महाराष्ट्र (Maharashtra) में विपक्ष सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा एडवोकेट आरती अरुण साठे को बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त करने की सिफ़ारिश पर सवाल उठा रहा है. कॉलेजियम ने 28 जुलाई को बॉम्बे हाई कोर्ट के जज के तौर पर उनकी नियुक्ति के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी थी.
कांग्रेस की सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की अध्यक्ष सुप्रिया श्रीनेत ने कहा, "आरती अरुण साठे महाराष्ट्र बीजेपी यूनिट की आधिकारिक प्रवक्ता हैं. उन्हें अब बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया है. RIP जूडिशियल इंटेग्रिटी."
एनसीपी (SP) विधायक रोहित पवार ने कहते हैं, "पब्लिक प्लेटफॉर्म से सत्तारूढ़ दल का पक्ष रखने वाली महिला की जज के रूप में नियुक्ति लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा आघात है. किसी पॉलिटिकल फीगर की नियुक्ति इंसाफ करने की पूरी प्रक्रिया पर संदेह पैदा करती है. यह संविधान द्वारा सबको दी गई अलग-अलग ताक़त के सिद्धांत को भी कमजोर करती है.”
टीएमसी के सोशल मीडिया हैंडल से किए गए पोस्ट में कहा गया, "महाराष्ट्र बीजेपी की ऑफिशियल प्रवक्ता आरती अरुण साठे को अब बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया है. जब जज का पद कानूनी कौशल के बजाय पार्टी निष्ठा का पुरस्कार बन जाता है, तो जूडिशियल इंटेग्रिटी का क्या होगा? यह एक ऐसा चलन है, जहां संविधान के प्रति निष्ठा से ज़्यादा बीजेपी के प्रति निष्ठा को महत्व दिया जाता है."
'पार्टी निष्ठा का पुरस्कार...'
इसमें आगे कहा गया, "न्यायपालिका, जो कभी हमारे लोकतंत्र की प्रहरी थी, अब राजनीतिक संरक्षण के रंगमंच में तब्दील होती जा रही है. बीजेपी पक्षपातपूर्ण और पक्षपातपूर्ण नियुक्तियों के ज़रिए लोकतांत्रिक संस्थाओं को व्यवस्थित रूप से ध्वस्त कर रही है.
वहीं, इस मामले पर आरती साठे ने कहा है कि मैंने पिछले साल ही पार्टी से इस्तीफा दे दिया था.
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आइए जानते हैं कि कभी राजनीति का हिस्सा रह चुके कौन-कौन से लोग बाद में अदालती पद पर बैठे.
वकील विक्टोरिया गौरी
फरवरी 2023 में, वकील लक्ष्मण चंद्र विक्टोरिया गौरी ने मद्रास हाई कोर्ट के एडिशनल जज के रूप में शपथ ली. कई लोगों ने उनके बीजेपी के साथ पूर्व जुड़ाव का मुद्दा उठाया था. गौरी उस वक्त मदुरै में असिस्टेंट सॉलिसिटर जनरल थीं, जहां मद्रास हाई कोर्ट की एक बेंच है. उन्होंने कहा था कि सितंबर 2020 में पदभार ग्रहण करने से करीब तीन महीने पहले, उन्होंने बीजेपी के सभी पदों और पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था.
जस्टिस वी.आर. कृष्ण अय्यर
सुप्रीम कोर्ट के जज वी.आर. कृष्ण अय्यर राजनेता से जज बनने के कल्चर के प्रतीक थे. वे मद्रास और फिर केरल विधानसभा के लिए तीन बार चुने गए और 1965 तक एक सक्रिय राजनीतिज्ञ रहे. साल 1956 में, अय्यर कम्युनिस्ट पार्टी के समर्थन से एक निर्दलीय विधायक के रूप में मद्रास विधानसभा के लिए चुने गए. बाद में, राज्यों के पुनर्गठन के बाद, वे केरल विधानसभा के लिए चुने गए, जहां उन्हें गृह, विधि, समाज कल्याण आदि जैसे महत्वपूर्ण विभागों का प्रभारी मंत्री नियुक्त किया गया.
