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सुरक्षा परिषद स्‍थायी सदस्यता: भारत की उम्मीदों पर अमेरिका ने पानी फेरा

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी पर राष्ट्रपति बराक ओबामा के समर्थन के महज एक हफ्ते के बाद अमेरिका ने भारत की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए कहा है कि सुरक्षा परिषद में सुधारों पर ‘निकट भविष्य में जल्द’ कोई सफलता मिलने की उम्मीद नहीं है.

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी पर राष्ट्रपति बराक ओबामा के समर्थन के महज एक हफ्ते के बाद अमेरिका ने भारत की उम्मीदों पर पानी फेरते हुए कहा है कि सुरक्षा परिषद में सुधारों पर ‘निकट भविष्य में जल्द’ कोई सफलता मिलने की उम्मीद नहीं है.

सहायक विदेश मंत्री रॉबर्ट ब्लेक ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ओबामा द्वारा अपनी भारत यात्रा के दौरान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए भारत के दावे पर मुहर लगाया जाना कोई अंतिम क्षण का फैसला नहीं था, बल्कि काफी सोच समझकर लिया गया था. उसे गुप्त रखा गया था इसलिए यह बहुत बड़ी खबर बनी.

उन्होंने कहा, ‘मैं निकट भविष्य में जल्द किसी सफलता की उम्मीद के खिलाफ आगाह करना चाहता हूं.’ उन्होंने कहा कि ओबामा की घोषणा से जो वास्तविक बदलाव आया है वह है 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत का अमेरिकी समर्थ लेकिन ‘हमारा यह स्पष्ट मत रहा है कि यह दीर्घकालीन और जटिल प्रक्रिया है.’

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ब्लेक ने कहा, ‘मुझे लगता है कि राष्ट्रपति और अन्य ने यह स्पष्ट कर दिया है कि सुधार में समय लगेगा और यह जटिल प्रक्रिया होगी. लेकिन हम स्थायी और अस्थायी सीटों की संख्या बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध हैं.’

बहरहाल ब्लेक ने जोर देकर कहा कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन के एवज में भारत के साथ कोई शर्त नहीं रखी गई है. उन्होंने कहा, ‘नहीं, कोई शर्त नहीं हैं.’ उन्होंने आतंकवाद, पाकिस्तान और चीन समेत विभिन्न मुद्दों पर सवालों के जवाब दिए. उन्होंने कहा कि देश के भीतर सक्रिय आतंकवादी गुटों का दमन करना पाकिस्तान के हित में है.{mospagebreak}

ब्लेक ने कहा, ‘राष्ट्रपति ओबामा की स्पष्ट राय है कि खुद पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का भुक्तभोगी रहा है. इसलिए इन आतंकवादी समूहों को खत्म करना खुद पाकिस्तान के हित में है जो उसके यहां संगठित होकर अपनी गतिविधियां चलाते हैं. उनके बीच अंतर करना मुश्किल है.’’ उन्होंने कहा कि मजबूत भारत अमेरिकी संबंध के प्रति ओबामा की इच्छा एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करना नहीं है.

ब्लेक ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता है कि ओबामा की तीन दिवसीय भारत यात्रा के दौरान ओबामा को किसी से यह कहते सुना हो कि हम किसी भी रूप में चीन को संतुलित करने पर विचार कर रहे है.’ उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी का राष्ट्रपति बराक ओबामा ने जब समर्थन किया तो अमेरिकी मीडिया ने इसे चीन के प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास बताया.

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परमाणु मुद्दे पर ब्लेक ने कहा कि अमेरिका परमाणु हथियारों के वैश्विक अप्रसार के प्रयासों में भारत को एक साझेदार के रूप में देखता है. उन्होंने कहा, ‘अतीत में आलोचनाओं में एक यह रहा है कि कभी अमेरिका परमाणु अप्रसार में भारत को सहयोग के बजाय ‘निशाना’ ज्यादा मानता था लेकिन मैं मानता हूं कि राष्ट्रपति ने इस यात्रा के दौरान जो कदम उठाए हैं उससे लगता है कि हम भारत को वैश्विक परमाणु अप्रसार में सहयोगी मानते हैं.’ उन्होंने सुरक्षा परिषद में सुधारों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत, जापान, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी स्थायी सदस्यता के लिए दावेदारी कर रहे हैं.

उन्होंने कहा, ‘यहां सवाल वीटो का है. इसलिए हमें अपने उन दोस्तों के साथ विस्तार से गंभीर चर्चा करने की जररत है जो इन सीटों के लिए प्रतिस्‍पर्धा कर रहे हैं.’ इस बीच, जनवरी 2010 में सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य बना भारत अपनी दो वर्ष की सदस्यता के दौरान संयुक्त राष्ट्र में सुधार की प्रक्रिया तेज करने पर जोर देगा.

संयुक्त राष्ट्र में भारत के दूत हरदीप सिंह पुरी ने बीते हफ्ते बताया, ‘हम 19 वर्ष के अंतराल के बाद सुरक्षा परिषद में शामिल हो रहे हैं..सुरक्षा परिषद छोड़ने का हमारा कोई इरादा नहीं है.’

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