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निर्विरोध चुनाव में भी NOTA का विकल्प देने पर सुनवाई करेगा SC, केंद्र और EC ने जताया विरोध

निर्वाचन आयोग के हलफनामे में 1950 से अब तक के चुनावी आंकड़े दिखाए गए हैं. इसमें कहा गया है कि 1989 के बाद, निर्विरोध चुनाव शायद ही कभी होते हैं. प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल एक निर्वाचन क्षेत्र - सूरत - निर्विरोध था. 2023 के नगालैंड विधानसभा चुनावों में, 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 1 - अकुलुतो - निर्विरोध था.

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याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53 (2) को चुनौती दी गई है. (Photo: Representational)
याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53 (2) को चुनौती दी गई है. (Photo: Representational)

सुप्रीम कोर्ट इस प्रश्न पर विचार करेगा कि क्या उन निर्वाचन क्षेत्रों में नोटा यानी 'उपर्युक्त उम्मीदवारों में से कोई नहीं' को वोट का विकल्प कानूनी रूप से दिया जा सकता है, जहां केवल एक उम्मीदवार हो और उसे  'निर्विरोध' विजयी घोषित करने का प्रचलन हो. जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस बाबत एनजीओ विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की अर्जी पर सुनवाई के दौरान कहा कि मुद्दा यह है कि लोगों की अदृश्य इच्छा को लागू करने की अनुमति दी जानी चाहिए. अगर केवल एक ही उम्मीदवार है और मतदाता उसे पसंद नहीं करते तो क्या उन्हें वोट देने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए? हमारा मानना है कि यह बहुत ही दिलचस्प प्रस्ताव है.

'मतदाताओं के लिए NOTA का विकल्प उपलब्ध होना चाहिए'

इन हस्तक्षेप याचिकाओं में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53 (2) को चुनौती दी गई है जिसके तहत निर्विरोध चुनाव के लिए मतदान प्रक्रिया नहीं अपनाने का प्रावधान है. याचिका में यह घोषित करने की मांग की गई थी कि चुनाव में केवल एक ही उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की स्थिति में मतदाताओं के लिए NOTA का विकल्प उपलब्ध होना चाहिए. याचिका में तर्क दिया गया है कि 2013 से चुनावों से NOTA विकल्प लागू होने के बाद केवल एक ही उम्मीदवार के चुनाव लड़ने की स्थिति में मतदाताओं के मतदान के अधिकार का हनन हो रहा है.

याचिकाकर्ताओं ने यह भी दलील दी कि 1989 के बाद लोकसभा चुनावों में निर्विरोध सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई है. राज्य विधानसभा चुनावों में ऐसे कई उदाहरण हैं जब कोई उम्मीदवार निर्विरोध चुना गया है. पंचायत और स्थानीय निकाय चुनावों में तो यह आंकड़ा और भी ज्यादा है.

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केंद्र और चुनाव आयोग ने जताया कड़ा विरोध

सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं की दलील 'नोटा सिद्धांत के विस्तार' की मांग करती हुई प्रतीत होती है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यदि केवल एक ही उम्मीदवार है और फिर भी लोग नोटा को वोट देते हैं तो इससे पता चलता है कि उम्मीदवार के प्रति लोगों में बहुत अधिक नाराजगी है. हालांकि केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग ओर से याचिका का कड़ा विरोध करते हुए अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ को बताया कि दुर्लभ परिस्थितियों में जहां चुनाव निर्विरोध होता है यह एक अकादमिक अभ्यास है.

अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि अदालत को यह देखना होगा कि NOTA को कहां तक बढ़ाया जा सकता है. आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने भी तर्क दिया कि यदि लोग उम्मीदवार से इतने नाखुश हैं तो वे अपना उम्मीदवार खड़ा कर सकते हैं. विधि लीगल के वकील हर्ष पाराशर ने कहा कि यह मामला लोगों के अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार को प्रभावित करता है. पिछले कुछ सालों में विधानसभाओं में ऐसा 290 से ज्यादा बार हो चुका है. अरुणाचल प्रदेश में 2024 के चुनावों में 6 सीटें निर्विरोध थीं. अगर किसी एक उम्मीदवार वाले  चुनाव में NOTA को उम्मीदवार से अधिक वोट पड़ जाते हैं, तो नियमों के तहत चुनाव रद्द करने की अनुमति होनी चाहिए.

