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Ram Mandir Pran Pratishtha: श्रीराम चरित मानस कथा: कैसा था श्रीराम का रथ, जिस पर वह रावण से युद्ध के समय सवार थे?

तुलसीदास लिखते हैं कि, जब राम-रावण का युद्ध शुरू तो रावण अपने मायारथ पर आया और श्रीराम पैदल ही उसकी ओर बढ़े. इसके बाद भी श्रीराम के आत्मविश्वास और वीरता में कमी नहीं थी. रावण को रथ पर और श्रीराम को पैदल युद्ध के लिए बढ़ता देखकर विभीषण को आश्चर्य भी हुआ, शंका भी हुई और वह अधीर भी हो उठे.

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रावण से युद्ध करने गए श्रीराम तो दैवीय था उनका रथ
रावण से युद्ध करने गए श्रीराम तो दैवीय था उनका रथ

श्रीराम चरित मानस में संत तुलसीदास ने कथा प्रसंगों के बीच बात ही बात में जीवन के लिए जरूरी आचरण भी बताए हैं. ये नैतिक शिक्षा की बातें कथा का हिस्सा भी हैं और रामकथा का मर्म भी हैं. अगर सामान्य व्यक्ति इन्हें अपने जीवन में थोड़ा भी उतार ले तो उसके जीवन की कई कठिनाइयां तो ऐसी ही हल हो जाएंगी. श्रीराम और रावण युद्ध का प्रसंग हमारे जीवन की कठिनताओं का उदाहरण है और इससे कैसे पार पाना है, रावण पर श्रीराम की विजय उसके उपाय के बराबर है.

तुलसीदास लिखते हैं कि, जब राम-रावण का युद्ध शुरू तो रावण अपने मायारथ पर आया और श्रीराम पैदल ही उसकी ओर बढ़े. इसके बाद भी श्रीराम के आत्मविश्वास और वीरता में कमी नहीं थी. रावण को रथ पर और श्रीराम को पैदल युद्ध के लिए बढ़ता देखकर विभीषण को आश्चर्य भी हुआ, शंका भी हुई और वह अधीर भी हो उठे. इसी अधीरता में उन्होंने श्रीराम जी से प्रश्न पूछ लिया कि, हे राम! रावण तो अपने विजय रथ पर है और आप पैदल, इस तरह आप रावण को कैसे जीत पाएंगे. 

तुलसीदास इस प्रसंग के लिए लिखते हैं कि
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥

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विभीषण श्रीराम से कहने लगे कि, आपके पास न रथ है, न कवच न जूते ही हैं तो आप रावण को कैसे जीत सकेंगे. विभीषण की इन अधीर बातों को सुनकर श्रीराम मुस्कुरा कर बोले, हे मित्र विभीषण, आप अधीर न हों, मैं जिस विजय रथ पर हूं वह साधारण नहीं है. जिससे रावण का हराना है, और उस पर विजय पानी है वह रथ दूसरा ही है. इसके बाद श्रीराम ने अपने उस दिव्य रथ का वर्णन किया. उन्होंने उस रथ की जैसी विशेषताओं को बताया है, हम और आप उसे जानते भी हैं और समझते भी हैं, केवल उसे जीवन में अपनाना ही कठिन हो जाता है.

श्रीराम ने अपने दिव्य रथ का वर्णन किस तरह किया, देखिए, संत तुलसीदास चौपाई में क्या लिखते हैं...
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥

श्रीराम बताना शुरू करते हैं कि वह जिस तरह के रथ पर हैं, शौर्य और धैर्य उस रथ के पहिए हैं. सत्य और शील (सदाचार) उसकी मजबूत ध्वजा और पताका हैं. बल, विवेक, इंद्रियों का वश में होना और परोपकार, ये चार उसके घोड़े हैं. ये घोड़े क्षमा, दया और समता की डोर से रथ में जुते हुए हैं. ईश्वर का भजन ही उस रथ का कुशल सारथी है. वैराग्य ही ढाल है और संतोष तलवार है. दान फरसा है, बुद्धि प्रचण्ड शक्ति है, श्रेष्ठ विज्ञान कठिन धनुष है. निर्मल और अचल-स्थिर मन तरकस के जैसा है. मन का वश में होना, अहिंसा यम-नियम और शुचिता
ये बहुत से बाण हैं. ब्राह्मणों और गुरु का पूजन अभेद्य कवच है. यही विजय का उपाय है. 

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संत तुलसीदास लिखते हैं कि...
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा॥

इसके बाद श्रीराम, विभीषण को समझाते हुए कहते हैं कि,  हे विभीषण! आप अधीर मत होइए. इस तरह का धर्मपरायण रथ जिसके पास होता है तो संसार का कोई भी शत्रु उसके सामने नहीं टिकता है. यह मेरा रथ अजेय है और इस रथ के जरिए मनुष्य जीवन और मृत्यु जैसे शत्रु को भी जीत सकता है. 
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर॥
सुनि प्रभु बचन बिभीषन हरषि गहे पद कंज।
एहि मिस मोहि उपदेसेहु राम कृपा सुख पुंज॥

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