सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि देश के सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश चार महीने के भीतर आनंद कारज अधिनियम (Anand Marriage Act) के तहत सिख विवाहों के पंजीकरण के लिए नियम तैयार कर अधिसूचित करें. अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल, मुख्यमंत्री या अन्य अधिकारियों की तरह जनसंख्या के आकार या पहले से मौजूद कानूनों के आधार पर इस नियम को टालना स्वीकार्य नहीं है.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि 2012 में आनंद विवाह अधिनियम लागू होने के बावजूद कई राज्यों में आज तक इसके तहत विवाह पंजीकरण नियम अधिसूचित नहीं किए गए. परिणामस्वरूप सिख विवाहों को अभी भी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत दर्ज किया जा रहा है.
यह आदेश उत्तराखंड के अधिवक्ता अमनजोत चड्ढा की याचिका पर आया है, जिन्होंने राज्य सरकार को बार-बार पत्र लिखकर नियम अधिसूचित करने की मांग की थी. जब कार्रवाई नहीं हुई तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.
अदालत ने कहा कि विवाह प्रमाणपत्र नागरिक जीवन में बराबरी और व्यवस्था के लिए आवश्यक है. यह निवास, भरण-पोषण, उत्तराधिकार, बीमा, संपत्ति और एकविवाह जैसे अधिकारों के कानूनी सबूत के तौर पर काम करता है. खासतौर पर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए यह अहम दस्तावेज है. अलग-अलग राज्यों में असमान व्यवस्था नागरिकों के साथ भेदभाव करती है, जो संविधान की धर्मनिरपेक्ष और समानता की भावना के विपरीत है.
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख निर्देश
सभी राज्य/केंद्रशासित प्रदेश 4 महीने में नियम बनाकर राजपत्र में प्रकाशित करें और विधानसभा में रखें. जब तक नियम अधिसूचित नहीं होते, तब तक आनंद कारज (Anand Karaj) विवाहों को मौजूदा ढांचे के तहत बिना भेदभाव पंजीकृत किया जाए. एक बार आनंद अधिनियम के तहत विवाह दर्ज हो जाने के बाद किसी और कानून के तहत दोबारा पंजीकरण की मांग नहीं की जाएगी.
कोर्ट ने कहा कि कोई भी प्राधिकरण केवल इस आधार पर आवेदन को खारिज नहीं कर सकता कि नियम अधिसूचित नहीं हुए हैं. यदि खारिज करना पड़े तो लिखित कारण देना अनिवार्य होगा. जहां सामान्य विवाह पंजीकरण ढांचा मौजूद है, वहां आनंद कारज विवाहों को भी समान रूप से दर्ज किया जाए और यदि पक्षकार चाहें तो यह उल्लेख किया जाए कि विवाह आनंद रीति से हुआ है.
पीठ ने यह भी कहा कि कई राज्यों ने सिख आबादी कम होने का हवाला दिया और कहा कि नियम बनाने में समय लगेगा. इस पर कोर्ट ने दो टूक कहा कि राज्य की यह जिम्मेदारी है और इसे टाला नहीं जा सकता. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी आदेश दिया है कि वह दो महीने के भीतर सभी राज्यों के लिए मॉडल नियम तैयार करे और छह महीने में अनुपालन की विस्तृत रिपोर्ट कोर्ट और कानून मंत्रालय की वेबसाइट पर पेश करे.