सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम सुनवाई के दौरान साफ कहा कि इश्क करना कोई गुनाह नहीं है और ये कभी गुनाह हो भी नहीं सकता. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शोषणकारी आपराधिक आचरण और किशोर दिलों के बीच बने प्रेम संबंधों में अंतर होता है. बेंच ने कहा कि अगर कोई युवा युगल, भले ही वे वयस्कता की उम्र से थोड़े ही कम हों, सच्चे प्रेम संबंध में हैं तो उन्हें अपने हाल पर छोड़ देना चाहिए.
जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच बाल यौन उत्पीड़न निरोधक कानून (POCSO Act) और बाल अधिकारों के संरक्षण से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी. टिप्पणी उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आई, जिनमें यह मांग की गई थी कि POCSO Act का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाए जाएं. खासकर तब, जब नाबालिग आपसी सहमति से संबंध बनाते हैं.
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सुनवाई के दौरान अदालत ने यह भी साफ कर दिया कि वह मुस्लिम लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र से जुड़े मसले पर दायर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) की याचिका पर सुनवाई नहीं करेगी. इससे पहले, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने साल 2022 में 21 साल के मुस्लिम युवक और 16 साल की मुस्लिम लड़की के प्रेम विवाह को मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधानों के तहत वैध माना था.
हाईकोर्ट में यह मामला उस याचिका से जुड़ा था जिसमें विवाहित जोड़े ने अपनी सुरक्षा के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
सुप्रीम कोर्ट की आपत्तियां
हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ NCPCR ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. मंगलवार को सुनवाई के दौरान जस्टिस नागरत्ना की बेंच ने पूछा कि NCPCR का इस मामले से क्या संबंध है? आयोग इस मामले में पक्षकार नहीं था, तो उसका अपील दायर करने का कोई औचित्य नहीं बनता. बेंच ने कहा कि इस केस में शादी दोनों की मर्ज़ी से हुई थी.
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कोर्ट ने एनसीडब्ल्यू की अर्जी को किया खारिज
जस्टिस नागरत्ना ने टिप्पणी की कि अगर हाईकोर्ट दो बच्चों को संरक्षण देता है, तो NCPCR ऐसे आदेश को कैसे चुनौती दे सकता है? आयोग यह नहीं कह सकता कि बच्चों को संरक्षण न दिया जाए.सुप्रीम कोर्ट ने इस मसले पर पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) की अर्जी को भी खारिज कर दिया.