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उपराष्ट्रपति चुनाव: 56 रिटायर्ड जज सुदर्शन रेड्डी की उम्मीदवारी के खिलाफ, बताई ये वजह

उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर न्यायपालिका के पूर्व जजों के बीच टकराव गहराया है. इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी के लिए अमित शाह के बयान पर 18 पूर्व जजों ने आलोचना की थी, जिसका जवाब 56 पूर्व जजों ने एक खुला पत्र लिखकर दिया.

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 उपराष्ट्रपति चुनाव में पूर्व जजों के खुले पत्र से न्यायपालिका में मचा घमासान (File Photo: PTI)
उपराष्ट्रपति चुनाव में पूर्व जजों के खुले पत्र से न्यायपालिका में मचा घमासान (File Photo: PTI)

उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर अब न्यायपालिका से जुड़े सेवानिवृत्त जजों में भी सीधा टकराव सामने आ गया है. इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बी. सुदर्शन रेड्डी को लेकर देश के पचास से अधिक पूर्व जजों ने खुला पत्र लिखा है. इन जजों ने गृह मंत्री अमित शाह के हालिया बयान पर प्रतिक्रिया देने वाले अपने ही साथी पूर्व जजों की आलोचना की है.

गृह मंत्री शाह ने सुदर्शन रेड्डी के सलवा जुडूम फैसले पर सवाल उठाए थे. इसके बाद 18 पूर्व जजों ने चिट्ठी लिखकर शाह की आलोचना की थी. अब जवाब में 56 पूर्व जजों ने पत्र लिखकर कहा है कि यह गलत परंपरा बन गई है कि हर बड़े राजनीतिक घटनाक्रम पर कुछ लोग राजनीतिक झुकाव वाले बयान जारी कर देते हैं और उसे न्यायिक स्वतंत्रता का रंग देने की कोशिश करते हैं. उनका कहना है कि इससे पूरी न्यायपालिका की साख और निष्पक्षता पर आंच आती है.

कई बड़े नाम शामिल

पत्र लिखने वाले जजों में पूर्व मुख्य न्यायाधीश और केरल के पूर्व राज्यपाल जस्टिस पी. सदाशिवम, पूर्व सीजेआई और राज्यसभा सांसद जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी और जस्टिस एम. आर. शाह जैसे नाम शामिल हैं. इनका कहना है कि जब कोई रिटायर्ड जज राजनीति में उतरता है तो उसे सामान्य उम्मीदवार की तरह आलोचना का सामना करना होगा. ऐसी आलोचना को न्यायपालिका पर हमले के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए.

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यह भी पढ़ें: EXCLUSIVE: 'NDA सांसदों से भी मांगूंगा सपोर्ट...', बोले विपक्ष के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी, अमित शाह के आरोपों का भी दिया जवाब

राजनीतिक आलोचना बनाम न्यायिक स्वतंत्रता

जजों ने साफ लिखा है कि राजनीतिक उम्मीदवार की आलोचना न्यायिक स्वतंत्रता के खिलाफ नहीं है. असली खतरा तब पैदा होता है जब पूर्व न्यायाधीश बार-बार ऐसे बयान देते हैं, जिससे लगता है कि पूरी संस्था राजनीति से जुड़ी हुई है. उन्होंने अपील की है कि न्यायपालिका को राजनीति से दूर रखा जाए और जो लोग राजनीति का रास्ता चुन चुके हैं, वे राजनीतिक अखाड़े में खुद अपना बचाव करें.

इस तरह उपराष्ट्रपति चुनाव में एक सेवानिवृत्त जज की उम्मीदवारी ने न सिर्फ राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है बल्कि न्यायपालिका के भीतर भी गहरी बहस छेड़ दी है.

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