सर्च इंजन गूगल हमें लगभग हर सवाल का जवाब झट से दे देता है और हम चीजों को याद रखने के लिए इस पर निर्भर होते जा रहे हैं. लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि तथ्यों की जांच और मामूली सी जानकारी के लिए भी गूगल पर बढ़ती हमारी निर्भरता के चलते हम भुलक्कड़ होते जा रहे हैं.
यह भी पाया गया कि लोग सर्च इंजन का इस्तेमाल एक टूल के तौर पर करने के बजाए उसे अपनी बुद्धि का ही हिस्सा मानने लगे हैं. नतीजतन हर वक्त सवालों के जवाब के लिए गूगल की ओर मुखातिब होने के बावजूद लोग खुद को चालाक मानते हैं.
शोधकर्ताओं ने कुछ लोगों का टेस्ट लिया. रिसर्च के दौरान यह बात सामने आई कि शोध में शामिल लोग सिर्फ उन्हीं चीजों को याद करने की कोशिश करते थे, जो उन्हें लगता था कि कम्प्यूटर से हटा ली गई होंगी. वहीं, जिन्हें लगता था कि चीजें स्टोर हैं, वे ज्यादा भुलक्कड़ निकले.
एक दूसरे प्रयोग में हावर्ड यूनिवर्सिटी की टीम ने छात्रों से गूगल की मदद के बिना या मदद लेकर कुछ सवालों के जवाब देने को कहा और फिर उनसे कहा गया कि वे अपनी बुद्धिमत्ता की रेटिंग करें.
शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों ने अपने दिमाग का इस्तेमाल कर सवालों के जवाब दिया उनकी तुलना में इंटरनेट की मदद लेने वालों ने अपने दिमाग को ज्यादा बेहतर बताया. शोधकर्ताओं का कहना है, 'लोग गूगल को अपनी बुद्धि का ही टूल समझने लगे हैं.'
शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर लोगों को लगता है कि कोई सूचना भविष्य में उनके काम आ सकती है तो वो उसे साझा नहीं करते. वे किसी अन्य की याद्दाश्त पर भरोसा करने के बजाए उसे कम्प्यूटर पर सेव करना ज्यादा पसंद करते हैं.
मनोवैज्ञानिक डेनियल वेग्नर और एड्रियान वॉर्ड ने अमेरिका के वैज्ञानिक जर्नल में लिखा है, 'हम इंटरनेट के साथ मेमरी पार्टनर की तरह बर्ताव करने लगे हैं. एक ऐसा इंसान जिससे हम अपनी सारी निजी बातें शेयर करते हैं.'