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Question Hour और Zero Hour के बिना चलेगी संसद, जानिए दोनों के मायने

कोरोना वायरस की महामारी के बीच संसद के मॉनसून सत्र में प्रश्न काल और शून्य काल नहीं होंगे. हालांकि, विपक्षी दल के नेता इसे लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं. आखिर प्रश्न काल क्या है और क्यों इतना अहम है?

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Question hour को लेकर छिड़ी है बहस
Question hour को लेकर छिड़ी है बहस
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 14 सितंबर से शुरू होगा संसद का मॉनसून सत्र
  • कोरोना के कारण मॉनसून सत्र किया गया छोटा
  • प्रश्न काल और शून्य काल नहीं होंगे
  • प्रश्न काल ना होने पर विपक्ष ने खड़े किए सवाल

14 सितंबर से संसद का मॉनसून सत्र शुरू होने जा रहा है. कोरोना महामारी के बीच यह मॉनसून सत्र होगा. लेकिन सामान्य दिनों से बिल्कुल अलग. संसद से प्रश्न काल और शून्य काल दोनों गायब रहेंगे. प्रश्न काल संसद का अहम वक्त होता है, जिसमें सांसद सरकार से सवाल पूछते हैं और संबंधित मंत्री इन प्रश्नों का जवाब देते हैं.

कोरोना के कारण संसद के इस मॉनसून सत्र को लगभग आधा कर दिया गया है. इस बार का मॉनसून सत्र 14 सितंबर से एक अक्टूबर तक ही चलेगा. ऐसे में सरकार का तर्क है कि कम समय में ज्यादा से ज्यादा काम करने के लिए प्रश्न काल और शून्य काल की कटौती की गई है. लेकिन विपक्ष का कहना है कि संसद बिना सवालों के कैसे चल सकती है. लेकिन संसदीय कार्यमंत्री प्रह्लाद जोशी ने अब कहा है कि अतारांकित प्रश्न लिए जाएंगे और उनके लिखित जवाब मिलेंगे.

लेकिन जिस प्रश्न काल और शून्य काल को लेकर विवाद चल रहा है, वो आखिर क्या हैं, आइए समझते हैं.

प्रश्न काल (Question Hour) क्या है और इतना अहम क्यों है?
प्रश्न काल, लोकसभा, राज्यसभा और विधानमंडलों की प्रत्येक बैठक का पहला घंटा होता है जिसमें सदस्य मंत्रियों से उनके मंत्रालय से जुड़े सवाल पूछते हैं और उन्हें जवाब दिया जाता है. 

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भारत ने प्रश्न काल को इंग्लैंड से अपनाया है. इंग्लैंड में ही सबसे पहले (1721 में) प्रश्न काल शुरू किया गया था. संसद में सबसे ज्यादा दिलचस्प बहस भी इसी प्रश्नकाल में देखने को मिलती है. इससे मंत्रियों की जवाबदेही भी तय होती है. सांसद जो भी सवाल पूछते हैं, उनको लेकर कई बार मंत्रालयों को ठोस कदम भी उठाने पड़ते हैं.

पिछले कई सालों से सांसद संसद के प्रश्न काल का इस्तेमाल सरकार की कार्यप्रणाली की खामियों को उजागर करने में करते रहे हैं. कई बार इन सवालों के जरिए सरकार में वित्तीय अनियमितता और कई अहम जानकारियां सामने आती हैं. 1991 से प्रश्नकाल का प्रसारण होता रहा है और ये संसदीय कार्यवाही का सबसे पारदर्शी पहलू है.

सवाल पूछने की प्रक्रिया क्या है?

भारत में प्रश्न काल की शुरुआत 'भारतीय परिषद अधिनियम, 1892' से हुई. आजादी से पहले ब्रिटिश भारत में सवाल पूछने पर तमाम तरह की पाबंदियां लगी हुई थीं लेकिन स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत में इन सभी पाबंदियों का अंत कर दिया गया. अब सदस्य लोक-महत्व के किसी भी विषय पर जानकारी पाने के लिए सवाल पूछ सकते हैं. प्रश्न पूछने को लेकर कुछ सामान्य सी शर्तें भी लगाई गई हैं कि उसमें किसी के चरित्र का हनन ना होता हो, व्यक्तिगत दोषारपण ना हो या फिर किसी तरह की मानहानि ना होती हो.

