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उग्रवाद से उत्पन्न चुनौतियों पर पीएम चिंतित

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उग्रवादी विचारधारा के प्रवर्तकों द्वारा पेश चुनौती पर चिंता जताते हुए आज आह्वान किया कि इस बुराई से निपटने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है. प्रधानमंत्री यहां राष्ट्रमंडल देशों की संसद के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के 20वें सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए ये बाते कही.

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उग्रवादी विचारधारा के प्रवर्तकों द्वारा पेश चुनौती पर चिंता जताते हुए आज आह्वान किया कि इस बुराई से निपटने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है. प्रधानमंत्री ने यहां राष्ट्रमंडल देशों की संसद के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के 20वें सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा ‘उग्रवादी विचारधारा के प्रसार से सारे समाज के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा हो गया है.

ऐसी विचारधारा के लोग डरा धमकाकर, आतंक या अन्य प्रकार की असहिष्णुता के जरिये लोकतंत्र के मूल सिद्धांत और प्रतिनिधित्व की राजनीति के लिये चुनौती पैदा कर रहे हैं. हमें ऐसी ताकतों को कभी मौका नहीं देना चाहिए और हम ऐसा कोई मौका दे भी नहीं सकते.’

उन्होंने कहा कि साथ ही हमें ऐसे तौर तरीके और माध्यम अपनाने चाहिए जिससे हमारे लोकतांत्रिक आधारों को नुकसान पहुंचाये बिना ऐसी ताकतों को नष्ट किया जा सके. उन्होंने कहा कि इस बुराई से निपटने के लिए सतत अंतरराष्ट्रीय प्रयासों और सहयोग की जरूरत होगी.

राष्ट्रमंडल देशों की संसदों के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के इस सम्मेलन में 42 देशों की संसदों के 50 स्पीकर और पीठासीन अधिकारी हिस्सा ले रहे हैं. इसके अलावा भारत के विभिन्न राज्य विधानमंडलों के 34 अध्यक्ष और पीठासीन अधिकारी भी सम्मेलन में भाग ले रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में देश में क्षेत्रीय और उप क्षेत्रीय दलों की बढती संख्या और साथ ही गठबंधन राजनीति के बढते चलन पर भी चर्चा की. सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, ब्रिटेन के हाउस आफ कामंस की डिप्टी स्पीकर सिल्विया हिल, लोकसभा उपाध्यक्ष करिया मुंडा, राज्य सभा के उप सभापति के रहमान खान, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ए राजा, तथा अनेक केन्द्रीय मंत्रियों सांसदों एवं नेताओं ने हिस्सा लिया.

इस सम्मेलन में राष्ट्रमंडल देशों की संसदों के 34 महासचिव एंव अधिकारियों सहित 250 विदेशी मेहमान हिस्सा ले रहे हैं. यह तीसरा मौका है जब भारतीय संसद राष्ट्रमंडल देशों की संसदों के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन की मेजबानी कर रही है. इससे पहले 1971 और 1986 में यह सम्मेलन भारत में आयोजित किया जा चुका है.

प्रधानमंत्री ने कहा कि हाल के समय में लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व प्रणाली मजबूत हुई है क्योंकि मतदाताओं के ज्यादा से ज्यादा वर्ग को राजनीतिक आवाज मिल रही है. भारत में यह प्रवृत्ति क्षेत्रीय और उप क्षेत्रीय दलों की बढती संख्या और गठबंधन राजनीति की बढती सहभागिता के रूप में सामने आयी है.

उन्होंने कहा कि इसने न सिर्फ शासन के लिए बल्कि संसदीय लोकतंत्र की व्यवस्था के संचालन के लिए भी चुनौती खड़ा हुई है क्योंकि छोटी पाटिर्यों की आवाज राजनीतिक ढांचे के अंदर ज्यादा गूंज रही है. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में संसद का सुचारू ढंग से संचालन सभी वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व और आवाज प्रदान करना अधिक जटिल और चुनौती भरा हो गया है.

प्रधानमंत्री ने इस मौके पर एक स्मारक डाक टिकट भी जारी किया. उद्घाटन समारोह से पहले लोकसभा अध्यक्ष ने विज्ञान भवन में ‘भारत में संसदीय लोकतंत्र एक विहंगम दृष्टि’ विषय पर एक प्रदर्शनी का भी शुभारंभ किया. लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आजादी के बाद पिछले छह दशकों के दौरान हमारे देश में संसदीय लोकतंत्र ने गहरी जड़े जमा ली है. नियम निर्धारित हैं और स्वस्थ परंपरायें स्थापित हो चुकी हैं.

उन्होंने कहा कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं और हमारी संसद ने राजनीतिक व्यवस्था में विशिष्ट स्थान हासिल कर लिया है. वास्तव में हमारी संसद हमारे संविधान के अनुरूप लोकतंत्र के आदशरें, मानव गरिमा और सहिष्णुता के आदशरें को आगे बढाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

पांच दिवसीय इस सम्मेलन में तीन मुख्य विषयों ‘अध्यक्ष की मध्यस्थ के रूप में भूमिका, संसदीय संदर्भ में प्रौद्योगिकी का प्रयोग और संसद के प्रशासन में अध्यक्ष की भूमिका’ पर कार्यशालायें आयोजित की गई हैं.

हर दो वर्ष पर आयोजित होने वाले इस सम्मेलन का उद्देश्य संसदों के अध्यक्षों और पीठासीन अधिकारियों की निष्पक्षता का अनुरक्षण, विकास और संवर्धन करना तथा विभिन्न रूपों में संसदीय लोकतंत्र के ज्ञान और समझबूझ का संवर्धन और संसदीय संस्थानों का विकास करना है.

सम्मेलन का शुभारंभ कनाडा के हाउस आफ कामन्स के तत्कालीन स्पीकर की पहल पर 1969 में किया गया था और इसका मुख्यालय कनाडा में ही स्थित है. यह सम्मेलन एक स्वतंत्र समूह है और इसकी राष्ट्रमंडल संसदीय संघ, राष्ट्रमंडल सचिवालय या राष्ट्रमंडल देशों के शासनाध्यक्षों से कोई औपचारिक संबद्धता नहीं है.

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