बिहार में मतदाता सूची का विशेष सघन पुनरीक्षण (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी एसआईआर) का काम पूरा होने के बाद चुनाव आयोग ने देश के 12 राज्यों में एसआईआर प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान कर दिया है. आयोग का कहना है कि यह एसआईआर, वोटर लिस्ट में दोहराए गए नामों को हटाने और निधन हो चुके मतदाताओं के नाम को हटाने के लिए किया जा रहा है.
उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु, सहित 12 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में एसआईआर का काम मंगलवार यानि आज से शुरू हो रहा है और 7 फरवरी 2026 तक पूरा करने की टाइमलाइन तय की गई है.
चुनाव आयोग ने जिन 12 राज्यों में एसआईआर प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया है, उनमें से चार राज्यों में 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं तो 2027 में 3 राज्यों में और 2028 में तीन राज्यों में चुनाव हैं. इस तरह से अगले 3 साल में इन सभी 10 राज्यों में चुनाव होने हैं.
12 राज्यों में आज से एसआईआर
देशभर में विशेष गहन पुनरीक्षण यानी एसआईआर के तहत अब मंगलवार से 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसकी प्रक्रिया शुरू हो रही है. यह एसआईआर का दूसरा चरण है, जिसमें छत्तीसगढ़, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, गोवा, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश और पुडुचेरी राज्य शामिल हैं. इसके अलावा लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार दो केंद्र शासित प्रदेश हैं.
पहले चरण में बिहार में एसआईआर की गई और अब दूसरे चरण में उन राज्यों को तरजीह दी गई है, जहां पर अगले तीन सालों में चुनाव होने हैं. हालांकि, असम में भी अगले साल 2026 में विधानसभा चुनाव हैं, लेकिन एसआईआर की इस प्रक्रिया में असम को शामिल नहीं किया गया है.
मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा है कि असम में मतदाता सूची के संशोधन का ऐलान अलग से होगा. असम में सुप्रीम कोर्ट की देखरेख में चल रही नागरिकता की जांच की वजह से आयोग ने असम में बाद में एसआईआर कराने का फ़ैसला लिया है.
SIR वाले राज्यों में कब-कब होंगे चुनाव
चुनाव आयोग के द्वारा एसआईआर के दूसरे चरण में असम को छोड़कर वे चार राज्य भी शामिल हैं, जहां अगले साल यानी 2026 की शुरुआत में ही विधानसभा चुनाव होने हैं. पश्चिम बंगाल, केरल, तमिलनाडु और केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं.
गोवा, गुजरात और उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं. गोवा और यूपी में अगले साल मार्च में विधानसभा चुनाव होंगे और गुजरात में साल के आख़िर में चुनाव होने हैं. वहीं, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 2028 में विधानसभा चुनाव होंगे. अंडमान निकोबार, लक्षद्वीप केंद्र शासित प्रदेश में विधानसभा की व्यवस्था नहीं है, जिसके चलते चुनाव नहीं होते हैं.
SIR वाले राज्यों का सियासी समीकरण
निर्वाचन आयोग ने एसआईआर के दूसरे चरण में जिन राज्यों को शामिल किया गया है, उनमें बीजेपी और विपक्षी दलों दोनों की सरकारें हैं। पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु में विपक्षी दलों की सरकारें हैं जबकि गोवा, गुजरात, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी की सरकार है। इसके अलावा पुडुचेरी की सत्ता में भले ही बीजेपी ख़ुद नहीं है, लेकिन सहयोगी दल के तौर पर शामिल है.
देश के जिन 12 राज्यों में दूसरे चरण में एसआईआर का काम शुरू हो रहा है, उनमें मतदाताओं की संख्या क़रीब 51 करोड़ है। इनमें सबसे अधिक 15.44 करोड़ मतदाता अकेले उत्तर प्रदेश में हैं, जबकि पश्चिम बंगाल में 7.66 करोड़, तमिलनाडु में 6.41 करोड़, मध्य प्रदेश में 5.74 करोड़, राजस्थान में 5.48 करोड़ व छत्तीसगढ़ में 2.12 करोड़ मतदाता हैं.
एसआईआर की ज़रूरत क्यों है?
चुनाव आयोग ने बताया कि एसआईआर प्रक्रिया क्यों ज़रूरी है? चुनाव आयोग के मुताबिक देश में बदलते शहरीकरण के चलते लोगों का तेज़ी से विस्थापन हो रहा है. यह इसकी एक बड़ी वज़ह है। दूसरा इसके चलते काफ़ी लोगों के मतदाता सूची में दो-दो जगह पर नाम दर्ज हैं.
