत है! अठारह बरस की छोटी-सी उमर में शताब्दियों से बड़ा जीवन जीने का नाम है शहीद खुदीराम बोस. यदि क्रांति का कोई चेहरा होता है तो वह शहीद खुदीराम बोस हैं. यदि आत्माहुति का कोई जीवन-दर्शन होता है, तो वह जीवन-दर्शन शहीद खुदीराम बोस हैं. यदि राष्ट्र के प्रति प्रेम का कोई प्रतीक है, तो वह प्रतीक शहीद खुदीराम बोस हैं. शहीद खुदीराम बोस पथ भी हैं और पाथेय भी हैं. उनका व्यक्तित्व एवं कृतित्व आजादी के आंदोलन के लिए खासतौर पर क्रांतिकारियों के लिए एक जीवन-पद्धति बन गया.
किताब की भूमिका में सुधीर आजाद लिखते हैं कि ‘मैं छोटी कक्षा के बच्चों के मन-मस्तिष्क में आजादी के महानायकों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को लाना चाहता था इसी उद्देश्य के साथ मेरे मन में एक नाटक का विचार आया. चूंकि छोटे बच्चों से नाटक करवाना था इसलिए शहीद खुदीराम बोस मेरे अंतस में उभर गए और मैंने उन पर एक नाटक लिखना शुरू किया. समय के साथ मुझे इस बात का बोध हुआ कि छोटे बच्चों को नाटक की बजाय एकांकी के माध्यम से शहीद खुदीराम बोस से परिचित करवाऊं तो यह और भी बेहतर होगा. एक हिमालय जैसा विराट व्यक्तित्व जिसके बारे में सोचने मात्र से अंतस भावों से भर जाता है और माथा गर्व और अभिमान से ऊंचा हो जाता है. अब मैं शहीद खुदीराम बोस की छोटी-सी आयु के विशाल जीवन को अपने विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क में उतारना चाहता था.’

खुदीराम बोस की फांसी के बाद ब्रिटिश साम्राज्य के भय का समापन हो चुका था. शहीद भगतसिंह, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे सेकड़ों क्रांतिकारियों के लिए वे एक अविचल आस्था और अपराजेय प्रतिबद्धता का पर्याय रहे.
मुजफ्फरपुर मजिस्ट्रेट की अदालत में खुदीराम बोस पर अंग्रेज जज किंग्स्फोर्ड की बग्घी पर बम फेंकने के अपराध के तहत मुकदमा और शहीद खुदीराम बोस को फांसी की सजा. एकांकी की सीमा और संरचना की दृष्टि से जिलाधीश वुडमैन को वकील के रूप में चित्रित किया गया है. अपने सीमित कलेवर और संक्षिप्त कैनवास में एकांकी के सभी तत्वों से परिपूर्ण यह नाटक अपने में मंचन की प्रभावी और आदर्श संभावनाएं लिए हुए है. एकांकी की भाषा का ओज और प्रवाह बेजोड़ है. भाषा पात्रों के भाव-विचारों को पूरी सफलता के साथ प्रेषित करने सक्षम है.
पात्र-योजना प्रसंगानुकूल है. देश, काल एवं वातावरण को अपनी कथावस्तु में समेटे यह एकांकी सफल है. ऐतिहासिक दृष्टि से यह पूर्णतः प्रामाणिक है, इसमें कोई दोराय नहीं है. संवाद योजना में डॉ. सुधीर आजाद का संस्कृतिबोध भारतीय आध्यात्मिक परंपरा से उपजा हुआ है. संवाद स्थिति के अनुरूप अपना भाषा-विन्यास लिए हुए हैं. एकांकी की संवाद योजना वाकई बेहद प्रभावी और जीवंत है कि इसे पढ़कर आपके मन-मस्तिष्क में जैसे कोई ऊर्जा हिलोरें लेने लगती हैं.

एकांकी में आए संवाद
“मैं खुदीराम त्रैलोक्यनाथ बोस अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता का स्वप्न लिए बढ़ रहा हूं और इस स्वप्न को सच करने के सामर्थ्य को प्राप्त करने के प्रतिबद्ध हूं.”
“... वो सूर्य की तरह है, उसका औदात्य तिमिर को हरने और हराने वाला है. वह चेतन का दिव्य-पुंज है. स्व-राष्ट्र और स्वाभिमान से भरा हुआ मेरा मित्र किसी पर्वत की भांति अडिग है. उसकी आस्था मेरी ही तरह स्वतंत्रता उसके जीवन का एकमेव लक्ष्य है.”
“पराधीन राष्ट्र का विद्यार्थी अपनी मातृभूमि के प्रति कर्तव्यों की अनदेखी कर अपने गौरवशाली भविष्य के सपने नहीं देख सकता. यह विध्वंसकता नहीं स्वतंत्रता का उद्घोष है.”
“आप गलत सोचते हैं, मैं भटके हुए लोगों से प्रेरित नहीं हूं. मैं उन महान क्रांतिकारी नेताओं के विचारों से प्रेरित हूं जिन्होंने मातृभूमि की आजादी के लिए अपने व्यक्तिगत सुखों और सुविधाओं को तिलांजलि दे दी है. जिनके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है, जो राष्ट्र की वंदना करते हैं और राष्ट्र-यज्ञ में स्वयं को आहूत किए हैं.”
‘‘महोदय यह आपकी नजर में अपराध हो सकता है लेकिन मेरी नजर में यह मेरा कर्तव्य है, जो पुण्य की श्रेणी में सर्वोपरि है. आप एक और बात यह भी अपने मस्तिष्क में छाप लीजिए कि ब्रिटिश साम्राज्य याद रखे कि भारत अब बहुत समय तक अधीन नहीं रहनेवाला. अभी हम हैं हमारे बाद और भी आएंगे, आपके फांसी के तख्ते कम पड़ जाएंगे लेकिन भारतमाता के लिए मर-मिटने वाले कम नहीं होंगे.”
लेखिका ने कहा कि मैं इन संवादों का उल्लेख इस समीक्षा में विशेष रूप से इसलिए कर रही हूं कि इन कुछ संवादों को पढ़कर ही आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि यह एकांकी अपने छोटे से कलेवर में कितनी अग्नि लिए है. राष्ट्रबोध और कर्त्तव्यबोध से संपृक्त यह एकांकी निःसंदेह नई पीढ़ी के मन-मस्तिष्क में राष्ट्र-प्रेम के बीज अंकुरित करेगी इसमें तनिक भी संदेह नहीं है.