दिल्ली गैंगरेप मामले में पहली सजा सुना दी गई है. पूछा जा रहा है कि यह सजा भी कोई सजा है? अपराध किसी दरिंदगी से कम नहीं था और सजा हुई केवल 3 साल. केवल इसलिए, क्योंकि अपराधी नाबालिग था. नाबालिग भी ऐसा कि उसकी उम्र 18 साल से कुछ ही दिन कम थी. एक सवाल और भी है. वो यह कि रेयरेस्ट ऑफ द रेयर मामलों में भी नाबालिग अपराधी को ज्यादा से ज्यादा सजा केवल 3 साल ही क्यों?
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इसी सवाल को आजतक ने जानकारों के सामने उठाया. पता चला कि अपराध चाहे कितना भी जघन्य क्यों न हो, बाल अपराधी (जुवेनाइल) को अधिकतम सजा 3 साल की ही हो सकती है. यह भारतीय कानून की बाध्यता है. यही नहीं, यह सजा संयुक्त राष्ट्र के प्रावधानों को देखते हुए भी दी गई है. ज्यादातर देशों में इसी नियम को फॉलो किया जाता है.
कानूनों में संशोधन की जरूरत है: केटीएस तुलसी
सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील केटीएस तुलसी ने बताया कि बाल अपराध के मामलों में ज्यादा से ज्यादा सजा तीन साल की है. अपराध चाहे कैसा भी हो, ऐसे मामलों में कानून अपराध का वर्गीकरण नहीं करता. तुलसी ने बताया कि यदि आयु 18 साल से एक मिनट भी कम है तो अपराधी को प्रावधानों के तहत लाभ मिलता है.
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तुलसी का कहना है कि अब जुवेनाइल कानूनों में संशोधन की जरूरत है. संसद को चाहिए कि कानून में संसोधन करे और नाबालिग की उम्र 18 से घटाकर 16 कर दे. उन्होंने तर्क दिया कि पिछले 5 सालों में जुवेनाइल अपराध के आंकड़े काफी चौंकाने वाले रहे हैं. 16 से 18 की उम्र में अपराध (मर्डर, रेप और अन्य) करने वालों की संख्या में 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में बाल अपराध ज्यादा तेजी से बढ़ा है. इन बाल अपराधियों की उम्र 16 से 18 साल के बीच है.
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बाल अपराध की अधिकतम सजा बढ़ाई जाए: महेश जेठमलानी
एक अन्य वरिष्ठ वकील महेश जेठमलानी ने कहा कि दिल्ली गैंगरेप के मामले में फैसला प्रावधानों के अनुसार हुआ है. लेकिन अब वक्त आ गया है कि कानून में बदलाव किया जाए. सभी तरह के जुवेनाइल अपराधों में अधिकतम सजा, जो अभी तक 3 साल है, को बढ़ाया जाना चाहिए.
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'समाज की नीति और नीयत में बदलाव की जरूरत'
सुप्रीम कोर्ट के अन्य वकील और मानवाधिकार कार्यकर्ता कॉलिन गोन्साल्विस ने कहा कि कानून अपनी जगह पर सही है. बाल अपराधों में इजाफे की वजह समाज और सरकार भी हैं. सजा बढ़ाने की जगह समाज की नीति और नीयत में बदलाव की जरूरत है.
पुलिस की मानें तो स्थिति खतरनाक है
पुलिस अधिकारियों का कहना है कि भारत में जुवेनाइल कानून का लाभ उठाकर बहुत से संगठित अपराध हो रहे हैं. कई ऐसे गिरोह हैं, जो 16 से 18 साल की उम्र तक के बच्चों से अपराध कराते हैं. इसके बदले बच्चों को पैसा दिया जाता है. कानून का लाभ इन बच्चों को मिलता है और ये जल्दी छूट जाते हैं. यदि वैसा ही अपराध कोई बालिग करे तो उसे उम्रकैद तक की सजा संभव है.
पुलिस की इस बात पर यकीन इसलिए किया जा सकता है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में बाल अपराध के मामले पहले की बजाय बहुत अधिक होने लगे हैं. कहा जा सकता है कि अपराध करने के तौर-तरीके बदल गए हैं तो अब कानून को बदलने की भी बहुत जरूरत है.