तीसरा मतदाता सूची से मतदाताओं के मृत होने के बाद भी नाम नहीं हटाए जाना है, जबकि चौथी वज़ह देश के तमाम हिस्सों में ग़लत तरीक़े से घुसपैठ करके बड़ी संख्या में लोगों ने मतदाता सूची में ग़लत तरीक़े से नाम जुड़वा लिया है. एसआईआर प्रक्रिया के दौरान इन सभी पहलुओं की गंभीरता से जांच-पड़ताल होनी है.
एसआईआर के दौरान प्रत्येक मतदाता को एक यूनिक फ़ॉर्म दिया जाएगा. इसमें पुराना पता, फ़ोटो आदि जानकारी छपी होगी. अगर मतदाता उस पते पर नहीं रह रहा है तो वह उसमें संशोधन कर सकता है. आयोग ने इस दौरान मतदाताओं को सुझाव दिया है कि गणना फ़ॉर्म में अपने रंगीन फ़ोटो लगाएं ताकि जो पहचान पत्र जारी किए जाने हैं, उनमें चेहरे उभरकर सामने आ सकें.
चुनाव आयोग का कहना है कि एसआईआर का यह काम सियासी दलों की द्वारा लगातार मतदाता सूची की गड़बड़ियों को लेकर उठाए जा रहे सवालों के बाद शुरू किया गया है. इसके ज़रिए मतदाता सूची को पूरी तरह से शुद्ध और पारदर्शी बनाने का लक्ष्य है। आयोग ने कहा कि एसआईआर एक संवैधानिक प्रक्रिया है.
SIR से किसे नफा और किसे नुकसान
चुनाव आयोग के द्वारा कराए जा रहे एसआईआर प्रक्रिया को लेकर विपक्ष ने सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं. वेस्ट बंगाल, केरल, तमिलनाडु ऐसे राज्य हैं, जहाँ पर बीजेपी कभी भी सत्ता में नहीं आई है. बंगाल में टीएमसी, केरल में लेफ़्ट, तमिलनाडु में डीएमके सत्ता में है. ऐसे में बीजेपी की नज़र इन राज्यों पर लंबे समय से है, लेकिन सत्ता में आने से उसके मंसूबे पूरे नहीं हो सके हैं. इसके अलावा बाक़ी राज्यों में बीजेपी सत्ता में है और वह काफ़ी मज़बूत स्थिति में है.
विपक्ष का आरोप है कि एसआईआर अभियान भाजपा समर्थक मतदाताओं को लाभ पहुचाने के लिए अल्पसंख्यक, एससी/एसटी और महिलाओं को निशाना बना रहा है. डीएमके और टीएमसी ने चुनाव आयोग के इस क़दम को लोकतंत्र के ख़िलाफ़ साज़िश क़रार देते हुए कड़ा रुख़ अपनाया है.
डीएमके ने 2 नवंबर को सर्वदलीय बैठक बुलाने का ऐलान किया है. डीएमके ने साफ़-साफ़ शब्दों में कहा कि बिहार जैसी स्थिति तमिलनाडु में दोहराने नहीं देंगे. इसी तरह टीएमसी और लेफ्ट पार्टियों ने भी सवाल उठाए हैं और बीजेपी को मदद करने का भी आरोप चुनाव आयोग पर लगाया है.
कांग्रेस के नेता पवन खेड़ा ने कहा कि अभी तक बिहार में हुए एसआईआर से जुड़े सवालों के जवाब हमें नहीं मिले हैं. हालात ये थे कि एसआईआर को दुरुस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को आगे आना पड़ा. बिहार के एसआईआर से चुनाव आयोग और बीजेपी की नीयत देश के सामने आ चुकी है। यह वोट चोरी का नया तरीक़ा है.
वहीं, बीजेपी नेता और यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि मैं चुनाव आयोग के एसआईआर के फ़ैसले का स्वागत करता हूं. बूथ क़ब्ज़ा करके, गुंडागर्दी के बल पर फ़र्ज़ी वोट डलवाकर चुनाव जीतने का मंसूबा पाले थे, उनके सीने में दर्द होगा, लेकिन यह लोकतंत्र का पवित्र यज्ञ है. अगर देश में कोई घुसपैठिया घुस आया है और हमारी मतदाता सूची तक घुस गया है, तो उसे बाहर होना चाहिए. इस तरह से विपक्ष को कठघरे में खड़े करने का मौका बीजेपी को मिल गया है.