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खाद्य मुद्रास्फीति गिरकर 8.84 फीसदी पर, आम आदमी को राहत नहीं

खाद्य मुद्रास्फीति 10 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान गिरकर 8.84 फीसदी पर आ गई जो पिछले सप्ताह 9.47 फीसदी दी लेकिन इससे आम आदमी को कोई राहत नहीं मिली क्योंकि मुख्य जिंसों की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं.

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खाद्य मुद्रास्फीति 10 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान गिरकर 8.84 फीसदी पर आ गई जो पिछले सप्ताह 9.47 फीसदी दी लेकिन इससे आम आदमी को कोई राहत नहीं मिली क्योंकि मुख्य जिंसों की कीमतें ऊंची बनी हुई हैं.

सरकार द्वारा जारी थोकमूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) पर आधारित खाद्यमुद्रास्फीति के आंकड़ों के मुताबिक गेंहू को छोड़कर ज्यादातर जिंसों की कीमतें एक साल पहले की तुलना में महंगी रहीं. विशेषज्ञों के मुताबिक साप्ताहिक आधार पर खाद्य मुद्रास्फीति में गिरावट आंकड़ों का भ्रम है क्यों कि यह गिरावट ‘तुलना के ऊंचे’ आधार का प्रभाव है.

उल्लेखनीय है कि पिछले साल इसी दौरान खाद्य मुद्रास्फीति 16 फीसदी से ऊपर चल रही थी. आंकड़े के मुताबिक गेंहू की कीमतें समीक्षाधीन सप्ताह में पिछले साल की तुलना में 2.72 फीसदी कम रही. हालांकि इसी दौरान प्याज 29 फीसदी और आलू 13.78 फीसदी तथा सब्जियों के औसत भाव 12.13 फीसदी मंहगे रहे.

दूध की कीमत में भी एक वर्ष पूर्व इसी दौर की तुलना में 10.38 फीसदी का इजाफा हुआ जबकि फल 17.67 फीसदी, अंडे, मांस और मछली की कीमतें सालना आधार पर 9.28 फीसदी ऊंची रहीं. सालना आधार पर अनाज 4.13 फीसदी मंहगे रहे. दालें हाल के महीनों में नरम चल रही थीं पर 10 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान इनके दाम पिछले साल से 1.49 फीसदी ऊपर थे.

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10 सितंबर को समाप्‍त सप्ताह के दौरान प्राथमिक उत्पादों की मुद्रास्फीति 12.17 फीसदी थी जो इसके पिछले सप्ताह 13.04 फीसदी थी. खाद्य मूल्य सूचंकांक में प्राथमिक उत्पादों में का भारांश 20 फीसदी है. गैर खाद्य उत्पाद की महंगाई दर, जिनमें फाईबर, तिलहन व खनिज शामिल हैं, इसी दौरान 17.42 फीसदी रही जो तीन सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान 18.49 फीसदी थी.

ईंधन और बिजली वर्ग की मुद्रास्फीति 10 सितंबर को समाप्त सप्ताह के दौरान बढ़कर 13.96 फीसदी हो गई जो हफ्ता भर पहले 13.01 फीसदी थी. विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा गिरावट के बावजूद खाद्य कीमत पर दबाव बना रहेगा और सरकार तथा रिजर्व बैंक को सतर्क रहना पड़ेगा. रिजर्व बैंक ने मांग और मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिए मार्च 2010 से लेकर अब तक रिण दरों में 12 बार बढ़ोतरी की है.

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