कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी का नाम भारत की नागरिकता मिलने से पहले ही वोटर लिस्ट में दर्ज होने को लेकर दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई थी. इस याचिका में यह मांग की गई है कि कोर्ट दिल्ली पुलिस को सोनिया गांधी के खिलाफ केस दर्ज कर इस मामले की जांच करने का निर्देश दे.
इस याचिका पर अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (एसीजेएम) वैभव चौरसिया ने सुवाई की. इस पर फैसला गुरुवार, 11 सितंबर की शाम चार बजे आएगा. एसीजेएम वैभव चौरसिया ने इस याचिका पर बुधवार को सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि सोनिया गांधी ने भारत की नागरिकता मिलने से तीन साल पहले ही वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करा लिया था.
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि नागरिकता हासिल किए बिना वोटर लिस्ट में नाम शामिल कराने के आरोप में सोनिया गांधी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच कराई जानी चाहिए. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि नियम कहता है कि पहले नागरिकता हासिल करनी होती है, उसके बाद ही आप वोटर बन सकते हैं.
याचिकाकर्ता के वकील ने आगे कहा कि उस समय न तो पैन कार्ड था, ना ही आधार कार्ड. तब पासपोर्ट या राशन कार्ड ही पहचान का आधार थे. उन्होंने कहा कि सवाल ये है कि किन डॉक्यूमेंट्स के जरिये सोनिया गांधी 1980 में नई दिल्ली से वोटर बनी थीं. फिर 1982 में वोटर लिस्ट से दो नाम डिलीट हुए. एक संजय गांधी का जिनकी मृत्यु हो गई थी और दूसरा सोनिया गांधी का.
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बता दें कि याचिका में कहा गया है कि सोनिया गांधी को भारत की नागरिकता 30 अप्रैल 1983 को मिली थी, जबकि उनका नाम जनवरी, 1980 में में हुए चुनाव के लिए बनी वोटर लिस्ट में शामिल था. याचिका मे सवाल उठाया गया है कि 1980 की वोटर लिस्ट में नई दिल्ली सीट पर सोनिया गांधी का नाम कैसे शामिल था.
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इस याचिका में यह भी कहा गया है कि 1982 मे सोनिया गांधी का नाम वोटर लिस्ट से आखिर क्यों डिलीट किया गया. जब उनको 1983 मे नागरिकता मिली, तो किन डॉक्यूमेंट्स के आधार पर 1980 की वोटर लिस्ट में उनका नाम शामिल कराया गया. क्या फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया गया था.