इंडिया टुडे ग्रुप की वाइस चेयरपर्सन और एग्जीक्यूटिव एडिटर-इन-चीफ कली पुरी ने ऑक्सफोर्ड इंडिया फोरम के एक सत्र में लीडरशिप, संस्थागत विरासत और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में इंसानों की भूमिका पर बात की. 'Bridges Across Centuries: Leadership Lessons for the Algorithm Age' नाम से आयोजित सत्र में कली पुरी ने कहा कि बदलते समय में भी इंडिया टुडे समूह अपने मूल डीएनए पर कायम है और इसलिए एक मीडिया संगठन के रूप में निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है.
सत्र की शुरुआत में कली पुरी ने अपने खास मजाकिया अंदाज में बातचीत शुरू करते हुए सत्र की मॉडरेटर कांक्षी अग्रवाल से कहा, 'अक्सर ऐसा होता है कि सवाल हम करते हैं लेकिन सवाल दूसरी तरफ से होना मेरे लिए ताजगी भरा है. यह हमारे साथ बेहद कम होता है लेकिन मुझे यह अच्छा लग रहा है कि आप सवाल कर रही हैं और मुझे जवाब देना है.'
उन्होंने मु्स्कुराते हुए आगे कहा, 'ऑक्सफोर्ड में वापस आकर अच्छा लग रहा है. यहां आकर मैं फिर से स्टूडेंट जैसा फील कर रही हूं.'
कली पुरी ने ऑक्सफोर्ड में पढ़ाने के सिस्टम को इसकी नींव बताते हुए कहा कि सदियों पुरानी संस्थाएं इसलिए जीवित रह पाती हैं क्योंकि वो अपनी जड़ों को नहीं छोड़तीं. उन्होंने कहा, 'ऑक्सफोर्ड ने उस चीज को बनाए रखा है जो इसे सबसे अलग बनाती है. चैटजीपीटी के युग में भी, यह एआई-प्रूफ है क्योंकि यहां आपको अभी भी अपने ट्यूटर के सामने बैठना है और अपनी बातें कहनी हैं. कोई भी एआई आपके लिए ऐसा नहीं कर सकता.'
इसी के साथ ही उन्होंने इंडिया टुडे ग्रुप का जिक्र करते हुए कहा कि संगठन में आधुनिक बदलाव हुए हैं लेकिन उसका डीएनए बरकरार है. उन्होंने कहा, 'हम अभी भी मूल रूप से कहानीकार हैं.'
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उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि नई तकनीक के आ जाने से मूल भावना कमजोर नहीं होनी चाहिए. कली पुरी ने कहा, 'हमें टेक्नोलॉजी के विकास के साथ-साथ अपने पास उपलब्ध सभी उपकरणों में आधुनिकता लानी चाहिए ताकि हम अपनी कहानी को सबसे बेहतर तरीके से कह सकें. और मुझे लगता है कि यही कारण है कि आज हम एक मीडिया संगठन के रूप में यहां खड़े हैं. हम अभी भी असरदार हैं क्योंकि हम उस मूल डीएनए पर कायम हैं.'
उन्होंने कहा कि जिस तरह से संगठन के लिए अपने डीएनए पर कायम रहना जरूरी है, उसी तरह एक इंसान को भी अपनी जड़ों से जुड़ा होना चाहिए. उन्होंने कहा, 'एक सफल व्यक्ति को अपने मूल को समझना होगा. यदि आप अपने मूल को नहीं समझते हैं और उसकी रक्षा नहीं करते हैं, और उसके प्रति ईमानदार नहीं हैं तो आप जो भी करते हैं, उसमें सच में सफल नहीं हो सकते.'
एआई पर भी खुलकर बोलीं कली पुरी
कली पुरी ने सत्र के दौरान एआई और उसके रिस्क पर खुलकर बात की. उन्होंने कांक्षी अग्रवाल से कहा, 'मुझे लगता है कि आज AI को ज्यादातर अतीत के डेटा पर ट्रेनिंग दी जाती है. और अतीत पूर्वाग्रहों से भरा हुआ है, जिसे खत्म करने में हमने सालों लगा दिए हैं.'
उन्होंने कहा कि इंडिया टुडे ग्रुप न्यूजरूम ऑटोमेशन, एआई एंकर और सिंथेटिक पॉप स्टार्स का इस्तेमाल कर रहा है लेकिन यह सब इंसानी देखरेख में हो रहा है जो कि बहुत जरूरी है.
उन्होंने कहा, 'मेरे हिसाब से, एआई के साथ दिक्कत यह है कि हम नहीं जानते कि एआई को किस डेटा सेट के आधार पर ट्रेनिंग दी जा रही है. इसे लेकर कोई पारदर्शिता नहीं है और इसलिए हम नहीं जानते कि यह किस पूर्वाग्रह के साथ हमारे पास आ रहा है. अक्सर, मुझे शक होता है कि इसे अतीत के डेटा सेट के आधार पर ट्रेनिंग दी जाती है. अतीत, जिसका मतलब है कि यह एक ऐसी दुनिया है जो पहले थी. यह वह दुनिया नहीं है जो हम चाहते हैं.'
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हालांकि, इस शंका के बावजूद कली पुरी एआई को लेकर आशावादी हैं, खासतौर पर बदलती दुनिया में भारत की स्थिति को लेकर.
