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Bilateral Pneumonia: डबल निमोनिया के कारण ICU में भर्ती हुए थे पोप फ्रांसिस! जानें इस बीमारी का कारण, लक्षण और इलाज

पोप फ्रांसिस अपने पूरे जीवन में फेफड़ों के संक्रमण से परेशान रहे.14 फरवरी को उन्हें बाइलेटरल निमोनिया की शिकायत पर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 23 मार्च को उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया था. आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में.

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पोप फ्रांसिस का 88 साल की उम्र में 21 अप्रैल को निधन हुआ.
पोप फ्रांसिस का 88 साल की उम्र में 21 अप्रैल को निधन हुआ.

Pope Francis dies at the age of 88: ईसाई धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का वेटिकन सिटी में सोमवार यानी 21 अप्रैल को निधन हो गया था. वेटिकन के डॉ. एंड्रिया आर्केंजेली ने पुष्टि की थी कि पोप फ्रांसिस की मौत स्ट्रोक और दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई है. वे कई बीमारियों से जूझ रहे थे, जिनमें गंभीर ब्रोंकाइटिस और डबल निमोनिया (बाइलेटरल निमोनिया) भी शामिल थे. जब 14 फरवरी 2025 को उनकी तबियत खराब हुई थी तो उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट किया गया था, जहां डॉक्टर्स ने उन्हें बाइलेटरल निमोनिया होने की पुष्टि की थी. कुल 38 दिनों के इलाज के बाद उन्हें 23 मार्च को अस्‍पताल से डिस्चार्ज किया गया था. 

ब्रोंकाइटिस और बाइलेटरल निमोनिया दोनों ही फेफड़ों से संबंधित बीमारियां हैं लेकिन ये दोनों फेफड़ों के अलग-अलग हिस्सों को प्रभावित करती हैं. ब्रोंकाइटिस, ब्रोन्कियल नलियों (फेफड़ों तक जाने वाले वायुमार्ग) की सूजन है, जबकि निमोनिया फेफड़ों में स्थित हवा की थैलियों (एल्वियोली) का संक्रमण है. बाइलेटरल निमोनिया एक ऐसी स्थिति है जिसमें निमोनिया दोनों फेफड़ों को प्रभावित करने लगता है.

क्या है बाइलेटरल निमोनिया?

बाइलेटरल निमोनिया फेफड़ों से जुड़ा का एक इंफेक्शन है. इस संक्रमण के चलते शरीर की एल्वियोली में फ्लूइड भर जाता है और व्यक्ति को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है. जब ये स्थिति दोनों फेफड़ों तक पहुंच जाती है तो इसे बाइलेटरल निमोनिया कहा जाता है. ऐसी स्थिति में दोनों फेफड़े ही कमजोर हो जाते हैं और सांस लेने में कठिनाई होने लगती है. एक्सपर्ट्स की मानें तो अगर इस बीमारी को वक्त रहते कंट्रोल नहीं किया गया तो व्यक्ति की मौत भी हो जाती है. 

किन लोगों को हो सकता है बाइलेटरल निमोनिया?

बैक्टीरिया, फंगस और वायरस के संपर्क में आना बाइलेटरल निमोनिया होने के पीछे के मुख्य वजह हैं. कई बार तो साधारण सा बुखार भी धीरे-धीरे गंभीर होते हुए निमोनिया का रूप ले लेता है. 68 साल के ऊपर के बुजुर्ग, छोटे बच्चे और क्रोनिक इंफेक्शन वाले लोग कमजोर इम्यूनिटी के चलते इस बीमारी के आसान शिकार बन सकते हैं. 

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बाइलेटरल निमोनिया के लक्षण

बाइलेटरल निमोनिया की कंडिशन में व्यक्ति को सांस लेने तक में कठिनाई होने लगती है, तेज बुखार रहता है. लगातार खांसी आती है. सीने में असहनीय दर्द महसूस होता है. बहुत ज्यादा थकान लगने लगता है. ऐसे में अगर आप भी 3 दिनों से ज्यादा वक्त से बीमार हैं और इस तरह के लक्षणों से परेशान हैं, तो आप निमोनिया के आसान शिकार बन सकते हैं.

बाइलेटरल निमोनिया का इलाज

बाइलेटरल निमोनिया का इलाज भी आम तौर पर सिंगल निमोनिया के समान ही होता है, जो बैक्टीरियल, वायरल या फंगल कारणों के कारण होता है. ट्रीटमेंट में बैक्टीरियल संक्रमण के लिए एंटीबायोटिक्स, वायरल संक्रमण के लिए एंटीवायरल दवाएं और फंगल संक्रमण के लिए एंटीफंगल शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा, आराम, लिक्विड चीजों का सेवन और ओवर-द-काउंटर दर्द निवारक जैसी मेडिकल हेल्प से इसके लक्षणों को कम किया जा सकता है.

20 साल की उम्र में कटना पड़ा था फेफड़े का एक हिस्सा

पोप फ्रांसिस अपने पूरे जीवन में फेफड़ों के संक्रमण से परेशान रहे. 1957 में जब वह 20 साल के थे तो उन्हें एक गंभीर रेस्पिरेटरी इंफेक्शन हो गया था, जिसके चलते उनके फेफड़े का एक हिस्सा निकालना पड़ा था. हाल के वर्षों में उन्हें श्वसन समेत कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों के चलते बार-बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था.

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2020 में साइटिका नाम की बीमारी से थे परेशान

वेटिकन न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020 के अंत में उन्हें साइटिका नाम की बीमारी हो गई थी. इसके चलते उन्हें अपने कई सारे कई महत्वपूर्ण कार्यक्रमों को रद्द करना पड़ा था. बता दें एक ऐसा दर्द है जो साइटिक नर्व के साथ-साथ चलता है. इसमें पीठ के निचले हिस्से से लेकर पैर तक असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है.

2021 और 2023 में भी अस्पताल में होना पड़ा एडमिट

जुलाई 2021 में पोप फ्रांसिस ने कोलन के डायवर्टिकुलर स्टेनोसिस के लिए सर्जरी करवाई थी. इस सर्जरी के दौरान उनके कोलन का 13 इंच हिस्सा हटा दिया गया था. साल साल 2022 से पोप फ्रांसिस सार्वजनिक कार्यक्रमों में वॉकर या व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हुए नजर आए थे. 2023 में ब्रोंकाइटिस के लक्षणों के चलते जेमेली यूनिवर्सिटी अस्पताल में भी तीन दिन के लिए एडमिट होना पड़ा था.

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