scorecardresearch
 

जब उपराष्ट्रपति ने मिड टर्म में दिया इस्तीफा और चीफ जस्टिस को संभालनी पड़ी राष्ट्रपति की 'कुर्सी'

देश में साल 1969 में ऐसा वक्त आया, जब राष्ट्रपति जाकिर हुसैन के निधन के बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरि ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया. एक ही समय पर देश के दोनों शीर्ष संवैधानिक पद राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति खाली हो गए. इस असाधारण स्थिति में भारत की बागडोर न्यायपालिका के हाथों में गई और तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्ला को कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी सौंपी गई. 

Advertisement
X
1969 में उपराष्ट्रपति वीवी गिरि ने बीच कार्यकाल में इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद तत्कालीन CJI जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्ला (दाएं) ने कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभाली थी. (File Images/India Today)
1969 में उपराष्ट्रपति वीवी गिरि ने बीच कार्यकाल में इस्तीफा दे दिया था. उसके बाद तत्कालीन CJI जस्टिस मोहम्मद हिदायतुल्ला (दाएं) ने कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभाली थी. (File Images/India Today)

भारत के संवैधानिक इतिहास में कुछ पल ऐसे आए हैं जो न केवल अप्रत्याशित रहे, बल्कि लोकतांत्रिक सिस्टम की स्थिरता, लचीलेपन और मजबूती की असली परीक्षा बन गए. ये वो क्षण थे- जब संवैधानिक प्रावधानों की सूझबूझ, नेतृत्व की परिपक्वता और संस्थाओं की कार्यकुशलता ने देश को अनिश्चितताओं से निकालकर एक सुचारू दिशा दी. ऐसा ही एक ऐतिहासिक क्षण 1969 में तब सामने आया, जब एक साथ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों पद रिक्त हो गए और देश के मुख्य न्यायाधीश को कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी संभालनी पड़ी.

ये वही वक्त था जब CJI ने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन की भारत यात्रा के दौरान उनका राष्ट्रपति भवन में स्वागत किया. आज जब उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने फिर से उपराष्ट्रपति पद को खाली किया है तो इतिहास के उस विलक्षण अध्याय को याद करना बेहद प्रासंगिक हो गया है, जहां कानून, नेतृत्व और संवैधानिक मर्यादाओं की असली परीक्षा हुई थी.

दरअसल, 3 मई 1969 को राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन का निधन हो गया. उसके बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरि ने राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इससे देश एक असामान्य संवैधानिक स्थिति में आ गया. राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों पद खाली हो गए, तब भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश (CJI) मोहम्मद हिदायतुल्ला को कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी निभानी पड़ी.

अभी क्यों प्रासंगिक है ये पूरा घटनाक्रम?

Advertisement

सोमवार यानी 21 जुलाई को जगदीप धनखड़ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. वे देश के इतिहास में ऐसे चौथे उपराष्ट्रपति बने, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद छोड़ दिया. हालांकि, उनसे पहले जिन उपराष्ट्रपतियों ने इस्तीफा दिया, उन्होंने ऐसा राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ने के लिए किया था.

धनखड़ से पहले वीवी गिरि (1969), रामास्वामी वेंकटरमण (1987) और शंकर दयाल शर्मा (1992) ऐसे उपराष्ट्रपति रहे, जिन्होंने मिड टर्म में इस्तीफा दिया और राष्ट्रपति बनने की कोशिश की और अंततः सफल भी हुए.

धनखड़ के इस्तीफे ने एक बार फिर वीवी गिरि के समय की संवैधानिक पेचीदगी को याद दिला दिया है.

क्या कहता है अनुच्छेद 67(a) और राष्ट्रपति (कार्य निर्वहन) अधिनियम, 1969?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 67(a) के तहत उपराष्ट्रपति लिखित रूप में राष्ट्रपति को इस्तीफा दे सकते हैं, जो स्वीकृति के साथ तत्काल प्रभाव से लागू हो जाता है. अगर उपराष्ट्रपति पद खाली हो जाता है तो राज्यसभा के उपसभापति को अंतरिम जिम्मेदारी सौंपी जाती है. लेकिन अगर राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों पद खाली हों तो राष्ट्रपति (कार्य निर्वहन) अधिनियम, 1969 के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश कार्यवाहक राष्ट्रपति बन सकते हैं. यही प्रावधान देश की संवैधानिक संस्थाओं को सुचारू रूप से संचालित करने में सहायक साबित होते हैं.

Advertisement

राष्ट्रपति का निधन और बंटी हुई कांग्रेस...