उनका मानना है कि इस दुनिया में तीन समूह आगे बढ़ेंगे- पहले वे लोग जो बदलाव पसंद करते हैं और एक तरह की चीजों से नफरत करते हैं, दूसरे- भारतीय क्योंकि हम कितनी भी मुश्किल हो, उसे पार करते हैं और महिलाएं, क्योंकि वो अपने सहज ज्ञान पर भरोसा करती हैं.
उन्होंने कहा, 'मैं अक्सर यह बात कहती हूं कि जो लोग बदलाव पसंद करते हैं और एकरसता से नफरत करते हैं, वे बदलाव को एक नई कहानी लिखने के तरीके के रूप में देखते हैं, एक नए अवसर के रूप में. वैसे, पत्रकारों को नई चीजें पसंद हैं. उन्हें बदलाव पसंद है. वे बाहर जाकर उस सवाल को समझना चाहते हैं और उसका जवाब ढूंढते हैं.'
उन्होंने कांक्षी अग्रवाल से आगे कहा, 'अगर आप बहुत बारीकी से देखेंगी, तो आप पाएंगी कि मैं, एक भारतीय पत्रकार, इस सच्चाई से निपटने के लिए बहुत अच्छी तरह से तैयार हूं और यह मुझे पसंद है.'
आधुनिक मीडिया की चुनौतियों पर बात करते हुए कली पुरी ने अपनी संपादकीय रणनीति को लेकर कहा, 'आपको अपने दर्शकों को फ्रेंच फ्राइज और ब्रोकली दोनों देना होगा.' इसका मतलब है कि दर्शकों को ऐसा कंटेंट देना होगा जो ध्यान भी खींचे और सोचने पर भी मजबूर करे.
उन्होंने कहा, 'इसका एक तरीका लोकतांत्रिक न्यूजरूम बनाना है. इसलिए, हम ऐसे पत्रकारों और एंकरों की तलाश करते हैं जो अलग-अलग विचार रखते हैं. और वैसे, अगर आप किसी भी पत्रकार से पूछें, तो वो कहेगा कि वो निष्पक्ष है. कोई भी यह नहीं सोचता कि वे किसी पक्ष की तरफ झुका हुआ है. यह केवल तभी पता चलता है जब आप इसे बाहर से देखते हैं. इसलिए उन्हें एक ही न्यूजरूम में एक स्टोरी पर बहस करने के लिए रखना - बहुत ही तीखी बहस की ओर ले जाता है.'
उन्होंने कहा कि उनका न्यूजरूम एक विशाल ट्यूटोरियल जैसा लगता है, जहां असहमति को रोका नहीं जाता बल्कि बढ़ावा दिया जाता है. कली पुरी ने कहा, 'पुराने जमाने वाली निष्पक्ष पत्रकारिता बिजनेस के लिहाज से फायदेमंद नहीं हो सकती है लेकिन यह जरूरी है.'
इस दौरान उन्होंने इंडिया टुडे ग्रुप की तरफ से शुरू किए गए कैंडिड कंस्ट्रक्टिव कन्वर्सेशन यानी विरोधी विचारों के बीच आमने-सामने की बहस और सकल घरेलू व्यवहार (Gross Domestic Behaviour) का हवाला दिया जो जीडीपी के साथ-साथ लोगों के व्यवहार, पूर्वाग्रह और विविधता को मापता है. उन्होंने कहा, 'हमें बेहतर अर्थव्यवस्थाओं के साथ-साथ बेहतर नागरिकों की भी जरूरत है.'
भारत की प्रगति पर क्या बोलीं कली पुरी
भारत की प्रगति के बारे में पूछे जाने पर कली पुरी ने कहा कि चार कारणों से भारत आगे बढ़ सकता है- पहला- युवा वर्कफोर्स जो शाम 5 बजे काम बंद न करे, एक लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित और स्थिर सरकार, प्राचीन संस्कृति में गहरी जड़ें, और समस्याओं को रचनात्मक रूप से हल करने का एक अनूठा भारतीय तरीका यानी जुगाड़, वो भी अपने सबसे अच्छे रूप में.
उन्होंने कहा, 'मैं विदेश यात्रा करती थी और वहीं रहने का सपना देखती थी. लेकिन अब मैं वापस अपने देश जाने का बेसब्री से इंतजार करती हूं. भारत ही वह जगह है जहां सबसे ज्यादा काम होता है. और हां, वहां सात मिनट में आपके पास कोक डिलीवर हो सकता है! इससे भी हमारे देश की गति और संभावनाओं के बारे में पता चलता है.'
कली पुरी ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड दोनों ही टॉप यूनिवर्सिटीज से पढ़ी हुई हैं. मजाकिया लहजे में दोनों की तुलना करते हुए उन्होंने कहा, 'ऑक्सफोर्ड ब्रिटेन की तरह ही क्लासिक, संयमित और खास है. हार्वर्ड अमेरिका की तरह ही लाउड, खुला और ओवर मार्केटेडे है.'
उन्होंने कहा कि दोनों संस्थान असहमति को महत्व देते हैं, लेकिन इसे अलग-अलग तरीके से व्यक्त करते हैं. उन्होंने आगे कहा, 'भारत को वैश्विक स्तर पर अपनी अकादमिक आवाज बनाने की जरूरत है. चीन के उलट, हमने इन साझेदारियों का पूरी तरह से लाभ नहीं उठाया है.'
सत्र के अंत में कली पुरी ने कहा कि हमारा फोकस, हमारा ध्यान हमारी सबसे कीमती चीज है और हमें अपने ध्यान को खुद को बेहतर बनाने पर लगाना चाहिए.