साल 1968 में उन्हें केरल हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. 1971 से 1973 तक वे विधि आयोग के सदस्य रहे. 1973 में उन्हें भारत के सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. 1999 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.
जस्टिस बहारुल इस्लाम
बहारुल इस्लाम ने साल 1951 में असम हाई कोर्ट में एडवोकेट के रूप में नामांकन कराया. इसके आठ साल बाद, वे वकालत के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. कांग्रेस ने उन्हें 1962 में पहली बार और 1968 में दूसरी बार राज्यसभा भेजा. साल 1972 में, उन्होंने राज्यसभा सांसद के पद से इस्तीफा दे दिया और उसी साल, तत्कालीन असम और नागालैंड हाई कोर्ट के जज नियुक्त किए गए. बता दें कि बाद में इसका नाम बदलकर गुवाहाटी हाई कोर्ट कर दिया गया.
7 जुलाई, 1979 को बहारुल इस्लाम को गुवाहाटी हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया. वे 1 मार्च, 1980 को रिटायर हुए. कुछ महीनों बाद, उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. उन्होंने 4 दिसंबर 1980 को पदभार संभाला और 1 मार्च 1983 को रिटायर होने वाले थे. जनवरी 1983 में अपने कार्यकाल के खत्म होने से दो महीने पहले, इस्लाम ने असम के बारपेटा से कांग्रेस (I) के कैंडिडेट के तौर पर लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में इस्तीफा दे दिया.
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जस्टिस के.एस. हेगड़े
के.एस. हेगड़े 1935 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए, 1952 में दो साल के कार्यकाल के लिए राज्यसभा के लिए चुने गए और 1954 में 6 साल के कार्यकाल के लिए फिर से चुने गए. अगस्त 1957 में, उन्होंने मैसूर हाई कोर्ट के जज बनने के लिए राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और फिर 1966 में दिल्ली हाई कोर्ट की स्थापना के वक्त इसके पहले चीफ जस्टिस बने. 1967 में हेगड़े सुप्रीम कोर्ट में नियुक्त किया गया और अप्रैल 1973 में उनके अधिक्रमण के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया.
जस्टिस आफ़ताब आलम
पटना हाई कोर्ट में अपनी पहली नियुक्ति से कुछ साल पहले तक आफ़ताब आलम, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य थे. 27 जुलाई, 1990 को उन्हें पटना हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. 6 जून 2007 को उन्हें जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उन्हें एक्टिंग चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया. उन्हें सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत किया गया और 12 नवंबर 2007 को उन्होंने पदभार ग्रहण किया.
एफ.आई. रेबेलो
1996 में बॉम्बे हाई कोर्ट के जज नियुक्त होने से पहले, रेबेलो गोवा में जनता पार्टी के विधायक थे. 2010-11 में वे इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने.
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जस्टिस पी.बी. सावंत
वकील के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, पीबी सावंत महाराष्ट्र में किसान एवं श्रमिक पार्टी के सदस्य थे. साल 1973 में, उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. 1989 से 1995 तक, उन्होंने भारत के सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में काम किया.
जस्टिस एस. रत्नावेल पांडियन
पांडियन ने कुछ वक्त तक डीएमके में काम किया. उन्होंने 1962 में अंबासमुद्रम से विधानसभा चुनाव लड़ा और हार गए. नौ साल बाद, वे चेरनमहादेवी से फिर से चुनावी मैदान में उतरे और मामूली अंतर से हार गए, जिसके कारण उन्हें राजनीति छोड़नी पड़ी. उस वक्त रत्नावेल पांडियन अविभाजित तिरुनेलवेली जिले के डीएमके सचिव थे. अगस्त 1971 में उन्हें मद्रास हाई कोर्ट में राज्य लोक अभियोजक नियुक्त किया गया और फरवरी 1974 में उसी हाई कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत होने तक वे इस पद पर रहे. रत्नावेल पांडियन कुछ वक्त के लिए कार्यवाहक एडवोकेट जनरल भी रहे. 1974 में उन्हें मद्रास हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया और बाद में 1988 से 1994 तक वे सुप्रीम कोर्ट में जज रहे.