केंद्रीय सतर्कता आयोग ने पुलिस बलों में व्यापक सुधार की वकालत की. उन्होंने कहा कि 150 साल पुराना अधिनियम पुलिस को कानून लागू करने वाली एजेंसी के बजाय सरकार का एजेंट बनाता है.
सतर्कता आयुक्त आर श्रीकुमार ने कहा, ‘राज्य के प्रमुख अंग के तौर पर पुलिस को विधि के शासन को लागू करना होता है लेकिन 1861 का पुलिस अधिनियम जो अब भी देश में पुलिस की रीढ़ है वह पुलिस को कानून के एजेंट की बजाय सरकार का एजेंट बनाता है.’
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पुलिस आयोग द्वारा मसौदा तैयार किए जाने के 30 साल बाद भी ज्यादातर राज्य आदर्श पुलिस अधिनियम का पालन करने में विफल रहे हैं.
सतर्कता आयुक्त ने कहा, ‘स्वतंत्रता के छह दशक बाद, राष्ट्रीय पुलिस आयोग द्वारा आदर्श पुलिस अधिनियम का मसौदा तैयार करने के चार दशक बाद और कई समितियों और आयोगों के पुलिस सुधार की आवश्यकता का समर्थन करने के बाद तकरीबन 30 राज्यों में से बमुश्किल एक दर्जन ने बिना किसी डर-भय के पुलिस संबंधी कानून में कोई बदलाव किया है.’
श्रीकुमार ने कानून लागू करने वाली एजेंसी को और कारगर बनाने के लिए लोकपाल अधिनियम और सीबीआई अधिनियम बनाने की वकालत की. श्रीकुमार उस टीम का हिस्सा थे जिसने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की जांच की. उन्होंने जोर दिया कि दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 में 2003 में बदलाव किए गए थे जिसमें संयुक्त सचिव स्तर और उसके ऊपर के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए सरकार की मंजूरी को अनिवार्य बना दिया गया.
उन्होंने कहा, ‘पुलिस को सो रहे एक बाबा या 80 साल के एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने में कोई खेद नहीं है जो भ्रष्टाचार और लचर तंत्र के खिलाफ विरोध जता रहा था. हमारे पास लोकपाल अधिनियम तो नहीं ही है, हमारे पास सीबीआई अधिनियम भी नहीं है.’
उन्होंने कहा, ‘यद्यपि सूत्र वाक्य यह होना चाहिए कि आप चाहे कितने भी बड़े हैं लेकिन कानून आपके ऊपर है जबकि सरकार ने 2003 में दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 में संशोधन किया जिसमें संयुक्त सचिव और उससे उपर के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की जांच के लिए सरकार की मंजूरी को अनिवार्य बना दिया गया.’ उन्होंने इस प्रक्रिया में बदलाव का सुझाव दिया.