डॉ. जाकिर हुसैन देश के तीसरे राष्ट्रपति थे. उनके अचानक निधन से संवैधानिक संकट उत्पन्न हो गया. राष्ट्रपति का पद खाली हो गया. जाकिर हुसैन उस समय एक अत्यंत सम्मानित व्यक्ति थे और 1962 से 1967 तक उपराष्ट्रपति भी रह चुके थे.

यह वो वक्त था, जब कांग्रेस पार्टी अंदरूनी कलह से जूझ रही थी. एक ओर पुराने नेताओं का गुट था, जिसे 'सिंडिकेट' कहा जाता था तो दूसरी तरफ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का गुट था. यह खेमेबाजी 1969 के राष्ट्रपति चुनाव को बेहद विवादास्पद बना रही थी.

जाकिर हुसैन के निधन के बाद उपराष्ट्रपति वीवी गिरि कार्यवाहक राष्ट्रपति बने, लेकिन फिर उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव लड़ने का निर्णय लिया और 13 मई 1969 को उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा दे दिया. यह कदम अभूतपूर्व था, क्योंकि इससे पहले किसी उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा नहीं दिया था.

राष्ट्रपति पद की ऐतिहासिक टक्कर...

सिंडिकेट गुट में के. कामराज और मोरारजी देसाई जैसे वरिष्ठ नेता शामिल थे और वे राष्ट्रपति पद के लिए नीलम संजीव रेड्डी को आगे बढ़ाना चाहते थे. उन्हें उम्मीद थी कि रेड्डी उनकी विचारधारा के अनुकूल होंगे. वहीं, इंदिरा गांधी ने वीवी गिरि को समर्थन दिया, जो उनके ज्यादा करीब माने जाते थे.

Advertisement

गिरि ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और इंदिरा गांधी ने कांग्रेस सांसदों से 'कॉन्शियस वोट' यानी अंतरात्मा की आवाज पर वोटिंग करने की अपील की.

अगस्त 1969 में हुए चुनाव में वीवी गिरि ने बेहद मामूली अंतर से जीत हासिल की. उन्हें 4,20,077 वोट मिले, जबकि नीलम संजीव रेड्डी को 4,05,427 वोट मिले. गिरि देश के चौथे राष्ट्रपति बने.

जब CJI ने निभाई राष्ट्रपति की भूमिका...

गिरि के उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने और राष्ट्रपति बनने तक का समय एक असामान्य खालीपन था. मई से अगस्त 1969 तक उपराष्ट्रपति पद 100 से ज्यादा दिनों तक खाली रहा. गिरि ने मई से जुलाई तक कार्यवाहक राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों की जिम्मेदारी संभाली. लेकिन जुलाई में जब उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए इस्तीफा दिया तो दोनों शीर्ष पद खाली हो गए.

तब राष्ट्रपति (कार्य निर्वहन) अधिनियम, 1969 और संविधान के अनुसार, भारत के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्ला ने 20 जुलाई से लेकर 24 अगस्त 1969 तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में पदभार संभाला.

इस दौरान उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन का भारत आगमन पर स्वागत किया और राष्ट्रपति भवन के बैंकेट हॉल में औपचारिक भाषण भी दिया. यह जानकारी अमेरिकन प्रेसिडेंशियल प्रोजेक्ट डिजिटल आर्काइव में दर्ज है, जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया द्वारा संकलित किया गया है.

Advertisement

संविधान के अनुच्छेद 62 के तहत राष्ट्रपति पद खाली होने के छह महीने के भीतर चुनाव कराया जाना अनिवार्य है. गिरि 24 अगस्त 1969 को देश के राष्ट्रपति बने और हिदायतुल्ला का कार्यकाल समाप्त हुआ.

बाद में हिदायतुल्ला देश के उपराष्ट्रपति भी बने और 1980 के दशक में राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की विदेश यात्राओं के दौरान तीन बार कार्यवाहक राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला.

धनखड़ के इस्तीफे के बाद फिर से संवैधानिक प्रक्रिया...

जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद संविधान और प्रक्रिया के अनुसार छह महीने के भीतर नए उपराष्ट्रपति के चुनाव की प्रक्रिया शुरू की जाएगी. चूंकि इस समय संसद का मॉनसून सत्र चल रहा है और उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं, ऐसे में उनके इस्तीफे के बाद राज्यसभा की कार्यवाही की जिम्मेदारी उपसभापति हरिवंश संभाल रहे हैं.

---- समाप्त ----
Live TV

Advertisement
Advertisement