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6 नवंबर तक के लिए सुनवाई स्थगित

इसके बाद पीठ ने कहा कि यदि नोटा को स्वीकार कर लिया जाता है और चुनाव रद्द कर दिया जाता है तो यह संभव है कि राजनीतिक दल उपचुनाव में अलग उम्मीदवार उतारेंगे. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि मुझे लगता है कि फिर तो सभी दल अपने उम्मीदवार उतारेंगे. भारत में हमारे पास स्वतंत्र उम्मीदवार भी होते हैं. निर्विरोध चुनाव होना दुर्लभ है. एडीआर के वकील प्रशांत भूषण ने यह भी कहा कि कुछ राज्यों ने स्थानीय निकाय चुनावों के लिए नियम बनाए हैं कि यदि नोटा वोट, जीतने वाले उम्मीदवार को मिले वोटों से अधिक हों तो चुनाव रद्द कर दिया जाता है. फिर नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं.

हालांकि निर्वाचन आयोग के वकील रमेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि राज्य पंचायत चुनाव नियमों के तहत आयोजित स्थानीय निकाय चुनाव, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और ईसीआई नियमों के तहत आयोजित राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों से कानूनी रूप से भिन्न हैं. सुनवाई फिलहाल 6 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई है, क्योंकि गुरुवार को केंद्र सरकार द्वारा दायर हलफनामा सुनवाई के समय अदालत के रिकॉर्ड में उपलब्ध नहीं था.

EC ने हलफनामे में पेश किए आंकड़े

निर्वाचन आयोग के हलफनामे में 1950 से अब तक के चुनावी आंकड़े दिखाए गए हैं. इसमें कहा गया है कि 1989 के बाद, निर्विरोध चुनाव शायद ही कभी होते हैं. प्रस्तुत आंकड़ों के अनुसार, 2024 के लोकसभा चुनावों में केवल एक निर्वाचन क्षेत्र - सूरत - निर्विरोध था. 2023 के नगालैंड विधानसभा चुनावों में, 60 विधानसभा क्षेत्रों में से 1 - अकुलुतो - निर्विरोध था.

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केंद्र और ईसीआई ने अपने हलफनामों में याचिका का विरोध करते हुए कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53 और चुनाव संचालन नियमावली के नियम 11 में स्पष्ट रूप से 'निर्विरोध चुनाव' की प्रक्रिया निर्धारित की गई है. केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि 'संविधान के तहत 'वोट के अधिकार' और 'वोट की स्वतंत्रता' के बीच अंतर है', जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है.
सरकार ने आगे तर्क दिया है कि नोटा को चुनाव में उम्मीदवार के रूप में शामिल नहीं किया जा सकता है. कानून चुनाव में उम्मीदवारों की संख्या के आधार पर प्रक्रिया को स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है.

केंद्र के हलफनामे के अनुसार, नोटा केवल एक राय या अभिव्यक्ति है इसलिए जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 53(2) के तहत निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार इसे उम्मीदवार के रूप में प्रतिस्थापित करना सर्वथा अनुचित होगा. ईसीआई ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि नोटा को सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश के तहत सिर्फ एक विकल्प है. मूल कानून या उसके तहत बनाए गए नियमों में इसकी कोई जगह नहीं है. इसलिए नोटा को अनिवार्य रूप से चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवार के रूप में पेश करने के लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता होगी. यह संसद के विधायी क्षेत्राधिकार में है. ईसीआई के हलफनामे में कहा गया है कि मौजूदा कानून के अनुसार निर्विरोध चुनाव की स्थिति में मतदान कराने का कोई प्रावधान नहीं है. ईसीआई संसद द्वारा पारित कानून से बंधा हुआ है.

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