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संसद की रूलबुक में स्पष्ट किया गया है कि सदस्य किस तरह के सवाल पूछ सकते हैं. सवाल की शब्द सीमा 150 शब्द होती है. सवाल सटीक होने चाहिए और बहुत कॉमन नहीं होने चाहिए. सभी सवाल भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र से जुड़े होने चाहिए. इसके अलावा, गोपनीय मामलों या कोर्ट में चल रहे मामलों से जुड़े सवाल भी नहीं पूछे जा सकते हैं. दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी ही अंतिम फैसला करते हैं कि किसी सदस्य का सवाल सरकार के सामने रखा जाना है या नहीं.

प्रश्न काल दोनों सदनों में सत्र के हर दिन रखा जाता है. हालांकि, दो दिन ऐसे होते हैं जब प्रश्न काल नहीं होता है- एक जब राष्ट्रपति दोनों सदनों के सांसदों को संबोधित करते हैं. नई लोकसभा की शुरुआत पर राष्ट्रपति अभिभाषण देते हैं. जब वित्त मंत्री बजट पेश करते हैं तो उस दिन भी प्रश्न काल नहीं होता है. मौजूदा लोकसभा की शुरुआत से लेकर अब तक करीब 15,000 सवाल सरकार से पूछे जा चुके हैं.

तीन तरह के होते हैं सवाल
प्रश्न काल में तीन तरह के प्रश्न होते हैं- तारांकित प्रश्न, अतारांकित प्रश्न और अल्पसूचना प्रश्न.

स्टार क्वेश्चन या तारांकित सवाल वे होते हैं जिसमें सदस्य सदन में मौखिक जवाब चाहता है. अतारांकित या बिना स्टार वाले सवाल वे होते हैं जिनमें सदस्य लिखित उत्तर चाहता है. मौखिक जवाबों में संतुष्ट ना होने पर सदस्य काउंटर सवाल कर सकता है लेकिन बिना स्टार वाले सवालों में लिखित जवाब मिलता है और इसमें पूरक सवाल नहीं पूछे जा सकते हैं. 

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इन दोनों तरह के सवालों के लिए सदस्य को 10 दिन पहले सदन को सूचना देनी पड़ती है. तीसरे तरह के सवाल होते हैं- अल्पसूचना प्रश्न यानी इन्हें 10 दिन से कम की सूचना पर पूछा जा सकता है. अध्यक्ष संबंधित मंत्री से पूछता है कि वह जवाब देने की स्थिति में है या नहीं और अगर है तो किस तारीख को वह इस सवाल का जवाब देगा.

जीरो आवर या शून्य काल (Zero hour) क्या है?
जहां प्रश्न काल या क्वेश्चन आवर बेहद रेगुलेटेड होता है. वहीं, जीरो आवर भारतीय संसद से ही निकला एक आइडिया है. शून्य काल का जिक्र संसद की कार्यवाही की प्रक्रिया में कहीं नहीं है. जीरो आवर का आइडिया भारतीय संसद के पहले दशक में निकला जब सांसदों को राष्ट्रीय और अपने संसदीय क्षेत्र के अहम मुद्दों को उठाने की जरूरत महसूस हुई. साल 2014 में राज्य सभा चेयरमैन हामिद अंसारी ने प्रश्न काल की अवधि 11 बजे से 12 बजे कर दी थी ताकि इसमें किसी तरह की रुकावट ना आए.

शुरुआत के दिनों में संसद में एक बजे लंच ब्रेक हुआ करता था. ऐसे में, सांसदों को दोपहर 12 बजे बिना किसी पूर्व नोटिस के राष्ट्रीय मुद्दे उठाने का अच्छा मौका मिल जाता था और इस दौरान उन्हें एक घंटे का लंबा वक्त मिल जाता था. धीरे-धीरे ये घंटा जीरो आवर के तौर पर जाना जाने लगा. दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी जीरो आवर की कार्यवाही को भी प्रसारित करने का निर्देश देने लगे ताकि इसे और प्रभावी बनाया जा सके. सदन की रूलबुक में ना होने के बावजूद जीरो आवर को जनता से लेकर मीडिया तक खूब समर्थन मिलता रहा है.

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