केन्द्र सरकार की सिफारिश के बाद झारखंड में दो साल में दूसरी बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया है. केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रपति को खनिज संपन्न राज्य में राष्ट्रपति शासन के लिए मंगलवार को सिफारिश की थी जिसे राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने स्वीकार कर लिया.
15 नवंबर 2000 को अपने गठन से लेकर अब तक इस राज्य में सात मुख्यमंत्री बदले गये हैं. राज्य में पिछले साल 19 जनवरी को राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था जिसे जुलाई में छह माह के लिए बढ़ा दिया गया. राज्य में राष्ट्रपति शासन तब लगाया गया था जब शिबू सोरेन तमार उपचुनाव में हार जाने के चलते विधानसभा में प्रवेश पाने में विफल रहे थे और किसी भी दल ने सरकार बनाने की पेशकश नहीं की.
पिछले साल अक्तूबर-नवंबर के विधानसभा चुनावों में एक बार फिर किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला और शिबू सोरेन तीसरी बार राजग के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गये. लोकसभा में कटौती प्रस्ताव के दौरान संप्रग के समर्थन में मतदान करने के चलते भाजपा के समर्थन वापस ले लेने के बाद सोरेन को 30 मई को इस्तीफा दे दिया था.
झारखंड में मार्च 2003 के बाद से राजनीतिक अस्थिरता है जब बाबूलाल मरांडी की सरकार विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पायी. तब भाजपा कथित तौर पर अपने नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा और उनके पूर्व कनिष्ठ रघुवर दास के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पायी.
इस राजनीतिक अस्थिरता के कारण अर्जुन मुंडा दो सरकारों का नेतृत्व कर चुके हैं, सोरेन तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं और मरांडी तथा मधु कोड़ा एक एक सरकार की अगुवाई कर चुके हैं. भाजपा के महासचिव गणेश मिश्र ने कहा, ‘हमने राष्ट्रपति शासन से बचने के लिए हरसंभव कोशिश की, लेकिन हम अपने प्रयासों में दुर्भाग्यवश सफल नहीं हो पाये.’ भाजपा प्रवक्ता संजय सेठ ने कहा कि राज्य में लंबे समय तक राष्ट्रपति शासन लागू नहीं किया जाना चाहिए.